हेलो दोस्तों,
मेरा नाम श्वेता है और मै आज आप सभी शिव भक्त के लिए 12 JYOTIRLINGA SHIV MANDIR के बारे में लेके आई हु आप सभी को ये जान कर हैरानी होगी की 12 ज्योतिर्लिंग की प्रतिमा कैसे हुई है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव इन 12 स्थानों पर अपने तेजोमय रूप में प्रकट होते हैं, इसलिए इन 12 मंदिरों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, विश्वेश्वर (विश्वनाथ), त्रयंबकेश्वर शामिल हैं। वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम, और घृष्णेश्वर (घुश्मेश्वर)।
- 1 भारत में 12 ज्योतिर्लिंग
- 2 ज्योतिर्लिंग कथाएं हिंदी में:
- 3 सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कथा
- 4 मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कथा
- 5 महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा
- 6 केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कथा
- 7 भीमशंकर ज्योतिर्लिंग कथा
- 8 विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा
- 9 त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा
- 10 काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा
- 11 नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा
- 12 रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कथा
- 13 नेलकंठेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा
- 14 घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा
भारत में 12 ज्योतिर्लिंग
क्रम. | ज्योतिर्लिंग | राज्य |
1. | सोमनाथ ज्योतिर्लिंग | गुजरात |
2. | मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग | आंध्र प्रदेश |
3. | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग | मध्य प्रदेश |
4. | केदारनाथ ज्योतिर्लिंग | मध्य प्रदेश |
5. | भीमशंकर ज्योतिर्लिंग | उत्तराखंड |
6. | विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग | महाराष्ट्र |
7. | त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग | उत्तर प्रदेश |
8. | काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग | महाराष्ट्र |
9. | नागेश्वर ज्योतिर्लिंग | झारखंड |
10. | रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग | गुजरात |
11. | नेलकंठेश्वर ज्योतिर्लिंग | तमिल नाडु |
12. | घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग | महाराष्ट्र |
ज्योतिर्लिंग कथाएं हिंदी में:
। ये कथाएं शिव भक्ति और महिमा को दर्शाती हैं और हमें भगवान शिव के प्रति आदर और श्रद्धा को बढ़ाने का संदेश देती हैं। इन कथाओं को सुनकर हम शिव भक्ति में रमने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कथा

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कथा एक बहुत ही प्रसिद्ध कथा है जो भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की महिमा को दर्शाती है। यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है।
कालिंग नामक राजा के राज्य में एक ब्राह्मण आश्रम था, जहां एक सुंदरी नामक ब्राह्मणी रहती थी। उसके स्वरूप, गुण और विद्या की प्रशंसा दुनियाभर में थी। राजा कालिंग ने उसे अपनी पत्नी बनाने का विचार किया था, परन्तु वह इस पर सहमत नहीं हुई क्योंकि उसे भगवान शिव का पति चाहिए था। इसलिए वह विचार में पड़ गई कि कैसे वह भगवान शिव को प्राप्त कर सकती है।
एक दिन उसने तपस्या शुरू की और ब्रह्मा जी की आज्ञा से उसको ज्योतिर्लिंग की प्राप्ति हुई। वह ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहकर स्थापित करने जा रही थी, जब अपहृति नामक दानव ने उसे रोक लिया। वह दानव उसे छोड़ने को तैयार था, परन्तु उसने एक शर्त रखी कि सुंदरी उसे स्नान कराने के बाद ही छोड़ेगा।
सुंदरी ने इसे मान लिया और उसे स्नान करवाने के लिए अपने पति राजा कालिंग के पास चली गई। इस बीच, दानव ने ज्योतिर्लिंग को दिया था जिसे वह चुरा लेने आया था। राजा कालिंग ने उसे पकड़ लिया और उसे मार दिया। इससे पहले कि वह ज्योतिर्लिंग को स्थापित कर सके, उसने उसे तोड़ दिया।
सुंदरी वापस आई और देखा कि ज्योतिर्लिंग तोड़ दिया गया है। उसने बहुत दुखी होकर भगवान शिव की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उसे आश्वासन दिया कि वह ज्योतिर्लिंग को फिर से स्थापित करेंगे। और यही कार्य फिर से हुआ, जिससे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ। यह स्थान महादेव का प्रमुख ज्योतिर्लिंग बन गया।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात, भारत में स्थित है और यह एक प्रमुख तीर्थस्थल है जहां श्रद्धालु भक्तों की भीड़ लगती है। यहां पर भगवान शिव की पूजा अनुकरणीय रूप से होती है और यहां के पवित्र स्थल पर श्रद्धालु आते हैं अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कथा

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कथा भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की एक प्रसिद्ध कथा है। यह कथा श्रीपद्रियांक पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन शिव मंदिर के संबंध में है।
कट्टीहर मुनि नामक एक महर्षि ने श्रीपद्रियांक पर्वत पर तपस्या की थी। उनकी तपस्या ने शिव भगवान को प्रसन्न किया और उन्होंने उनसे वरदान मांगा कि वह यहां पर निवास करें और लोगों की उत्सुकता को मिटा सकें। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और अपने रूप में उनके पास रहने की मांग की।
कुछ समय बाद, महर्षि ने योग में लीन होकर अपनी सांध्या की पूजा करने के बाद नदी में स्नान किया। जब वे नदी से बाहर निकले, तो देवी पार्वती के साथ भगवान शिव का रूप उनके सामने प्रकट हुआ। देवी पार्वती ने महर्षि से कहा कि वे शिव के साथ वैवाहिक जीवन बिताएंगे।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना करने का कार्य महर्षि को सौंपा गया। उन्होंने इसके लिए एक शिवलिंग प्राप्त किया और उसे श्रीपद्रियांक पर्वत पर स्थापित किया। यहां पर भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा अद्भुत आंदोलन के साथ होती है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश, भारत में स्थित है और यह एक प्रमुख तीर्थस्थल है जहां श्रद्धालु भक्तों की भीड़ लगती है। यहां पर भगवान शिव की पूजा अनुकरणीय रूप से होती है और यहां के पवित्र स्थल पर श्रद्धालु आते हैं अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए।
यह थी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा भगवान शिव की महिमा को दर्शाती है और उनके भक्तों को आदर और श्रद्धा को बढ़ाने का संदेश देती है। इसे सुनकर हम शिव भक्ति में रमने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की एक प्रसिद्ध कथा है। यह कथा उज्जैन शहर में स्थित महाकालेश्वर मंदिर के संबंध में है।
कालीदास नामक एक ब्राह्मण राजा विक्रमादित्य के दरबार में था। एक दिन, उसे एक स्वर्गीय सुंदरी का दर्शन हुआ और वह उसे देखते ही मुग्ध हो गया। वह उसे अपनी पत्नी बनाने का विचार करने लगा। परन्तु उसे पता था कि वह ब्रह्मचारी हैं और उसे भगवान शिव के पति चाहिएं।
इसलिए, कालीदास ने भगवान शिव की आराधना शुरू की और उनकी कृपा से वह एक ज्योतिर्लिंग प्राप्त कर उसे स्थापित करने का कार्य सम्पन्न किया। उसने इस ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर नामका रखा और इसे अपने दरबार में स्थापित किया।
एक दिन, एक दिव्यात्मा नामक संत महाकालेश्वर मंदिर आया और कालीदास को बताया कि भगवान शिव इस ज्योतिर्लिंग में निवास कर रहे हैं। यह सुनकर कालीदास बहुत खुश हुआ और वह और उसकी पत्नी महाकालेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा और आराधना करने लगे।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत में स्थित है और यह एक प्रमुख तीर्थस्थल है जहां श्रद्धालु भक्तों की भीड़ लगती है। यहां पर भगवान शिव की पूजा अनुकरणीय रूप से होती है और यहां के पवित्र स्थल पर श्रद्धालु आते हैं अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए।
यह थी महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। इस कथा के माध्यम से हम भगवान शिव के आदर्श भक्त कालीदास की भक्ति और समर्पण की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कथा

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कथा भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की एक प्रसिद्ध कथा है। यह कथा उत्तराखंड, भारत में स्थित केदारनाथ मंदिर के संबंध में है।
बहुत पुरानी कहानी के अनुसार, पांडवों के द्वापर युग के समय, महाभारत का युद्ध हो रहा था। युद्ध में भगवान कृष्ण ने पांडवों को सभी शक्तियों और अस्त्र-शस्त्रों के राज से सम्पन्न किया था। युद्ध के बाद, पांडव राजा युधिष्ठिर ने बहुत अधिक भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान कृष्ण से पूछा कि किस प्रकार उन्हें आदि कोटि शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
इस पर भगवान कृष्ण ने बताया कि उन्हें अपने पूर्वजों का आश्रय लेकर और महादेव शिव के आदेश के अनुसार केदार पहाड़ी में शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह शिवलिंग बहुत पवित्र होगा और उसकी पूजा से उन्हें अद्भुत वरदान मिलेगा।
युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण के कहने पर अपने भाइयों के साथ यात्रा की और केदार पहाड़ी में गये। वहां पर उन्होंने पहले से ही मौजूद शिवलिंग पर अपनी पूजा और अर्चना की। यहीं पर महादेव शिव ने अपनी प्रकट रूप में दर्शन दिए और पांडवों को आशीर्वाद दिया।
यही स्थान केदारनाथ कहलाया और वहां पर एक विशाल मंदिर बनाया गया, जहां आज भी केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। यहां पर हर साल महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की महिमा और शक्ति का उत्सव मनाया जाता है और यहां पर भक्तों की भीड़ लगती है जो आशीर्वाद और वरदान के लिए यहां आते हैं।
यह थी केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें भगवान शिव की महिमा को समझने और उनके भक्त युधिष्ठिर की भक्ति और श्रद्धा को प्रेरित करती है।
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग कथा

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग कथा भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की एक प्रसिद्ध कथा है। यह कथा महाराष्ट्र, भारत में स्थित भीमाशंकर मंदिर के संबंध में है।
प्राचीन काल में, एक महात्मा नामक संत अपने तपस्या और भक्ति में लगे रहते थे। एक दिन, उन्होंने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की और उनसे वरदान मांगा कि वे उन्हें एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रदान करें, जो सदैव उनकी सेवा में रहे और भक्तों को आशीर्वाद देते रहें।
भगवान शिव ने महात्मा की इच्छा स्वीकार की और उन्होंने अपने आदेश के अनुसार भीमाशंकर पहाड़ी पर एक ज्योतिर्लिंग स्थापित किया। यह ज्योतिर्लिंग बहुत विशेष होता है और इसकी पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
कई वर्षों तक, लोगों ने भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की पूजा की और उसके दर्शन किए। इस ज्योतिर्लिंग का मंदिर बनाया गया, जहां आज भी भक्तों की भीड़ लगती है और वे भगवान शिव की पूजा करते हैं।
यह थी भीमशंकर ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें भगवान शिव की महिमा को समझने और भक्ति और श्रद्धा के माध्यम से उनके सामर्थ्य का अनुभव करने की प्रेरणा देती है।
विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की एक प्रमुख कथा है। यह कथा उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित वाराणसी (काशी) के विश्वेश्वर मंदिर के संबंध में है।
कई सौ साल पहले, एक राजा नामक शिव भक्त अपनी भक्ति के बल पर शिवजी के आदेश से एक बहुत बड़ा मंदिर बनवाने की योजना बनाते हैं। यह मंदिर एक अत्यंत पवित्र स्थान बनना चाहता था और भक्तों के लिए एक महान केंद्र होना चाहता था। उन्होंने आपके मंदिर की स्थापना करने का निर्णय लिया और उसका निर्माण काशी के किनारे किया।
बाधाएं तो अवश्य ही उत्पन्न हुईं। राजा के वाणिज्यिक कार्यों और अन्य समस्याओं के कारण मंदिर का निर्माण समाप्त नहीं हो पा रहा था। राजा अत्यंत परेशान थे क्योंकि उन्हें यह मालूम था कि शिवजी खुद ही उनके दरबार में आकर सहायता करने के लिए प्रस्तुत होते हैं।
एक दिन, राजा ने अपने सपने में भगवान शिव को देखा। भगवान ने उनसे कहा कि वे विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में अपनी प्रतिष्ठा करेंगे और राजा के मनोकामनाएं पूरी करेंगे। भगवान की इच्छा के अनुसार, ज्योतिर्लिंग बनकर प्रतिष्ठित हुआ और वहां पर एक मंदिर बनाया गया।
विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर वाराणसी में स्थित है और वहां पर हर वर्ष महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। यहां पर भक्तों की भीड़ लगती है और वे अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
यह थी विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें भगवान शिव के आदेश का महत्व और उनकी कृपा और सहायता की महिमा को समझने के लिए प्रेरित करती है।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

काशी के निकट एक सुंदर ग्राम में एक ब्राह्मण ने रहा करता था। उसकी पत्नी देवी ने अभी तक संतान नहीं प्राप्त की थी, जिसके कारण उनकी चिंता बढ़ती जा रही थी।
एक दिन, वे ब्राह्मण ने अपनी पत्नी के साथ नर्मदा नदी के किनारे जा रहे थे। उन्होंने पूजा और अर्चना करके भगवान शिव से अपनी संतान प्राप्ति की कामना की।
भगवान शिव ने उनकी पूजा और भक्ति को प्रसन्नता से स्वीकार किया और उन्हें एक वरदान दिया। भगवान ने कहा कि उनकी पत्नी संतान प्राप्त करेगी, लेकिन यह बालक एक मात्र कर्ण रूप में उत्पन्न होगा।
कुछ समय बाद उन्होंने एक सुंदर बालक को जन्म दिया और उसे त्र्यम्बकेश्वर नाम दिया। त्र्यम्बकेश्वर का अर्थ होता है “तीन नयनों वाला ईश्वर”।
यह बालक अत्यंत प्रतिभाशाली और बुद्धिमान था, लेकिन उसे कर्ण के रूप में जन्म देने के कारण उसे केवल एक कान ही था। फिर भी, वह अपनी परिवार की सेवा करने में निरंतर लगा रहता था और ब्राह्मण और साधुओं की मदद करने के लिए अपनी बुद्धि का प्रयोग करता था।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर मंदिर, नसिक, महाराष्ट्र में स्थित है। यह मंदिर शिव भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है और वहां पर भक्तों की भीड़ लगती है। यहां पर महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है।
यह थी त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें भगवान शिव के अद्भुत वरदानों के बारे में और उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए भक्ति और विश्वास की महत्ता को समझने के लिए प्रेरित करती है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा

काशीपुर (वाराणसी) में विश्वनाथ नामक एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां भगवान शिव का विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
पुरातन काल में एक ब्राह्मण बन्धु नामक शिव भक्त वाराणसी में निवास करता था। वह दिन-रात भगवान शिव की पूजा-अर्चना करता था और उनकी भक्ति में अत्यंत लीन रहता था।
एक दिन, उसे अपने स्वप्न में भगवान शिव ने आकर्षित किया और उन्होंने उसे कहा कि वह वाराणसी की यात्रा करें और काशीपुर में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा करें।
ब्राह्मण बन्धु ने भगवान की इच्छा को मान्यता देते हुए तत्परता से वाराणसी की यात्रा की। वह नगर में गंगा स्नान करते हुए और शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हुए विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा करने के लिए निकले।
उसने एक स्थान पर प्रतिष्ठापित हुए और भगवान शिव की अभिवादन की। भगवान शिव ने उसकी पूजा की और उन्होंने अपनी कृपा से ज्योतिर्लिंग के रूप में उज्जवलता प्राप्त की।
तब से, काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग पुरे वाराणसी में प्रसिद्ध हुआ और उसके चारों ओर एक महान मंदिर बनाया गया। आज भी, हजारों भक्त इस मंदिर में भगवान शिव की आराधना करते हैं और उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए आशा करते हैं।
यह थी काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें भगवान शिव के महत्व और उनकी पूजा करने के लाभ को समझने के लिए प्रेरित करती है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

दक्षिण भारत में उम्बार्कोई नामक एक गांव में एक ब्राह्मण बन्धु नामक शिव भक्त रहता था। उसकी पत्नी का नाम दारुका था। वे दिन-रात भगवान शिव की भक्ति करते और उनके लिए अर्चना करते रहते थे।
एक दिन, दारुका को एक प्राणी के आकर्षण से व्याकुलता हुई। वह एक विषैला सर्प (नाग) था, जो अपने आप में अत्यंत भयंकर और सांप्रदायिक था। दारुका को वह सर्प बहुत परेशान करता था।
दारुका ने भगवान शिव की आराधना करके उनसे अपनी समस्या का समाधान मांगा। भगवान शिव ने उन्हें धैर्य दिया और उन्हें बताया कि वे एक विशेष ज्योतिर्लिंग प्राप्त करें, जिसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है, और उसे सर्प की पूजा करके अपनी समस्या से मुक्ति प्राप्त करें।
दारुका ने भगवान की सलाह मानते हुए नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा की। उसने नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस-पास एक मंदिर बनवाया और नागराज की पूजा-अर्चना करनी शुरू की।
उसकी भक्ति और समर्पण को देखकर नागराज खुश हुए और उन्होंने दारुका की समस्या का समाधान किया। सर्प ने दारुका को अपनी प्रजा को क्षत्रिय वंश में जन्म लेने की वरदान दिया, जिससे वह उस सर्प के प्रभाव से मुक्त हो सके।
इस प्रकार, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध हुआ और नागराज की पूजा का केंद्र बन गया। आज भी, लोग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करके उनकी अनुकंपा और कृपा को प्राप्त करने के लिए आशा करते हैं।
यह थी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें भगवान शिव की महत्वपूर्ण कृपा और उनके भक्त के समर्पण की महत्ता को समझने के लिए प्रेरित करती है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कथा

त्रेता युग में, भगवान राम ने अपनी वानवास काल में दक्षिण भारत में रामेश्वरम नामक स्थान पर आश्रम स्थापित किया। भगवान राम के भक्त और हनुमानजी के परम भक्त हनुमान ने उस स्थान पर अपनी आध्यात्मिक तपस्या की।
रामेश्वरम में एक ब्राह्मण बन्धु रहता था जिसका नाम शिव दत्त था। वह भगवान शिव का अत्यंत भक्त था और उनकी पूजा-अर्चना करता रहता था। एक दिन, भगवान शिव ने अपने स्वप्न में शिव दत्त को दर्शन दिए और उन्हें आदेश दिया कि वह रामेश्वरम में शिवलिंग की प्रतिष्ठा करें।
शिव दत्त ने भगवान की आदेश को मान्यता देते हुए रामेश्वरम में शिवलिंग की प्रतिष्ठा की। उन्होंने वहां एक मंदिर बनवाया और शिवलिंग की पूजा-अर्चना करनी शुरू की।
एक दिन, भगवान शिव ने शिव दत्त के समक्ष प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें अनन्य भक्ति और प्रेम की वरदान दिया। उन्होंने कहा कि यहां रामेश्वरम में शिवलिंग की पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
इस प्रकार, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध हुआ और उसका मंदिर बना। आज भी, लोग रामेश्वरम में शिवलिंग की पूजा करते हैं और उनकी आराधना करके भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं।
यह थी रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें भगवान शिव की महत्वपूर्ण कृपा और उनके भक्त के समर्पण की महत्ता को समझने के लिए प्रेरित करती है।
नेलकंठेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

कबीरदास जी एक मशहूर संत और संत कवि थे। एक बार, कबीरदास जी ने वाराणसी शहर में भगवान शिव के दर्शन करने की इच्छा रखी। वे उस समय नेल कंठ नामक एक गांव में रहते थे।
कबीरदास जी ने नेल कंठ गांव में एक मंदिर बनवाने का निर्णय लिया और वहां भगवान शिव की प्रतिष्ठा की। वे शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने लगे और विश्वास से कहा कि भगवान शिव अवश्य ही वहां प्रसन्न होंगे और अपनी कृपा प्रदान करेंगे।
एक दिन, कबीरदास जी को एक ग्रामीण ने वहां आकर एक सांप को देखने के लिए कहा। जब कबीरदास जी ने सांप को देखा, तो उन्हें दिखाई दिया कि सांप शिवलिंग पर अपनी हुंकार और सुपर्णों के साथ पत्थर गिराकर वहां अपनी पूजा कर रहा था।
यह दृश्य देखकर कबीरदास जी को आश्चर्य हुआ और उन्होंने जाना कि यह सांप भगवान शिव का आदेश था और वह आश्रय लेने के लिए उनके मंदिर में आया था। इस प्रकार, नेलकंठेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा हुई और वहां भगवान शिव की पूजा की जाने लगी।
यह थी नेलकंठेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें भगवान शिव के प्रति निःस्वार्थ भक्ति और संतों की महत्वपूर्ण भूमिका को समझाती है।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

कभी दिन की बदलती दौड़ और दिनचर्या के बीच, एक गांव में एक साधु महात्मा बसे थे। वे भगवान शिव के भक्त थे और सदा उनकी पूजा-अर्चना करते रहते थे। गांव के लोग उनका आदर और सम्मान करते थे, और उनके संगठन द्वारा संचालित मंदिर में उनकी सेवा करने में निरंतर लगे रहते थे।
एक दिन, एक युवक उस गांव में रहने वाला, आत्मविश्वासी और प्रवृत्ति में सक्रिय था। उसे भगवान शिव की अपार प्रेम और भक्ति होती थी। वह साधु महात्मा के संगठन में शिव की सेवा करने का विचार करता था।
युवक ने साधु महात्मा से अनुमति ली और वहां भगवान शिव की सेवा करने लगा। उसने भक्ति और प्रेम से भगवान शिव की पूजा की और उनके चरणों में अपना सरनेम समर्पित किया।
भगवान शिव ने युवक की साधना और भक्ति को देखा और अपनी कृपा दिखाने का समय आ गया। एक रात को युवक को सपने में भगवान शिव ने आकर दर्शन दिए और उन्होंने कहा कि वह उसकी इच्छा पूरी करेंगे।
युवक अत्यंत प्रसन्न हुआ और भगवान शिव की कृपा के लिए आभार प्रकट किया। भगवान शिव ने उसे एक रुद्राक्ष माला दी और उन्होंने कहा कि यह रुद्राक्ष माला उसकी इच्छा को पूरा करने में सहायता करेगी।
इस प्रकार, युवक की साधना, भक्ति और भगवान के प्रति विश्वास ने घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा की गई। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद के प्रतीक माना जाता है।
यह थी घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा हिंदी में। यह कथा हमें श्रद्धा, भक्ति और निःस्वार्थ प्रेम की महत्वपूर्णता को समझाती है, जो भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए आवश्यक होती है।
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