AKBAR BIRBAL KI KAHANI IN HINDI

By Shweta Soni

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हेलो दोस्तों,

मै श्वेता आज मै आप सभी के लिए अकबर बीरबल की कहानी जो आप सभी को अच्छी सीख मिलेगी।

अकबर-बीरबल से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं, जो हर किसी को गुदगुदाती हैं। साथ ही एक खास सीख भी दे जाती हैं।अकबर-बीरबल की कहानियां हमेशा से सभी के लिए प्रेरणादायक रही हैं। बीरबल ने अपनी चतुराई और बुद्धिमता से कई बार बादशाह अकबर के दरबार में आए पेचीदा मामलों को सुलझाया।

साथ ही बादशाह अकबर की ओर से दी गई चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार कर, उनका हल निकाला। बेशक, ये किस्से-कहानियां सदियों पुरानी हैं, लेकिन वर्तमान में भी इनका महत्व कायम है। 

अकबर और बीरबल की कहानियाँ आमतौर पर एक राजा और उसके मंत्री के बीच के विवादों या समस्याओं के समाधान पर आधारित होती हैं। इन कहानियों का मूल उद्देश्य राजा को अपने समस्याओं का समाधान ढूंढने में मदद करना होता है।

अकबर राजा के सबसे महत्वपूर्ण मंत्री होते थे और उन्होंने अपने बुद्धिमानी और ताकत का उपयोग करके राजा के विभिन्न समस्याओं का समाधान ढूंढ निकाला। बीरबल उनके सबसे निष्ठावान मंत्री में से एक थे जो कभी-कभी चुनौतियों का सामना करने के लिए चुने जाते थे।

कुछ बेहतरीन कहानियों

1- बीरबल का दाँत:

एक दिन राजा ने अकबर से पूछा कि उसके मंत्री में सबसे समझदार है कौन? तब अकबर ने कहा कि बीरबल सबसे समझदार मंत्री हैं। इस पर राजा ने बीरबल को उनकी समझदारी का सबूत देने के लिए एक उपयोगी वस्तु मांगी। उन्होंने कहा कि अगले दिन उन्हें अपने दाँत लेकर आना होगा।

बीरबल घर लौटकर बहुत चिंतित थे। वे नहीं जानते थे कि राजा क्या करना चाहते हैं। फिर उन्होंने अपने एक दोस्त से सलाह मांगी। दोस्त ने बीरबल को सलाह दी कि वे अपने दाँतों को चार तरह से बाँधकर लेकर चले जाएं। उन्हें उनके दाँतों को एक दस्ताने में बांध देना था ताकि उन्हें खुलासा न किया जा सके।

अगले दिन, बीरबल ने राजा के सामने अपने दाँतों को चार तरह से बाँधा हुआ दस्ताना दिखाया। राजा उनके दाँतों को उनकी बैठक में रखने के लिए कहा। बीरबल को अपने दाँतों को सुरक्षित रखने के लिए बहुत खुशी हुई।

एक दिन, राजा ने बीरबल को अपने पास बुलाया और उनके दाँतों को उनसे लौटाने को कहा। बीरबल ने उन्हके कहा कि उन्होंने अपने दाँतों को चार तरह से बाँधकर उन्हें सुरक्षित रखा हुआ है। राजा ने उन्हें अपने दाँतों को उनसे लौटाने के लिए कहा तो बीरबल ने दाँतों को उनके दस्ताने से निकाला और राजा को उनके हाथों में दे दिया। राजा को बहुत अच्छा लगा और उन्होंने बीरबल को बहुत बड़ा इनाम दिया।

एक दिन, राजा ने अपने दरबार में एक मंदिर का निर्माण करने का निर्णय लिया। राजा ने अपने मंत्रियों से पूछा कि कितने समय में वे मंदिर बना सकते हैं। सभी मंत्रियों ने अलग-अलग समय बताए लेकिन कोई भी ठीक समय नहीं बता पाया।

इस पर राजा ने बीरबल से सलाह मांगी। बीरबल ने राजा से पूछा कि वे किस समय मंदिर बना सकते हैं। राजा ने जवाब दिया कि उन्हें एक साल में मंदिर बना देना चाहिए। बीरबल ने राजा की इस सलाह को मान लिया और उन्हें अपनी सलाह दी कि राजा को मंदिर बनाने के लिए आठ महीने के बाद करना चाहिए।

राजा ने बीरबल की सलाह अपने मंत्रियों से साझा की और सभी लोगों ने बीरबल की सलाह को माना।

बीरबल ने फिर से सलाह दी कि उन्हें सभी निर्माण कार्यों के लिए स्थान निर्धारित करना चाहिए। वे उन्हें विभिन्न स्थानों में बाँट देंगे।

राजा ने इस सलाह को मान लिया और सभी निर्माण कार्य शुरू हो गए। बीरबल ने सभी निर्माण कार्यों को संभाला और स्थानों को ठीक से निर्धारित किया। इसके बाद वे सभी निर्माण कार्यों को समय से पहले पूरा कर दिया।

राजा ने बीरबल को इसके लिए बहुत तारीफ की और उन्हें बहुत सारे इनाम दिए। इससे बीरबल ने समझा कि अगर वह चाहता है तो वह किसी भी काम को समय पर पूरा कर सकता है और अपने दोस्तों की मदद कर सकता है।

इस तरह, बीरबल के कुशलता और बुद्धिमत्ता की कहानियां हमें यह सिखाती हैं कि आदमी की बुद्धि कितनी शक्तिशाली होती है। यह हमें यह भी सिखाती है कि अगर हमें कोई मुश्किल का सामना करना होता है, तो हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहता है और उनसे सलाह लेनी चाहिए। बीरबल की कहानियां हमें यह भी दिखाती हैं कि हमें समय से पहले बातें समझनी चाहिए और इसके लिए हमें अपनी बुद्धि का सही उपयोग करना चाहिए।

बीरबल की एक और कहानी भी है जो हमें यह सिखाती है कि अगर हम ठीक समय पर ठीक फैसला नहीं लेते हैं तो हमें बहुत नुकसान हो सकता है।

एक दिन, राजा अकबर ने बीरबल से पूछा कि उन्हें कुछ समय के लिए दूसरे शहर जाना होगा और वह जानना चाहते हैं कि उन्हें जाने के बाद कैसे यह जाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति का मृत्यु हो गया है।

बीरबल ने बताया कि उन्हें एक गुणी और बुद्धिमान व्यक्ति की तलाश करनी चाहिए जो उनके पास आकर उन्हें बता सके कि किसी व्यक्ति का मृत्यु हो गया है और उन्हें यह भी बता सके कि मृतक की उम्र क्या थी।

राजा ने उस दिन बीरबल की बात को नहीं माना। थोड़ी देर बाद राजा अकबर दूसरे शहर चला गया और बीरबल को बाहर भेज दिया गया।

थोडी देर बाद राजा का एक घोड़ा मर गया और जब लोग राजा के पास आए तो उन्होंने बताया कि वह घोड़ा मर गया है। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उस घोड़े की उम्र क्या थी।

इसके बाद राजा ने बीरबल को वापस बुलाया और उनसे पूछा कि वह कैसे जान सकते हैं कि घोड़े की उम्र क्या थी। बीरबल ने उनसे कहा कि वह उन्हें पहले ही बता चुके थे कि एक गुणी और बुद्धिमान व्यक्ति की तलाश करनी चाहिए जो यह जान सके कि किसी व्यक्ति का मृत्यु हो गया है और उसकी उम्र क्या होगी।

राजा ने बीरबल की बात मानी और उन्हें उस व्यक्ति का पता लगाने के लिए भेज दिया गया जिसने घोड़े की उम्र बताई। जब राजा वापस आए तो उन्होंने बीरबल की तारीफ की और कहा कि यदि वह पहले से उनकी बात सुनते तो उन्हें इतनी दिक्कत नहीं होती।

इसके अलावा बीरबल की कहानियों में एक अन्य महत्वपूर्ण संदेश है कि हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए जो हमारी मदद के लिए आवाज उठाक जाते हैं। बीरबल की कहानियों से हमें यह सबक मिलता है कि हमें दूसरों के साथ दयालु होना चाहिए और उन्हें हमेशा मदद करना चाहिए।

इस तरह बीरबल की कहानियां हमें न केवल मनोरंजन प्रदान करती हैं, बल्कि हमें एक समाजवादी संदेश भी देती हैं। उनकी कहानियों से हमें यह सीख मिलती है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए और अपने समाज में सभी को समान ढंग से देखना चाहिए।

AKBAR BIRBAL KI KAHANI IN HINDI
AKBAR BIRBAL KI KAHANI IN HINDI

2- सबसे बड़ी चीज

एक बार की बात है, बीरबल दरबार में मौजूद नहीं थे। इसी बात का फायदा उठा कर कुछ मंत्रीगण बीरबल के खिलाफ महाराज अकबर के कान भरने लगे। उनमें से एक कहने लगा, “महाराज! आप केवल बीरबल को ही हर जिम्मेदारी देते हैं और हर काम में उन्हीं की सलाह ली जाती है। इसका मतलब यह है कि आप हमें अयोग्य समझते हैं। मगर, ऐसा नहीं हैं, हम भी बीरबल जितने ही योग्य हैं।”

महाराज को बीरबल बहुत प्रिय थे। वह उनके खिलाफ कुछ नहीं सुनना चाहते थे, लेकिन उन्होंने मंत्रीगणों को निराश न करने के लिए एक समाधान निकाला। उन्होंने उनसे कहा, “मैं तुम सभी से एक प्रश्न का जवाब चाहता हूं। मगर, ध्यान रहे कि अगर तुम लोग इसका जवाब न दे पाए, तो तुम सबको फांसी की सजा सुनाई जाएगी।”

दरबारियों ने झिझक कर महाराज से कहा, “ठ.. ठीक है महाराज! हमें आपकी ये शर्त मंजूर है, लेकिन पहले आप प्रश्न तो पूछिए।”

महाराज ने कहा, “दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ क्या है?”

यह सवाल सुनकर सभी मंत्रीगण एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। महाराज ने उनकी ये स्थिति देख कर कहा, “याद रहे कि इस प्रश्न का उत्तर सटीक होना चाहिए। मुझे कोई भी अटपटा सा जवाब नहीं चाहिए।”

इस पर मंत्रीगणों ने राजा से इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कुछ दिनों की मोहलत मांगी। राजा भी इस बात के लिए तैयार हो गए।

महल से बाहर निकलकर सभी मंत्रीगण इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने लगे। पहले ने कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ भगवान है, तो दूसरा कहने लगा कि दुनिया की सबसे बड़ी चीज भूख है। तीसरे ने दोनों के जवाब को नकार दिया और कहा कि भगवान कोई चीज नहीं है और भूख को भी बर्दाश्त किया जा सकता है। इसलिए राजा के प्रश्न का उत्तर इन दोनों में से कोई नहीं है।

धीरे-धीरे समय बीतता गया और मोहलत में लिए गए सभी दिन भी गुजर गए। फिर भी राजा द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब न मिलने पर सभी मंत्रीगणों को अपनी जान की फिक्र सताने लगी। कोई अन्य उपाय न मिलने पर वो सभी बीरबल के पास पहुंचे और उन्हें अपनी पूरी कहानी सुनाई। बीरबल पहले से ही इस बात से परिचित थे। उन्होंने उनसे कहा, “मैं तुम्हारी जान बचा सकता हूं, लेकिन तुम्हें वही करना होगा जैसा मैं कहूं।” सभी बीरबल की बात पर राजी हो गए।

अगले ही दिन बीरबल ने एक पालकी का इंतजाम करवाया। उन्होंने दो मंत्रीगणों को पालकी उठाने का काम दिया, तीसरे से अपना हुक्का पकड़वाया और चौथे से अपने जूते उठवाये व स्वयं पालकी में बैठ गए। फिर उन सभी को राजा के महल की ओर चलने का इशारा दिया।

जब सभी बीरबल को लेकर दरबार में पहुंचे, तो महाराज इस मंजर को देख कर हैरान थे। इससे पहले कि वो बीरबल से कुछ पूछते, बीरबल खुद ही राजा से बोले, “महाराज! दुनिया की सबसे बड़ी चीज ‘गरज’ होती है। अपनी गरज के कारण ही ये सब मेरी पालकी को उठा कर यहां तक ले आए हैं।”

यह सुन महाराज मुस्कुराये बिना न रह सके और सभी मंत्रीगण शरम के मारे सिर झुकाए खड़े रहे।

कहानी से सीख :- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी की योग्यता से जलना नहीं चाहिए, बल्कि उससे सीख लेकर खुद को भी बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

3- अकबर का साला

बीरबल की बुद्धि और समस्या को भाप लेने की कला के कारण बादशाह उन्हें खूब पसंद करते थे। इसी कारण से दूसरे लोग बीरबल से उतना ही जलते थे। इन जलने वालों में से एक अकबर का साला भी था। वो हमेशा से ही बीरबल को मिला हुआ खास स्थान लेना चाहता था।

बादशाह जानते थे कि बीरबल जैसा कोई और नहीं हो सकता है। वो अपने साले को भी ये बात समझाने की कोशिश करते थे, लेकिन उनका साला हमेशा कहता था कि वो भी काफी बुद्धिमान है। इन सब बातों के कारण एक बार बादशाह के मन में हुआ कि अब ये ऐसे नहीं मानेगा। इसे कुछ कार्य देकर ही समझाने पड़ेगा।

तभी अकबर ने अपने साले से कहा कि तुम अपने दिमाग और सूझबूझ से इस कोयले की बोरी को सबसे ज्यादा लालची सेठ दमड़ी लाल को बचकर आओ। अगर तुमने ऐसा कर दिया, तो मैं तुम्हें तुरंत बीरबल की जगह दे दूंगा।

यह बात सुनकर अकबर का साला हैरान हुआ, लेकिन उसे बीरबल की जगह चाहिए थी। इसी सोच के साथ वो कोयले की बोरी लेकर सेठ के पास पहुंच गया। सेठ ऐसे ही किसी की भी बातों में आने वाला नहीं था, इसलिए उसने उसे खरीदने से मना कर दिया।

अब अपना उदास चेहरा लेकर अकबर का साला महल लौट आया। उसने कहा कि मैं इसे नहीं बेच पाया।

इतना सुनते ही बादशाह ने बीरबल को अपने पास बुलाया। उन्होंने अपने साले के सामने ही बीरबल से कहा कि तुम्हें सेठ दमड़ी लाल को यह कोयले की बोरी बेचनी है।

बादशाह का आदेश मिलने पर बीरबल ने कहा कि आप एक बोरी बेचने के लिए कह रहे हैं। मैं उस सेठ को एक कोयले का टुकड़ा ही दस हजार में बेच सकता हूं। यह बात सुनकर अकबर का साला दंग रह गया।

अकबर ने कहा कि ठीक है तुम एक ही कोयले का टुकड़ा बेच आओ।बादशाह का आदेश मिलते ही एक कोयले का टुकड़ा उठाकर बीरबल वहां से चले गए। उन्होंने सबसे पहले एक मलमल के कपड़े का कुर्ता अपने लिए सिलवाया।

फिर उसे पहनकर अपने गले में हीरे-मोती की मालाएं डाल लीं और महंगे दिखने वाले जूते भी पहन लिए। इतना सब करने के बाद बीरबल ने उस कोयले के टुकड़े को सुरमा यानी काजल की तरह बारीक पीसकर एक कांच की डिब्बी में डलवा लिया।

इसी भेष में वो महल के मेहमानघर में आ गए। फिर बीरबल ने एक इश्तिहार दिया कि बगदाद में एक जाने माने शेख पहुंचे हैं, जो जादुई सुरमा बेचते हैं। सुरमे की खासियत में बीरबल ने लिखवाया कि इसे लगाने वाला अपने पूर्वजों को देख सकता है। यदि पूर्वजों ने कोई धन छुपाकर रखा है, तो वो उसका पता भी बता देंगे।

इस इश्तिहार के सामने आते ही पूरे नगर में बीरबल के शेख रूप और चमत्कारी सुरमे की ही बात होने लगी। सेठ दमड़ी लाल तक भी यह बात पहुंच गई। उसके मन में हुआ जरूर मेरे पूर्वज ने धन गाड़ रखा होगा। मुझे तुरंत शेख से संपर्क करना चाहिए। इतना सोचकर दमड़ी लाल शेख बने बीरबल के पास पहुंचा।

बीरबल ने जानबूझकर उन्हें पहचाना नहीं। सेठ ने शेख से कहा कि मुझे सुरमे की डिब्बी चाहिए।

शेख ने जवाब दिया, “बिल्कुल लीजिए, लेकिन एक डिब्बी की कीमत दस हजार रुपये है।”

सेठ काफी चालाक था। उसने शेख से कहा कि मैं पहले सुरमा आंखों पर लगाना चाहता हूं। उसके बाद पूर्वजों के दिखने पर ही मैं दस हजार रुपये दूंगा।

शेख बने बीरबल ने कहा कि ठीक है, आपको ऐसा करने की इजाजत है। बस आपको सुरमे की जांच करने के लिए चौराहे पर चलना होगा।

चमत्कारी सुरमे का करिश्मा देखने के लिए वहां लोगों की भीड़ लग गई। तब बीरबल बने शेख जोर-जोर से कहने लगे कि इस चमत्कारी सुरमे को सेठ जी लगाएंगे। अगर ये सेठ अपने माता-पिता की ही औलाद हैं, तो इन्हें सुरमा लगाते ही तुरंत पूर्वज नजर आ जाएंगे। पूर्वज नहीं दिखे, तो मतलब यह होगा कि वो अपने माता-पिता की औलाद नहीं हैं।

असली औलादों को ही यह सुरमा लगाने पर अपने पूर्वज नजर आते हैं।यह सब कहने के बाद शेख ने सेठ के आंखों पर सुरमा लगा दिया और कहा कि आंखें बंद कर लो। सेठ ने आंखें बंद तो की लेकिन उन्हें कोई भी नहीं दिखा। अब सेठ के मन में हुआ कि मैंने कह दिया कि मुझे कोई नहीं दिखा, तो भारी अपमान हो जाएगा।

इज्जत को बनाए रखने के लिए सेठ ने आंख खोली और कहा कि हां, मुझे अपने पूर्वज दिख गए। इसके बाद गुस्से में लाल सेठ ने बीरबल के हाथ में 10 हजार रुपये थमा दिए।अब खुश होते हुए बीरबल महल चले गए। उन्होंने कहा कि लीजिए बादशाह एक कोयले के 10 हजार रुपये और सारा किस्सा सुना दिया। यह देखते ही बादशाह का साला मुंह बनाकर महल से चला गया। उसके बाद से उसने कभी भी बीरबल की जगह लेने की बात अकबर से नहीं की।

कहानी से सीख :– किसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए और अपनी काबिलियत को साबित करने के लिए बुद्धि का उपयोग करना जरूरी है।

4- बीरबल की योग्यता 

बादशाह अकबर के दरबार में बीरबल का बोलबाला था। बीरबल की चतुराई और सूझबूझ ने उन्हें बादशाह का खास बना दिया था। इस कारण दरबार में बहुत से लोग बीरबल से जलते थे। इन लोगों में बादशाह अकबर के साले साहब भी थे। साले साहब बीरबल को नीचा दिखाने के लिए कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे, लेकिन हर बार उन्हें ही मुंह की खानी पड़ती थी। बेगम का भाई होने की वजह से बादशाह भी उसे कुछ नहीं कहते थे।

एक दिन बीरबल की गैरमौजूदगी में साले साहब ने बादशाह अकबर से दीवान पद की मांग कर डाली। बादशाह ने साले साहब की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने साले साहब से कहा, “आज मुझे सुबह-सुबह महल के पीछे बिल्ली के बच्चों की आवाज सुनाई दी है। लगता है कि किसी बिल्ली ने बच्चे दिए हैं, जाकर देखकर आओ कि यह बात सच है या नहीं।”

साले साहब झट से महल के पीछे गए और वापस आकर बोलते हैं, “आपकी बात सच है, महल के पीछे एक बिल्ली ने बच्चों को जन्म दिया है।”

बादशाह ने कहा, “अच्छा, जरा यह बताओ कि बिल्ली ने कितने बच्चों को जन्म दिया है?” साले साहब ने जवाब में कहा, “यह तो मुझे नहीं पता, मैं अभी पता करके आता हूं महाराज।”

इतना कहकर वो फिर से महल के पीछे गए और वापस आकर कहते हैं, “महाराज, बिल्ली पांच बच्चों की मां बनी है।”

बादशाह अकबर ने पूछा, “अच्छा, जरा यह बताओ कि उन पांच बच्चों में से कितनी मादा हैं और कितने नर हैं?” साले साहब ने जवाब में कहा, “मैंने यह तो देखा ही नहीं, मैं अभी देखकर आता हूं।” इतना कहकर वो फिर से महल के पीछे जाते हैं और थोड़ी देर बाद आकर कहते हैं, “महाराज, बिल्ली के पांच बच्चों में से तीन नर हैं और दो मादा हैं।”

बादशाह अकबर ने अपने साले साहब से फिर से एक सवाल पूछा, “बिल्ली के नर बच्चे किस रंग के हैं? सवाल के जवाब में साले साहब ने कहा, “मैं अभी देखकर आता हूं।” बादशाह अकबर ने कहा, “रहने दो, बैठ जाओ।”

इतने में बीरबल राज दरबार में पहुंच चुके थे। बादशाह ने बीरबल से कहा, “बीरबल, महल के पीछे बिल्ली ने बच्चों को जन्म दिया है, जरा देखकर आओ कि क्या यह बात सही है। बीरबल ने कहा, “मैं अभी देखकर आता हूं महाराज।” ऐसा कह कर वह महल के पीछे देखने के लिए चले गए।

वापस लौट कर बीरबल ने बादशाह अकबर को बताया, “महाराज, बिल्ली ने बच्चों को जन्म दिया है।”

बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बिल्ली कितने बच्चों की मां बनी है?” बीरबल ने तुरंत जवाब दिया, “महाराज, पांच बच्चों की।”

बादशाह ने फिर से सवाल किया, “बिल्ली के बच्चों में से कितनी मादा हैं और कितने नर हैं?” बीरबल ने तुरंत जवाब दिया, “महाराज, तीन नर और दो मादा।”

बादशाह अकबर ने एक बार फिर से बीरबल से सवाल किया, “बिल्ली के नर बच्चे किस रंग के हैं?” बीरबल ने तुरंत जवाब दिया, “महाराज, दो नर बच्चों का रंग काला और एक का बादामी है।”

अब महाराज ने पास बैठे अपने साले साहब की तरफ देखा और पूछा, “तुम्हारा इस बारे में क्या कहना है?” साले साहब शर्मिंदगी से सिर झुकाए बैठे रहे और कुछ न कह सके।

कहानी से सीख : इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी की सफलता से जलना नहीं चाहिए।

अकबर-बीरबल की कहानियां ज्ञानवर्धक, मनोरंजक और सीखदायक होती हैं जो आपको समय-समय पर याद करने और उन्हें अपने जीवन में उपयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं। इस लेख में, हम आपको अकबर-बीरबल की कुछ चुनिंदा कहानियों के बारे में बताएंगे।

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