APARA EKADASHI KI KAHANI IN HINDI (निर्जला एकादशी के पीछे की कहानी क्या है?)

By Shweta Soni

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हेलो दोस्तों,

मेरा नाम श्वेता है और आज मई आप सभी के लिए आपारा एकादशी की कहानी लेके आई हु। हमारे हिन्दुओ में एकादशी का महत्व है, आपारा एकादशी की कहानी आप सभी को जननी चाहिए की क्यों इस व्रत को रखा जाता है एकादशी से हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। आप सभी को एकादशी की कथा जरूर पढ़नी चाहिए। तो आप सभा दोस्तों इस कथा को जरूर पढ़े अगर कथा आप सभी को अच्छी लगे तो अपने परिवार और दोस्तों में शेयर जरूर करे धन्यवाद

अपरा एकादशी व्रत हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। अपरा एकादशी का नाम “अपरा” उसकी महिमा को दर्शाता है, जो अनंत धर्म, शुद्धता और पुण्य को प्राप्त करने में सहायता करती है। इस एकादशी व्रत का मान्यता से पालन करने से व्यक्ति को अपार आध्यात्मिक और लौकिक लाभ प्राप्त होते हैं।

अपरा एकादशी की कथा विष्णु पुराण में वर्णित है। कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण वृद्धा नामक राजकुमार था जिसका एक मित्र भृगु ऋषि था। वृद्धा ने बहुत कठिन तपस्या करके पापों से मुक्त होने का इच्छुक होते हुए भृगु ऋषि से यह जानने के लिए पूछा कि कौन सा व्रत उन्हें पापों से मुक्ति दिला सकता है। तब भृगु ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत करने की विधि और महिमा का वर्णन किया।

APARA EKADASHI KI KAHANI IN HINDI (निर्जला एकादशी के पीछे की कहानी क्या है?)
APARA EKADASHI KI KAHANI IN HINDI (निर्जला एकादशी के पीछे की कहानी क्या है?)

आपारा एकादशी की कहानी:

बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक बहुत ही धार्मिक और निष्ठावान व्यक्ति नामक राजा राज कर रहा था। राजा ने हमेशा अपने राज्य की खुशहाली के लिए व्रत और उपासना का ध्यान रखा था। उनके राज्य में धर्म, संस्कृति और परंपरागत मान्यताओं को बहुत महत्व दिया जाता था।

एक दिन राजा ने जनता के साथ एक धार्मिक सभा में भाग लिया और वहां एक महात्मा ने उन्हें एकादशी व्रत के बारे में बताया। एकादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है जिसे धार्मिक व्यक्ति विशेष आदर्शों के साथ मनाते हैं। राजा ने इस व्रत के महत्व को समझा और इसे अपने राज्य में मनाने का निर्णय लिया।

जब एकादशी का दिन आया, तो राजा ने सभी लोगों को यह व्रत मनाने के लिए कहा। सभी लोगों ने आदेश का पालन किया और एकादशी व्रत रखा। इस व्रत के दौरान उन्हें खाने-पीने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने इसे मन की शक्ति और धैर प्रशांतता के साथ पाला। राजा के राज्य में सभी लोग अपने सम्पूर्ण मन, वचन और कर्मों को भगवान की अर्पण करने में लगे रहे। एकादशी व्रत के द्वारा, उन्होंने अपनी आत्मा को उन्नति और मुक्ति की ओर प्रवृत्त किया।

एक बार राजा को राज्य में बहुत अधिक अपराधियों की सूची मिली। वे अपराधियों की पूछताछ करने के लिए अपने दरबार में बैठे और सभी आदेश दिए कि वे तुरंत पकड़े जाएं और उनके दोषों का प्रतिशोध लिया जाए। अचानक, एक महिला ने अपना आपको सभा में प्रकट किया और राजा की सेवा के लिए निवेदन किया। राजा ने उसे पूछा कि वह कौन है और क्या कारण है जिसके लिए वह उनकी सेवा करना चाहती है। महिला ने कहा कि वह एक गरीब विधवा है और वह एकादशी व्रत को सही तरीके से नहीं मानती है।

महिला ने कहा, “महाराज, मैंने सचमुच बड़े पाप किए हैं और मैं इन पापों की प्रायश्चित्त करना चाहती हूं। क्या मैं अपने पापों की प्रायश्चित्त के लिए एकादशी का व्रत रख सकती हूँ?” राजा ने उसे ध्यान से सुना और फिर कहा, “अगर तुम सचमुच अपने पापों की प्रायश्चित्त करना चाहती हो, तो तुम्हें अपारा एकादशी का व्रत रखना चाहिए। यह व्रत तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिलाएगा।”

महिला धन्यवाद करते हुए उस व्रत को रखने की सहमति दी। राजा ने उसे व्रत के बारे में विस्तार से बताया और उसे उपवास, प्रार्थना, मनन और ध्यान की महत्वपूर्णता समझाई। उन्होंने उसे यह भी सिखाया कि एकादशी व्रत के दौरान उन्हें किसी भी प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए और व्रत के समय पूरी मन, वचन और काया से भगवान की आराधना करनी चाहिए।

इस प्रकार, अपारा एकादशी का व्रत शुरू हुआ। महिला ने अपना उपवास रखा, पूजा की और भगवान की स्तुति की। वह पूरे दिन व्रत के नियमों का पालन करते हुए बिताया। अपारा एकादशी के दूसरे दिन, राजा ने उसे अपने दरबार में बुलाया। जब उसने वहां पहुंचा, तो उसे देखकर सभी आश्चर्यचकितहो गए।

महिला की रौशनी और चेहरे पर एक आनंदमय मुस्कान थी। राजा ने उसे पूछा, “वाह, तुम्हारी आँखों में कौन सा चमत्कार हुआ है? क्या तुम्हें अपारा एकादशी व्रत का फल मिला है?” महिला ने आदर सहित उत्तर दिया, “हाँ, महाराज। यह एकादशी व्रत मेरे जीवन में एक अद्वितीय परिवर्तन लाया है। मैंने अपने पापों की प्रायश्चित्त की और भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा बढ़ाई है। मेरी मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि हुई है और मैं अपने जीवन को धार्मिकता और नैतिकता से भर देने के लिए प्रेरित हुई हूँ।”

राजा बहुत प्रसन्न हुए और महिला की धार्मिकता, नैतिकता और निष्ठा की प्रशंसा की। उन्होंने महिला को आशीर्वाद दिया और उसे अपने राज्य में एक उच्च स्थान पर नियुक्ति दी। उसके विचार और जीवनशैली को देखकर, बाकी लोग भी एकादशी व्रत का महत्व समझने लगे और इसे अपने जीवन में शामिल करने लगे।

इस प्रकार, आपारा एकादशी के व्रत की कहानी से सभी लोगों ने एकादशी व्रत के महत्व को समझा और उसे अपने जीवन में अंकित करने का संकल्प लिया। वे इस व्रत को नियमित रूप से आचरण करने लगे और अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते रहे।

आपारा एकादशी की कहानी से हमें यह सिखाती है कि धार्मिकता, नैतिकता और भक्ति के माध्यम से हम अपने अंतरंग मन को शुद्ध कर सकते हैं और भगवान के साथ गहरी संवाद कर सकते हैं। इसके अलावा, एकादशी व्रत हमें सामर्थ्य और त्याग का संदेश भी देता है, क्योंकि हम इसे खाने-पीने से विरत रखते हैं और अपनी इंद्रियों का नियंत्रण करते हैं।

आपारा एकादशी की कहानी हमें यह भी दिखाती है कि भगवान धार्मिक और ईमानदार लोगों की सुनते हैं और उन्हें अपना आशीर्वाद देते हैं। इसलिए हमें सदैव ईमानदार और धार्मिक जीवन जीना चाहिए।

निर्जला एकादशी के पीछे की कहानी क्या है?

निर्जला एकादशी एक महत्वपूर्ण हिन्दू व्रत है जो वैष्णवों द्वारा मान्यता प्राप्त है। यह एकादशी व्रत जून माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस व्रत में भक्त उपास्य अपारा जल (निर्जला जल) का सेवन करते हैं, जिसमें वे पूरे दिन बिना भोजन और पानी के रहते हैं।

निर्जला एकादशी की कहानी विष्णु पुराण में प्रमुख रूप से प्रस्तुत की जाती है। एक समय की बात है, ऋषि व्यास ने पांडवों को युद्ध से पहले उपदेश दिया था, जिसमें उन्हें विभिन्न धर्मिक व्रतों के महत्व के बारे में बताया गया था। अपने उपदेश में उन्होंने निर्जला एकादशी के व्रत के बारे में भी बताया।

कहते हैं, एक बार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन, युधिष्ठिर महाराज ने वेद व्यास जी से पूछा कि कृष्ण भक्ति और पापों की प्रायश्चित्त के लिए कौन-कौन से व्रत रखे जाने चाहिए। ऋषि व्यास जी ने अपने उपदेश में कहा कि निर्जला एकादशी व्रत द्वार कहा गया कि निर्जला एकादशी व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऋषि व्यास जी ने कहा, “यह व्रत भगवान विष्णु की अत्यंत प्रिय व्रतों में से एक है। इस व्रत को रखने से भक्त को सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।”

ऋषि व्यास जी ने फिर एक कथा सुनाई जिसमें निर्जला एकादशी व्रत के महत्व का वर्णन था। कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक राजा नामक व्यापारी अत्यंत धर्मात्मा था। वह हर सप्ताह में एकादशी का व्रत रखता था और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ इस व्रत को पालन करता था। लेकिन उसकी पत्नी ने निर्जला एकादशी का व्रत कभी नहीं रखा था क्योंकि उसे प्यास लगने की समस्या होती थी और वह दिन बिना पानी के नहीं रह सकती थी।

एक बार, निर्जला एकादशी के दिन राजा और उसकी पत्नी व्रत के नियमों के अनुसार रहते हुए अपारा जल का त्याग करने आये। राजा ने पत्नी को व्रत के महत्व का समझाया और कहा, “यह व्रत हमारी पापों की प्रायश्चित्त करने का एक अद्वितीय अविधान है। हमें इस व्रत को निष्ठा और श्रद्धा से पालना चाहिए।”

पत्नी ने धैर्य से कहा, “मेरे प्यास भगवान की कृपा से दूर हो जाएगी। मैं इस व्रत को पूरे मन से करने को तैयार हूँ।” वह निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने का संकल्प ले लिया।

व्रत के दिन पत्नी ने अपारा जल का त्याग कर दिया और उसने प्यासा रहते हुए एकादशी की पूजा की। वह भगवान विष्णु को अर्घ्य और पुष्प अर्पित करती रही और उनकी आराधना करती रही। इस प्रकार उसने पूरे दिन बिना पानी पीए व्रत का पालन किया।

भगवान विष्णु ने देखा कि राजा की पत्नी ने निर्जला एकादशी व्रत का अद्वितीय समर्पण किया है। उन्होंने पत्नी के प्रति अपनी कृपा दिखाई और उसे अपना आशीर्वाद दिया। व्रत के अगले दिन सुबह, पत्नी को अचानक पानी की बहुत अधिक प्यास हुई। वह खुशी से पानी पीने गई और उसे अपनी प्यास मिटी।

इस प्रकार, निर्जला एकादशी व्रत रखने से पत्नी ने अपने प्यास को भगवान की कृप के बल पर मिटा दिया था। वह और राजा दोनों ने निर्जला एकादशी के व्रत का पालन करके अपने पापों से मुक्ति प्राप्त की और अपने जीवन को धार्मिक और ईमानदार बनाने का आशीर्वाद प्राप्त किया।

निर्जला एकादशी की कहानी से हमें यह सिखाती है कि भक्ति, निष्ठा और आत्मसमर्पण के माध्यम से हम अपनी अंतरंग मन को शुद्ध कर सकते हैं और भगवान के प्रति अपना समर्पण कर सकते हैं। इस व्रत से हम अपनी इंद्रियों का नियंत्रण करते हैं और आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रगति करते हैं। यह व्रत हमें त्याग की महत्वपूर्ण शिक्षा देता है और हमें सम्पूर्ण आत्मसंयम की अपनी शक्ति को दिखाता है।

निर्जला एकादशी के पीछे की कहानी हमें यह भी बताती है कि भगवान धार्मिक और सत्यनिष्ठ लोगों की प्रार्थनाएं सुनते हैं और उन्हें अपना आशीर्वाद देते हैं। इसलिए हमें सदैव ईमानदार, निष्ठावान और धार्मिक जीवन जीना चाहिए।

निर्जला एकादशी की कहानी से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि निर्जला एकादशी व्रत में भगवान के सामर्थ्य और उनके अनुग्रह का अनुभव होता है। व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति मिलती है, जो उसे दुःखों और संकटों का सामना करने में सहायता करती है। इसके साथ ही, व्रत करने से हम अपने आपको संयमित और विनयी बनाने का अवसर प्राप्त करते हैं।

निर्जला एकादशी की कहानी हमें अपारा जल (निर्जला जल) के महत्व को भी समझाती है। अपारा जल का सेवन करने से हम शरीर, मन और आत्मा को शुद्धि प्राप्त करते हैं। यह हमारे अंतरंग और बाह्य शुद्धि का प्रतीक है और हमें भगवान के समीपता का अनुभव कराता है।

इस प्रकार, निर्जला एकादशी व्रत एक महत्वपूर्ण और पवित्र धार्मिक व्रत है जो भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति, पापों से मुक्ति और आत्मानुभव का अनुभव कराता है। इसके माध्यम से हम अपने जीवन को धार्मिक, नैतिक और आदर्शपूर्ण बनाने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं और भगवान के प्रति अप निर्जला एकादशी व्रत के प्रति आदर्शभूत समर्पण का बोध कराता है। हमें यह याद दिलाता है कि धार्मिक व्रतों का महत्व सिर्फ शारीरिक आहार से नहीं होता है, बल्क यह मन, चित्त, और आत्मा के संयम और पवित्रता में भी स्थापित होता है।

निर्जला एकादशी का व्रत भक्ति, त्याग, और सेवा के माध्यम से हमारी आध्यात्मिक प्रगति को प्रोत्साहित करता है। इस व्रत के द्वारा हम अपने अन्तरंग मन को निर्मल और शुद्ध बनाते हैं और अपनी आत्मा के साथ संवाद स्थापित करते हैं। हम इस व्रत के माध्यम से अपनी इंद्रियों का नियंत्रण करते हैं और संतुलित और धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

इस रूप में, निर्जला एकादशी व्रत हमें आध्यात्मिक संयम, धार्मिकता, और सेवाभाव का महत्व सिखाता है। यह हमें भगवान के समीपता और आत्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए एक मार्ग प्रदान करता है। हमें इस व्रत का पालन करके अपने जीवन को धार्मिक, सत्यनिष्ठ, और पवित्र बनाने की प्रेरणा पती है। निर्जला एकादशी व्रत के द्वारा हम अपने मन को शुद्ध करते हैं, अशुद्ध विचारों और क्रियाओं से परे रहते हैं और आत्मा के साथ गहरा संवाद स्थापित करते हैं।

यह एकादशी व्रत हमें धार्मिकता, संयम, त्याग, और सेवा के महत्व को समझाता है। निर्जला एकादशी की कहानी से हमें यह भी सिखाती है कि जब हम भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और निष्ठा से व्रत का पालन करते हैं, तो भगवान हमारी प्रार्थना को सुनते हैं और हमें अपना आशीर्वाद देते हैं। यह हमारी श्रद्धा और विश्वास को बढ़ाता है और हमें आत्मिक शांति और सुख की प्राप्ति का अनुभव कराता है।

इस रूप में, निर्जला एकादशी की कहानी हमें धार्मिक आदर्शों, निष्ठा, और आत्मसमर्पण के महत्व को समझाती है। इस व्रत का पालन करने से हम अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा और प्रगति से भर देते हैं और भगवान के प्रति हमारी भक्ति और प्रेम का प्रकटन करते हैं। यह हमें संयमित, ईमानदार, और नैतिक जीवन जी निर्जला एकादशी की कहानी में आगे बढ़ते हैं।

राजा के साथी राजवैद्य समझ गए कि व्रत के बिना उन्हें निर्जला एकादशी का उच्चारण नहीं करना चाहिए। इसके बाद राजा और उनके साथी ने अपने पापों की क्षमा की याचना करते हुए निर्जला एकादशी का पालन किया। वे पूरे दिन निर्जला व्रत के साथ नियमित रूप से भगवान का ध्यान करते रहे। उन्होंने अपारा जल का त्याग किया और पूरे दिन भगवान की पूजा-अर्चना की।

व्रत के अंत में, राजा और उनके साथी ने भगवान को सज्जित भोग और दक्षिणा अर्पित की। उन्होंने भगवान का आभार व्यक्त किया और आशीर्वाद मांगा। भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें आनंद और समृद्धि का आशीर्वाद दिया।

इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने से हम अपने अंतरंग और बाह्य शुद्धि की प्राप्ति करते हैं। यह हमें आत्मविश्वास, संयम, और समर्पण की महत्वपूर्णता को बताती है। इस रूप में, निर्जला एकादशी की कहानी हमें यह सिखाती है कि भगवान की भक्ति और आदर्शों के प्रति समर्पित होने से हम अपने जीवन को संतुष्ट, आध्यात्मिक और सामर्थिक बना सकते हैं। यह हमें अपार शक्ति, स्वास्थ्य, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति का मार्ग प्रदान करती है।

निर्जला एकादशी की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि व्रत का महत्व उसके पालन के लिए संयम, त्याग और संचित भावनाओं का अनुभव करना होता है। हमें खुशहाली और समृद्धि की प्राप्ति के लिए अपने मन को शुद्ध करना और भगवान के प्रति समर्पण और विश्वास रखना चाहिए। इससे हम अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाते हैं और सच्ची संतुष्टि का अनुभव करते हैं। इस प्रकार, निर्जला एकादशी व्रत की कहानी हमें धार्मिकता, संयम, आत्मविश्वास, और भगवान के प्रति निष्ठा के महत्व को समझाती है।

सबसे महत्वपूर्ण एकादशी कौन सी है?

एकादशी व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख एकादशी जिन्हें ‘परम एकादशी’ या ‘वैष्णव एकादशी’ के रूप में भी जाना जाता है, हैं गोविंदा एकादशी (Govinda Ekadashi) और शयन एकादशी (Shayani Ekadashi)।

  1. गोविंदा एकादशी (Govinda Ekadashi): यह एकादशी श्रावण मास (भाद्रपद मास के पूर्णिमा के पहले) के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है। इस एकादशी को विष्णुपत्नी या योगिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है और भक्ति के साथ उनका स्मरण किया जाता है। इस एकादशी का पालन करने से सभी पापों का नाश होता है और आध्यात्मिक प्रगति के मार्ग में आगे बढ़ाया जा सकता है।
  2. शयन एकादशी (Shayani Ekadashi): यह एकादशी आषाढ़ मास (आषाढ़ कृष्ण पक्ष में) की एकादशी होती है और जनसाधारण को देवशयनी एकादशी या पांडवनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की निद्रा पर चार महीने की विश्राम का आरंभ होता शयन एकादशी (Shayani Ekadashi) के बाद चार महीने तक भगवान विष्णु अपने योगनिद्रा में सोते रहते हैं। यह समय हिंदू कैलेंडर के आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, और आश्विन मास के बीच में पड़ता है, जिसे चातुर्मास (Chaturmas) के नाम से भी जाना जाता है। इस पीरियड में संन्यासी और धार्मिक लोग तपस्या, पूजा, जप, ध्यान और धार्मिक कार्यों में अधिकतर समय व्यतीत करते हैं।

शयन एकादशी व्रत को पालन करने से हमें शुभता, पवित्रता और मानसिक तत्वों का संयम बढ़ता है। यह व्रत हमें आत्मशुद्धि, आध्यात्मिक प्रागति और धार्मिक दृष्टिकोण को स्थायी बनाने में मदद करता है। यह एकादशी व्रत भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, और इसे पालन करने से हमें मानवता, सामाजिक न्याय, और धर्मिक नीतियों के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा मिलती है।

इस प्रकार, शयन एकादशी व्रत हमें धार्मिकता, आध्यात्मिकता, और आदर्शों के प्रति समर्पित होने का मार शयन एकादशी व्रत का महत्व इसलिए अधिक होता है क्योंकि इसे मनाने से हम अपने जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। यह व्रत हमें मानवीय गुणों जैसे संयम, त्याग, दया, क्षमा, और सहानुभूति को विकसित करने में सहायता करता है। इसके अलावा, शयन एकादशी व्रत से हम अपनी मनोदशा को नियंत्रित करते हैं और अपने अंतरंग ध्यान को बढ़ाते हैं।

शयन एकादशी का अनुसरण करने से हम अपने मन को निर्मल और पवित्र बनाते हैं और नेगेटिव भावनाओं से मुक्त होते हैं। यह हमें सत्य, ईमानदारी, और निष्ठा की प्रेरणा देता है। शयन एकादशी व्रत का पालन करने से हमारा जीवन सुखी, शांतिपूर्ण, और समृद्ध होता है। इसके साथ ही, हम भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं जो हमें आध्यात्मिक और मानसिक विकास में मदद करते हैं।

शयन एकादशी की महिमा और महत्व उसे अनेक धार्मिक प्रक्रियाओं और पूजाओं में शामिल होने के कारण शयन एकादशी की महिमा और महत्व उसे अनेक धार्मिक प्रक्रियाओं और पूजाओं में शामिल होने के कारण है। यह व्रत विशेष रूप से वैष्णव सम्प्रदाय में मान्यता प्राप्त है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके स्मरण में लीन होते हैं।

शयन एकादशी का विशेष महत्व इसके बारे में कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति शयन एकादशी के व्रत को सम्पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा से मान्यता के साथ पालता है, तो उसे सारे पापों का नाश होता है और उसके धार्मिक और आध्यात्मिक सफलता के द्वार खुलते हैं।

शयन एकादशी के दिन भगवान विष्णु के लिए पूजा-अर्चना करने के अलावा, लोग विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र, भजन, कीर्तन और ध्यान का अधिक समय देते हैं। विभिन्न मंदिरों में विशेष पूजाएं और आयोजन होते हैं जहां भक्तगण एकत्रित होते हैं और भगवान की कृपा की कामना करते हैं।

कितनी एकादशी करनी चाहिए?

हिंदू धर्म में साल में कुल 24 एकादशी व्रत होते हैं। यह सभी एकादशी व्रत भगवान विष्णु की पूजा और स्मरण में समर्पित होते हैं। धार्मिक ग्रंथों में विविध एकादशी व्रतों के विवरण दिए गए हैं और यहां उनके नाम दिए जा रहे हैं:

  1. पापमोचनी एकादशी (Paapmochani Ekadashi)
  2. वासंती एकादशी (Vaishnavi Ekadashi)
  3. मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi)
  4. अपरा एकादशी (Apara Ekadashi)
  5. पद्मिनी एकादशी (Padma Ekadashi)
  6. शयन एकादशी (Shayani Ekadashi)
  7. कामिक एकादशी (Kamika Ekadashi)
  8. वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi)
  9. आशाढ़ी एकादशी (Aashadhi Ekadashi)
  10. जयन्ती एकादशी (Jyeshtha Ekadashi)
  11. कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi)
  12. आदित्य एकादशी (Aditya Ekadashi)
  13. देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi)
  14. पवित्रा एकादशी (Pavitra Ekadashi)
  15. आश्विनी एकादशी (Ashwini Ekadashi)
  16. इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi)
  17. पाशांकुशा एकादशी (Pashankusha Ekadashi)
  18. रामा एकादशी (Rama Ekadashi)
  19. उत्थान एकादशी (Utthana Ekadashi)
  20. मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi)
  21. सफला एकादशी (Safala Ekadashi)
  22. पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi)
  23. शततिला एकादशी (Shat-tila Ekadashi)
  24. पारमा एकादशी (Parama Ekadashi)
APARA EKADASHI KI KAHANI IN HINDI (निर्जला एकादशी के पीछे की कहानी क्या है?)
APARA EKADASHI KI KAHANI IN HINDI (निर्जला एकादशी के पीछे की कहानी क्या है?)

धार्मिक संस्कृति में एकादशी व्रत को मासिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है और भक्तजन इन एकादशी व्रतों का पालन करते हैं। हालांकि, इनमें से कितनी एकादशी व्रतें करनी चाहिए यह व्यक्ति की आस्था, संकल्प और सामर्थ्य पर निर्भर करता है। कुछ लोग सभी एकादशी व्रतों का पालन करते हैं, जबकि कुछ लोग कुछ चुनिंदा एकादशी व्रतों को ही करते हैं। व्यक्ति अपनी आस्था और साधना के आधार पर अपनी योग्यता के अनुसार एकादशी व्रतों का चयन कर सकता है।

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