BHAGWAN JAGANNATH KI KAHANI IN HINDI (भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है?)

By Shweta Soni

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हेलो दोस्तों जय श्री राम,

मेरा नाम श्वेता है और आज मै अपने लेख में आप सभी दोस्तों के लिए भगवन जगन्नाथ की कहानी लेके आई हु आप सभी को कहानी पसंद आएगी। इस कहानी में मैंने भगवन जगन्नाथ जी के बारे में बहुत कुछ बताया है भगवन जगन्नाथ जी प्रकट कैसे हुए ,जगन्नाथ मंदिर का रहस्य क्या है ऐसे बहुत से रहस्य का उल्लेख लिया है। उम्मीद करती हु की आप सभी को भगवन जगन्नाथ की कहानी अच्छे लगे और भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है? वो जाने धन्यवाद।

भगवान जगन्नाथ की कहानी हिंदू धर्म के प्रसिद्ध देवताओं में से एक है। यह कथा उत्तर प्रदेश में स्थित पुरी मंदिर के पास स्थित जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ी हुई है। भगवान जगन्नाथ को हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में माना जाता है।भगवान जगन्नाथ की कथा में कहा जाता है कि उनकी मूर्ति अनेक बार बदली गई है। लेकिन भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अब भी पुरी मंदिर में प्रचलित है। इसके साथ ही इस कथा में कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ को अपनी रथ यात्रा के दौरान उनकी भक्ति को पाने का बहुत ही उत्साह होता है।

भगवान जगन्नाथ की कथा में कहा जाता है कि उनकी मूर्ति में तीन अलग-अलग भाग होते हैं – मुख्य मूर्ति, भ्रामण और सुबद्रा। इसके साथ ही इस कथा में बताया जाता है कि जब लोग पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ की दर्शन करते हैं तो उन्हें अपने जीवन के सभी दुःखों से मुक्ति मिलती है।

इस प्रकार, भगवान जगन्नाथ की कथा बहुत ही महत्वपूर्ण है। भगवान जगन्नाथ को हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता माना जाता है और उनकी पूजा का महत्व भी अन्य देवताओं की पूजा से कम नहीं होता। भगवान जगन्नाथ की कथा में बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ के मंदिर में अगर कोई भी व्यक्ति अपनी समस्याओं को उनके सामने रखता है तो उन्हें उनकी मुख्य मूर्ति के सामने रखा जाता है और उनकी मदद से उन्हें उनकी समस्याओं से निजात मिलती है।

इसी तरह भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा का भी बहुत ही महत्व है। यह यात्रा हर साल अखड़ा महोत्सव के दौरान आयोजित की जाती है और लाखों भक्तों को आकर्षित करती है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, भगवती सुबद्रा और भगवान बलभद्र अपनी रथों पर निकलते हैं और लोग उनके दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं|

BHAGWAN JAGANNATH KI KAHANI IN HINDI (भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है?)
BHAGWAN JAGANNATH KI KAHANI IN HINDI (भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है?)

जगन्नाथ भगवान कैसे प्रकट हुए?

जगन्नाथ भगवान के प्रकट होने की कथा पुराने समय से प्रचलित है। इसके अनुसार, एक बार भगवान विष्णु के एक भक्त ने उनसे पूछा कि वह कैसे उन्हें देख सकता है। भगवान विष्णु ने उन्हें उत्तर दिया कि वह उन्हें यथासंभव उनकी पसंद के रूप में देखेंगे।

इसके बाद, एक दिन भगवान विष्णु ने अपने दो मित्रों बलभद्र और सुबद्रा के साथ एक जगह पर बैठे हुए भक्त के सामने प्रकट हुए। उन्होंने भक्त को बताया कि वे ही उनके प्रिय भक्त हैं और वह अब से उनकी पूजा के लिए जाने जाएंगे। भगवान विष्णु के इस रूप को ही बाद में जगन्नाथ के नाम से जाना जाने लगा।

इसके बाद से, भगवान जगन्नाथ के मंदिर में भक्तों की भक्ति और पूजा का महत्व बढ़ा और भगवान जगन्नाथ ने हमेशा से अपने भक्तों की समस्याओं का समाधान किया है। भगवान जगन्नाथ की पूजा भारत के विभिन्न हिस्सों में की जाती है और उनके मंदिरों में हर साल बड़े पर्व के अवसवांतर पर उनकी मूर्तियों को लाखों भक्तों द्वारा नवा यूंनन किया जाता है। भगवान जगन्नाथ के इस प्रकट होने का उल्लेख वेदों, पुराणों, और भक्ति ग्रंथों में भी मिलता है।

जगन्नाथ मंदिर उडीसा के पुरी शहर में स्थित है और भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर भारत में सबसे पुराने और महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। भगवान जगन्नाथ की पूजा के अलावा, इस मंदिर में भी कई अन्य देवताओं की मूर्तियां होती हैं और यह भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में माना जाता है।भगवान जगन्नाथ की कहानी और उनके प्रकट होने की कथा भारतीय संस्कृति के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण धार्मिक कथा है। यह कथा भक्तों को उनके ईश्वर के प्रति विश्वास को मजबूत करने में मदद करती है।

भगवान जगन्नाथ के प्रकट होने की कथा के अनुसार, जगन्नाथ एक अदभुत रूप में प्रकट हुए थे। उनकी मूर्ति को कुछ लोग त्रिमूर्ति के रूप में जानते हैं, जिसमें वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में प्रकट होते हैं। इस रूप में उनकी मूर्ति चार हाथों वाली होती है और उन्हें चक्र, शंख और गदा जैसे आयुध होते हैं।

कथाओं के अनुसार, जगन्नाथ के विभिन्न अवतारों में उन्हें लक्ष्मी और विष्णु के रूप में प्रकट होते हुए भी देखा जा सकता है। उनकी मूर्ति भारत के विभिन्न भागों में देखी जाती है, लेकिन प्रमुखतः उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में ही उनकी मूर्तियां होती हैं।जगन्नाथ मंदिर में होने वाले रथ यात्रा का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे रथ जात्रा के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव के दौरान, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति और उनके भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां रथों पर स्थापित की जाती हैं|

इस रथ यात्रा का संचालन उड़ीसा के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर से होता है। इस उत्सव के दौरान, लाखों लोग यात्रा के साथ चलते हुए भगवान जगन्नाथ की भक्ति करते हैं। रथ यात्रा के दौरान, यात्रा के रथ को लोग खींचते हैं और उसे मंदिर के बाहर से शुरू करते हुए पूरी शहर के अलग-अलग हिस्सों से गुजारा जाता है।

जगन्नाथ मंदिर में होने वाली रथ यात्रा का उद्देश्य, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को उनके अधिकारिक घर से बाहर लाकर उन्हें उनके वास्तविक घर यानी मंदिर में स्थापित करना होता है। रथ यात्रा के दौरान, लोग भगवान जगन्नाथ को नए कपड़ों से सजाते हैं और उनके साथ पूजा-अर्चना करते हैं।

भगवान जगन्नाथ की कथाएं और उनके मंदिर के उत्सवों का महत्व भारत के वैदिक धर्म और हिंदू धर्म के अंतर्गत बहुत ही उच्च मान्यता के साथ हैं। भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां देश के विभिन्न भागों में पाई जाती हैं और लाखों लोग हर साल उनके उत्सवों में भाग लेते हैं।

जगन्नाथ मंदिर के इतिहास और रथ यात्रा के अलावा, भगवान जगन्नाथ के बारे में अन्य कथाएं भी हैं। एक कथा के अनुसार, जगन्नाथ भगवान की मूर्ति ने एक स्थानीय शिल्पकार द्वारा बनाई गई थी जो अपनी कला में बहुत ही माहिर था। उसकी मूर्ति में देखने में असंगत स्वरूप होने के कारण, इसे दिव्य मूर्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है।

जगन्नाथ भगवान की उपस्थिति को देखते हुए, अन्य कथाओं के अनुसार, वे लोगों की मनोकामनाओं को पूरा करने में सक्षम होते हैं और उनकी भक्ति से लोगों के जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ की पूजा के लिए, उनके मंदिर में हर दिन लाखों भक्त आते हैं। इस प्रकार, भगवान जगन्नाथ की कहानी हिंदू धर्म के इतिहास और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। भगवान जगन्नाथ की भक्ति और पूजा का महत्व भारतीय संस्कृति में काफी ऊँचा होता है और इसके उत्सव भारत विदेशों में भी मनाए जाते हैं। भक्तों को यह महसूस होता है कि भगवान जगन्नाथ की कृपा से उनके जीवन में सुख शांति की प्राप्ति होती है।

इसके अलावा, जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा भी एक महत्वपूर्ण उत्सव है जो भारत भर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस उत्सव में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्तियां रथों पर बैठाकर निकलती हैं जो लाखों लोगों द्वारा खींचे जाते हैं। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य भगवान जगन्नाथ की भक्ति और पूजा का प्रचार करना होता है तथा उनकी भक्ति के अंतर्गत लोगों को सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार, जगन्नाथ भगवान की कहानी और रथ यात्रा भारतीय संस्कृति और धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो लाखों लोगों के जीवन में सुख शांति की प्राप्ति होने में मदद करता है।

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है?

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी होने की कई लोक कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने के लिए देवदासी वसंता का उपयोग किया गया था। वसंता ने मूर्तियों को बनाने में इतना समय लगा दिया कि जब वह आखिरकार निर्माण कार्य करने के लिए तैयार हुईं तो उन्हें अंधेरे में काम करना पड़ा। उन्होंने मूर्तियों के सिर नहीं बनाए थे जबकि उनके शरीर पूर्ण थे। इसीलिए भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी दिखती है।

एक और कथा के अनुसार, जब भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को स्थापित किया जा रहा था, तब देवदासियों ने मूर्तियों को निर्माण करने के दौरान उन्हें सिर नहीं बनाया था। यह उनकी पूजा का नियम है कि अधूरी मूर्ति से पूजा करनी चाहिए। इसीलिए भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी दिखती है।

इन सभी कथाओं के अलावा, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का अधूरा होना धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण हा है। धर्म के अनुसार, भगवान जगन्नाथ ने अपने शरीर का एक अंश अपनी मूर्ति में रखा था। इसलिए मूर्ति अधूरी होने का एक और कारण यह है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में उनके शरीर का एक अंश नहीं होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, इससे यह संदेश दिया जाता है कि हमारे शरीर और आत्मा के बीच एक अंतर होता है।

शरीर के अंशों का एक सामान्य ज्ञान हमें यह बताता है कि हम एक दिन मर जाएंगे, लेकिन हमारी आत्मा अमर होती है।इसीलिए भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी होने का एक धार्मिक संदेश होता है। इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ के भक्त इसे एक आशीर्वाद मानते हैं कि जब वे मंदिर में भगवान की मूर्ति की पूजा करते हैं, तो वे अधूरी मूर्ति से पूजा करते हैं, जिससे उन्हें अपने जीवन में सम्पूर्णता की भावना प्राप्त होती है।

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी होने का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण भी है। इसके अनुसार, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति ऐसी होती है ताकि हर कोई उन्हें समानता के भाव से देख सके। भगवान जगन्नाथ के मंदिर में सभी लोग स्वतंत्र होते हैं और उन्हें समान भाव से पूजा की जाती है। इसी तरह, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति एक संगम है, जो धर्म, समाज और संस्कृति को सम्मिलित करता हुआ एक एकीकृत समाज का प्रतीक है।

इस प्रकार, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी होने के विभिन्न कारण होते हैं, जो इसे अनूठा बनाते हैं और इसके पीछे छिपे धार्मिक संदेश को समझाते हैं।

जगन्नाथ की मूर्ति हर 12 साल में क्यों बदली जाती है?

जगन्नाथ पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीनों देवताओं की मूर्तियों को हर 12 साल में नयी मूर्तियों से बदला जाता है। इसे “नवकल्प” कहते हैं। इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण होते हैं, जिन्हें निम्नलिखित रूप से समझाया जा सकता है:

  1. मूर्तियों का उत्थान: नयी मूर्तियों का उत्थान करना उन्हें प्राण प्रतिष्ठा करने का अवसर देता है। नयी मूर्तियों को सबसे पहले स्वच्छता से सम्मानित किया जाता है और फिर उन्हें पुरानी मूर्तियों से बदल दिया जाता है। इस प्रकार, मूर्तियों का उत्थान एक महत्वपूर्ण आयोजन होता है जो महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव का हिस्सा है।
  2. आस्था का संचार: जगन्नाथ मंदिर के नये नये मूर्ति उद्घाटन से देश और विदेश से लाखों लोग इस मंदिर में भ्रमण करते हैं। इसके द्वारा जगन्नाथ धर्म की आस्था और विश्वास का संचार किया जाता है।
  3. संस्कृति और धर्म का संरक्षण: नए मूर्तियों के उत्थान से धर्म और संस्कृति का संरक्षण होता है। जगन्नाथ मंदिर में नयी मूर्तियों का उत्थान करने से पुरानी मूर्तियों को धार्मिक रूप से संलग्न करने के बजाय उन्हें एक अलग संग्रहालय में संग्रहीत किया जाता है। इस प्रकार, इन मूर्तियों का संरक्षण एक महत्वपूर्ण कार्य होता है।
  4. शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार: जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को हर 12 साल में नयी मूर्तियों से बदलने का शास्त्रीय मान्यता से संबंध है। इसके अनुसार, जगन्नाथ मंदिर में स्थित तीन देवताओं की मूर्तियों को प्रतिदिन पूजा की जाती है और उन्हें नवकल्प के अवसर पर बदला जाता है।
  5. वैदिक मान्यताओं के अनुसार: वैदिक मान्यताओं के अनुसार, जगन्नाथ मंदिर में नवकल्प के अवसर पर नयी मूर्तियों का उत्थान करने से धर्म की शक्ति और वर्णनीयता में वृद्धि होती है।

इन सभी कारणों से, जगन्नाथ मंदिर में हर 12 साल में मूर्तियों को नवकल्प करना एक एक महत्वपूर्ण रीति है जो इस मंदिर को धर्म, संस्कृति और आस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।

इसके अलावा, नयी मूर्तियों के उत्थान का भी विशेष महत्व होता है। नयी मूर्तियों का उत्थान करने से पहले उन्हें तैयार करने के लिए उनके बनाने में अपने आप में कई महीने लगते हैं। इस प्रकार, नयी मूर्तियों का उत्थान न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण होता है, बल्कि उन्हें तैयार करने में विभिन्न व्यवसायों को भी रोजगार का अवसर प्रदान करता है।इस प्रकार, जगन्नाथ मंदिर में हर 12 साल में मूर्तियों के नवकल्प का रीती रिवाज इस मंदिर को एक अनोखे संस्कृतिक एवं धार्मिक केंद्र बनाता है जो भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इस रीति को ‘रथ यात्रा’ कहा जाता है। इस रथ यात्रा के दौरान जगन्नाथ भगवान की मूर्ति को नए अद्यात्मिक शक्ति के साथ नयी मूर्ति से स्थानांतरित किया जाता है। इसके लिए तीन रथों की सहायता से मूर्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। यह रथ यात्रा पुरे देश से और विदेश से लाखों लोगों को आकर्षित करती है।

इस रथ यात्रा के दौरान भक्त अपने श्रद्धांजलि के रूप में जगन्नाथ भगवान के चरणों में गिरफ्तार हो जाते हैं। इससे उन्हें आनंद की अनुभूति होती है और उनके मन में आस्था एवं धार्मिक भावनाएं जागृत होती हैं।इस प्रकार, जगन्नाथ मंदिर और उसकी रथ यात्रा भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण अंग को दर्शाती हैं जो धर्म, संस्कृति और आस्था के संगम को दर्शाती हैं।

जगन्नाथ मंदिर की रचना सम्राट अशोक द्वारा कराई गई थी। इस मंदिर में जगन्नाथ भगवान के साथ उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र की मूर्तियां भी हैं। इस मंदिर की अनोखी बात यह है कि इसकी मूर्तियां केवल एक बार बनाई जाती हैं और फिर उन्हें बदल नहीं किया जाता है। इसलिए, हर 12 साल में जगन्नाथ भगवान की मूर्ति को नयी मूर्ति से स्थानांतरित किया जाता है।

इसके अलावा, रथ यात्रा के दौरान भी मूर्तियों को नयी मूर्ति से स्थानांतरित किया जाता है ताकि उन्हें नयी शक्ति मिल सके। इस रीति से जगन्नाथ मंदिर में हमेशा नवीनता का आभास बना रहता है और लोग इसे एक धार्मिक त्योहार के रूप में मनाते हैं।भारतीय संस्कृति में जगन्नाथ मंदिर और उसकी रथ यात्रा एक अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, इसे समझने से हमें धर्म, संस्कृति और आस्था की अनुभूति होती है जो हमें सही मार्ग दिखाते हैं।

जगन्नाथ मंदिर का रहस्य क्या है?

जगन्नाथ मंदिर का रहस्य उसके इतिहास और अर्थों में छिपा हुआ है। यह मंदिर अपनी अनोखी वास्तुशिल्प और उसमें पूजा-अर्चना की परंपराओं के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का रहस्य निम्नलिखित हैं:

  1. मंदिर का स्थान: जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है। इस मंदिर के स्थान का चयन रहस्यमय है, क्योंकि इस स्थान पर पूर्व में कोई और मंदिर नहीं था।
  2. मूर्तियों की निर्माण विधि: जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियां होती हैं। इन मूर्तियों को केवल एक बार बनाया जाता है और उन्हें बदला नहीं जाता है। इस बात का कारण और इन मूर्तियों की असम्पूर्णता भी रहस्यमय है।
  3. रथ यात्रा: जगन्नाथ मंदिर में हर साल रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा में मूर्तियों को नयी मूर्ति से स्थानांतरित किया जाता है जो अनुपम रहस्य है।

जगन्नाथ मंदिर का एक रहस्य यह है कि मंदिर में जाने से पहले लोगों को अपने जूते, चप्पल और साधारण वस्तुओं को बाहर छोड़ देना पड़ता है। यह अत्यंत अनोखी बात है क्योंकि किसी भी मंदिर या धार्मिक स्थल में जाने से पहले ऐसा करना जरूरी नहीं होता।दूसरा रहस्य यह है कि जगन्नाथ मंदिर में एक भव्य भंडार है, जिसे बढ़ते हुए नहीं देखा जा सकता है। लोग मानते हैं कि इस भंडार के अंदर अनंत धन और खजाने होते हैं, जो मंदिर के संचालन में मदद करते हैं। लेकिन इस बारे में कोई सत्यापन नहीं है और इसे एक रहस्य बनाए रखा गया है।

अगला रहस्य यह है कि जगन्नाथ मंदिर के टावर कोई पक्का मजबूत नहीं है। मंदिर में लगातार बारिश, बज़्म और तूफान होते हैं, फिर भी मंदिर का संरचनात्मक हिस्सा हमेशा खड़ा रहता है। इस बारे में विभिन्न थ्योरीज बताई गई हैं, लेकिन अभी तक इसका सत्यापन नहीं हुआ है।

जगन्नाथ मंदिर के बारे में एक अन्य रहस्य यह है कि मंदिर के बाहर किसी भी जगह से समुद्र दिखाई नहीं देता है, हालांकि यह पुरी भारतीय तट रेखा से केवल कुछ किलोमीटर दूर है। इस रहस्य के पीछे का कारण वैज्ञानिक तथ्य यह है कि मंदिर एक खुले मैदान में स्थित है जो समुद्र से ऊपर है तथा उच्च स्थान पर स्थित होने के कारण यहां से समुद्र दिखाई नहीं देता है।

इसके अलावा, मंदिर की घंटियों की आवाज से जुड़ा भी एक रहस्य है। मंदिर में स्थित घंटियों का ढोल तथा बजाने का तरीका दुनिया में कहीं नहीं पाया जाता है। इन घंटियों का बजाना एक विशेष तकनीक से किया जाता है, जिससे घंटे दूर तक सुनाई दे सकते हैं। इस तकनीक का ज्ञान जगन्नाथ मंदिर की गुप्त रचनाओं में हो सकता है जो अभी तक खोए गए हैं।

इसके अलावा, मंदिर के भीतर भगवान जगन्नाथ तथा उनके भाइयों बलभद्र तथा सुभद्रा के मूर्तियों के साथ जुड़े अन्य कई रह

कुछ लोग मानते हैं कि इस मंदिर के निर्माण का रहस्य अब भी अनसुलझा है और इसे अलौकिक शक्ति की शांति के स्थान के रूप में माना जाता है। वे मानते हैं कि मंदिर में जब भी नए विस्तृत कार्य के लिए काम शुरू होता है, तो भगवान जगन्नाथ की सहायता उन्हें मिलती है। इसे अनगिनत उल्लेखों में दर्शाया गया है कि यह मंदिर भगवान की इच्छा से बना है और उन्हीं के हाथों से बनाया गया है।

जगन्नाथ मंदिर के बारे में एक अन्य रहस्य यह है कि मंदिर के बाहर किसी भी जगह से समुद्र दिखाई नहीं देता है, हालांकि यह पुरी भारतीय तट रेखा से केवल कुछ किलोमीटर दूर है। इस रहस्य के पीछे का कारण वैज्ञानिक तथ्य यह है कि मंदिर एक खुले मैदान में स्थित है जो समुद्र से ऊपर है तथा उच्च स्थान पर स्थित होने के कारण यहां से समुद्र दिखाई नहीं देता है।

इसके अलावा, मंदिर की घंटियों की आवाज से जुड़ा भी एक रहस्य है। मंदिर में स्थित घंटियों का ढोल तथा बजाने का तरीका दुनिया में कहीं नहीं पाया जाता है। इन घंटियों का बजाना एक विशेष तकनीक से किया जाता है, जिससे घंटे दूर तक सुनाई दे सकते हैं। इस तकनीक का ज्ञान जगन्नाथ मंदिर की गुप्त रचनाओं में हो सकता है जो अभी तक खोए गए हैं।

इसके अलावा, मंदिर के भीतर भगवान जगन्नाथ तथा उनके भाइयों बलभद्र तथा सुभद्रा के मूर्तियों के साथ जुड़े अन्य कई लोग मानते हैं कि इस मंदिर के निर्माण का रहस्य अब भी अनसुलझा है और इसे अलौकिक शक्ति की शांति के स्थान के रूप में माना जाता है। वे मानते हैं कि मंदिर में जब भी नए विस्तृत कार्य के लिए काम शुरू होता है, तो भगवान जगन्नाथ की सहायता उन्हें मिलती है। इसे अनगिनत उल्लेखों में दर्शाया गया है कि यह मंदिर भगवान की इच्छा से बना है और उन्हीं के हाथों से बनाया गया है।

वैदिक ग्रंथों में इस मंदिर के बारे में विस्तृत उल्लेख नहीं हैं, इसलिए इसके निर्माण के रहस्य को अब तक नहीं समझा जा सका है। हालांकि, मंदिर की स्थापना के संबंध में कुछ लोगों के पास अपने-अपने विचार हैं। वे मानते हैं कि इस मंदिर का निर्माण भगवान जगन्नाथ के पूर्वजों ने किया था और यह स्थान उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था। अन्य लोग इसे महाभारत युद्ध के समय में नक्काशी करने वाले विश्वकर्मा के निर्माण के रूप में मानते हैं।

इसके अलकुछ लोगों के अनुसार, जब मंदिर निर्माण के दौरान मूर्ति को तैयार किया जा रहा था, तो एक सिक्का रखा गया था ताकि जब इस मूर्ति के अनुकूल कोई और मूर्ति बनाने के लिए उपलब्ध हो, तब वह इसे पूर्ण करने के लिए इस्तेमाल किया जा सके। अब हर 12 साल में जब मूर्ति को बदलने का समय आता है, तो अगली मूर्ति को तैयार करने के लिए यह सिक्का इस्तेमाल किया जाता है।

दूसरे लोगों के अनुसार, जब मूर्ति को तैयार किया जाता है, तो उसे दो भागों में विभाजित किया जाता है। एक भाग को वर्षों तक संग्रहीत रखा जाता है और दूसरा भाग जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया जाता है। हर 12 साल में, जब मूर्ति को बदलने का समय आता है, तो संग्रहीत भाग को दूसरे भाग से मिलाया जाता है, जिससे मूर्ति पूर्ण बनती है।

इन रहस्यों के अलावा, जगन्नाथ मंदिर के और भी कई रहस्य हैं जो लोगों के बीच फैले हुए हैं। ये रहस्य धार्मिक, ऐतिहासिक औरकुछ लोगों के मानने के अनुसार, जगन्नाथ मंदिर में अद्भुत शक्तियां होती हैं और उन्हें संतुलित रखने के लिए बहुत से विशेष उपाय किए जाते हैं। इनमें से एक है मंदिर में शब्दों का उच्चारण, जिसे भोगोलिपि या पोत्रलिपि के रूप में जाना जाता है। इस लिपि में कुछ खोखले अक्षर होते हैं, जो बाकी शब्दों से अलग होते हैं। इन अक्षरों के संयोग से एक महत्वपूर्ण संदेश मिलता है, जो संग्रहित होता है और केवल मंदिर के तत्कालीन मुखिया द्वारा समझा जा सकता है।

इसके अलावा, जगन्नाथ मंदिर के अंदर कई गुप्त गलियां होती हैं, जो जनता से छिपी रहती हैं। कुछ लोगों के मानने के अनुसार, ये गलियां पुरानी दुनिया से जुड़ी होती हैं और इनमें अद्भुत शक्तियां होती हैं। इन गलियों में आमतौर पर कोई जाने के लिए नहीं जाता है और वे सिर्फ मंदिर के कुछ विशेष लोगों द्वारा ही जाने जाते हैं।

BHAGWAN JAGANNATH KI KAHANI IN HINDI (भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है?)
BHAGWAN JAGANNATH KI KAHANI IN HINDI (भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है?)

भगवान जगन्नाथ क्यों होते हैं हर साल बीमार?

भगवान जगन्नाथ को जगन्नाथ पुरी में सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक माना जाता है। भगवान जगन्नाथ, अपने भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।जगन्नाथ रथ यात्रा, जो भगवान जगन्नाथ के मंदिर में होती है, भारत की सबसे बड़ी धार्मिक उत्सवों में से एक है। इस उत्सव के दौरान, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा के साथ रथ पर बैठाए जाते हैं और उन्हें मंदिर से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।

हालांकि, जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ बीमार होते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी बीमारी आध्यात्मिक या आस्था से संबंधित होती है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण होते हैं।बारिश और उमस से भरे मौसम के कारण, रथ यात्रा के दौरान मंदिर के भीतर नमी बढ़ जाती है जो जगन्नाथ मूर्ति को बीमार करती है। इसके अलावा, लोगों की भीड़ और शोर-गुल में भीजगन्नाथ मूर्ति को प्रभावित करती है, जिससे उन्हें बीमारी हो जाती है। इसलिए इस उत्सव के दौरान, जगन्नाथ मंदिर के पंडितों द्वारा भगवान का उपचार किया जाता है।

इस उत्सव के बावजूद, लोग आसानी से इसे एक महत्वपूर्ण पारंपरिक उत्सव के रूप में देखते हैं और उसकी महत्वता का भी पूरा आनंद लेते हैं।इसलिए, भगवान जगन्नाथ के बीमार होने का कारण आध्यात्मिक नहीं होता है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण होते हैं। लेकिन इस उत्सव का महत्व और उसकी परंपरा में विश्वास लोगों के बीच बहुत गहरा होता है।

भगवान जगन्नाथ के बीमार होने के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी हो सकते हैं। इस उत्सव के दौरान उच्च तापमान, अधिक शीर्षक एवं शोरगुल के कारण भगवान की मूर्तियों को ज्यादा प्रभावित होने का खतरा होता है। इसके अलावा भी भगवान जगन्नाथ के मूर्ति के निर्माण में एक विशेष प्रकार का खाद या सामग्री का उपयोग होता है, जो इन मूर्तियों को अधिक संवेदनशील बना देता है।

इसके अलावा, जगन्नाथ मंदिर में लगातार बड़ी संख्या में भक्तों का आगमन होता है, जो भक्ति और उत्साह के साथ इस उत्सव का आयोजन करते हैं। इसके कारण भी बीमारी फैलने का खतरा होता है।इस उत्सव का महत्व उसकी पारंपरिकता और धार्मिक महत्व के साथ-साथ उसकी सामाजिक महत्वता में भी होता है। इस उत्सव के दौरान लोग आपस में एक-दूसरे के साथ मिलते हैं और एक-दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं।

इसके अलावा, इस उत्सव के दौरान विभिन्न प्रकार के सांस्कृत विक्रम संवत के नववर्ष की शुरुआत की जाती है। इस उत्सव के दौरान भक्तों को प्रदोष दीप या आरती दीप के रूप में जलाए जाने वाले दीपों का दर्शन मिलता है जो मन को शांति देते हैं।भगवान जगन्नाथ के बीमार होने का दौर आमतौर पर 15 दिन से 23 दिन तक चलता है। इस दौरान मंदिर में पूजा-अर्चना नहीं की जाती है और भक्तों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता है। इस दौरान भक्तों को मंदिर के बाहर ही भगवान की दर्शन करने की अनुमति होती है। जगन्नाथ मंदिर में यह धार्मिक उत्सव हर साल ज्येष्ठ माह में मनाया जाता है।

इस उत्सव का महत्व उसकी विविधता, सामंजस्य और समृद्ध संस्कृति में भी होता है। भक्तों के मनोभावों और उनके उत्साह को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस उत्सव का असली महत्व उनकी आत्मीय संवेदना और भक्ति में होता है।

भगवान जगन्नाथ के बीमार होने का अधिकतर कारण लोगों के आध्यात्मिक अभाव या धार्मिक उद्देश्यों से भगवान की अनदेखी के साथ जुड़ा होता है। इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ के रूप में भगवान विष्णु, जगदंबा और शिव के संयोग से उत्पन्न देवता माने जाते हैं। इसलिए भगवान जगन्नाथ की बीमारी के दौरान धार्मिक उत्साह में कमी होती है जो भगवान के रोग का मुख्य कारण होती है।

कुछ लोग इसे स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा बताते हैं, जैसे कि गर्मी के कारण होने वाली लू, अधिक तापमान, अधिक शारीरिक काम आदि। इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ को विभिन्न प्रकार की पूजा और धर्मिक क्रियाओं से अधिक उत्साह मिलता है, जो उनके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए, उनकी सेवा के दौरान उनके शरीर की शक्ति कम हो सकती है जो बीमार होने का कारण बन सकती है।

संक्षेप में, भगवान जगन्नाथ की बीमारी के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण धार्मिक उत्साह में कमी होती है जो उन्हें दूर रखती है। इसलिए, जब भगवान जगन्नाथ बीमार होते हैं, तो लोग इसे धार्मिक संयोग से जोड़ते हैं और उनकी सेवा करते हुए भगवान को उनकी बीमारी से उबरने की कोशिश करते हैं। भगवान जगन्नाथ की बीमारी धार्मिक उत्साह में कमी का एक संकेत हो सकता है और इसे दूर करने के लिए लोगों को धार्मिक उत्साह को बढ़ाना चाहिए।

इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ की बीमारी का एक अन्य संभव कारण है कि वे अस्थायी मंदिर होते हैं जो प्रत्येक बरसात के मौसम में बनाए जाते हैं। मंदिर के अनुसार, नए मंदिर का निर्माण हर 12 वर्ष में होता है जो एक लंबी दौड़ के बाद पूरा होता है। यह नया मंदिर लकड़ी के पुराने मंदिर के स्थान पर बनाया जाता है।

मंदिर के निर्माण में अनुभवी शिल्पकारों द्वारा लकड़ी के बढ़िया काम किया जाता है। ये मंदिर बरसाती मौसम में बनाए जाते हैं इसलिए कुछ कारणों से उनका आरंभिक बिना जंग विराम के कुछ समय बाद खत्म हो जाता है। इस अवधि में, मंदिर बरसात के पानी से भीग जाते हैं जो उनमें नमी उत्पन्न करते हैं। इस नमी की वजह से, लकड़ी के मंदिर में रहने वाले भगवान जगन्नाथ की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।

इस प्रकार, भगवान जगन्नाथ के बीमार होने के कुछ धार्मिक और वैज्ञानिक कारण होते हैं जो इनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, भगवान जगन्नाथ की बीमारी एक विशेषता है जो इन्हें अन्य देवताओं से अलग बनाती है। धार्मिक दृष्टि से, इसे भगवान के रहने के स्थान में नवां रसातली देवी द्वारा किया गया शाप माना जाता है जिसने भगवान जगन्नाथ को अस्थिर बना दिया है। इस शाप के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बीमारी अनिवार्य होती है और इसे हर साल महसूस किया जाता है।

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