हेलो दोस्तों,
मेरा नाम श्वेता है और आज मई आप सभी दोस्तों के लिए एक ऐसे इंसान के बारे कहानी लेके आई हु जो डॉ अंबेडकर की जिन्होंने भारत के लिए सामाजिक, राजनीतिक और न्यायिक कार्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया है | डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, जिन्हें डॉक्टर अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय समाज के लिए महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली एक व्यक्ति थे। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महु नगर में हुआ था। डॉ. अंबेडकर की जन्मतिथि को “अंतरराष्ट्रीय दासता निषेध दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
उनके परिवार में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोरी थी, क्योंकि उनकी जाति का स्थान समाज में निम्न परंपराओं की वजह से बहुत नीचे था। लेकिन उनके माता-पिता ने शिक्षा के महत्व को समझा और उन्हें पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया। डॉ. अंबेडकर ने अपनी शिक्षा को उन्नति दिलाने के लिए कठिनाइयों का सामना किया, परंतु उनकी मेहनत, समर्पण, और विद्यार्थी बनाने की इच्छा ने उन्हें आगे बढ़ने की सामर्थ्य प्रदान की।
उन्होंने ब्रिटिश भारत के दौरान विदेशी शिक्षा प्राप्त की और अपनी उच्चतम शिक्षा के लिए वेलिंगटन कॉलेज, बॉम्बे और कोलंबो विश्वविद्यालय, स्रीलंका में अध्ययन किया। उन्होंने यूरोप में विशेषज्ञता प्राप्त की और वहाँ पेशेवर शिक्षा और विचारधारा के क्षेत्र में अद्वितीय ज्ञान प्राप्त किया।
डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज में जाति प्रथा, असमानता, और भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने समाज को जागरूक करने, दलितों के अधिकारों की रक्षा करने, और उन्हें सामाजिक समानता के लिए लड़ने के लिए कई संगठनों की स्थापना की।डॉ. अंबेडकर को महापुरुष, भारतीय संविधान निर्माता, और मानवाधिकार के चैंपियन के रूप में मान्यता दी जाती है। उनके समाज सेवा, विचारधारा, और लड़ाई में उनका योगदान आज भी याद रखा जाता है और उन्हें गर्व की बात समझा जाता है।

- 1 डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
- 2 उनके पिता का नाम क्या था और वे क्या काम करते थे?
- 3 डॉ. अंबेडकर ने अपनी पढ़ाई कहाँ से की थी?
- 4 बीआर अंबेडकर ने भारत के लिए क्या किया?
- 5 अंबेडकर के पास कितनी डिग्री थी?
- 6 अंबेडकर क्यों प्रसिद्ध है?
- 7 अंबेडकर का असली नाम क्या है?
- 8 उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में किसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, वह कौन सी थी?
- 9 डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज में जाति प्रथा के विरुद्ध आंदोलन किया था, इसका कारण क्या था?
- 10 डॉ. अंबेडकर की मृत्यु कब हुई और कहाँ हुई थी?
- 11 डॉ. अंबेडकर को भारतीय नागरिकता दिवस मनाने के लिए क्यों चुना गया है? इस दिन क्यों मनाया जाता है?
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश (अब मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित महू नगर गांव) में हुआ था। वह माहार समाज के एक आदिवासी परिवार में जन्मे थे। उन्होंने भारतीय संविधान की रचना की और भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें “भारतीय संविधान के पिता” के रूप में भी जाना जाता है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन में विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने शिक्षा क्षेत्र में बहुत मेहनत की और सामाजिक न्याय और इंसाफ के लिए संघर्ष किया।उन्होंने अपनी शिक्षा में उच्चतम स्तर तक जाने के लिए प्रयास किया और ब्रिटिश सरकार के छात्र बनने के लिए स्कालरशिप प्राप्त की। उन्होंने बाद में लंडन विश्वविद्यालय से न्यायशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की।
अंबेडकर ने अपने जीवन के दौरान दलित समाज के लिए लड़ाई लड़ी और उनके अधिकारों की रक्षा की। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और दलितों के सामाजिक आरक्षण को बढ़ावा दिया।उन्होंने भारतीय संविधान की तैयारी की और उसका नेतृत्व किया। भारतीय संविधान को 26 नवंबर, 1949 को स्वीकृति मिली और 26 जनवरी, 1950 को यह लागू हुआ। उन्होंने संविधान में समानता, न्याय, स्वतंत्रता, और मनुष्यों के अधिकारों की गारंटी दी।
डॉ. भीमराव अंबेडकर 6 दिसंबर, 1956 को निधन हुए। उनका योगदान भारतीय इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है और उन्हें समाज सुधारक और महापुरुष के रूप में याद किया जाता है।
उनके पिता का नाम क्या था और वे क्या काम करते थे?
डॉ. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल आंबेडकर था। वे एक सेना अधिकारी थे और अपने पेशेवर करियर में नियुक्ति प्राप्त करने के बाद महार रेगिमेंट में काम करते थे। हालांकि, डॉ. भीमराव अंबेडकर के परिवार का समाज में आर्थिक और सामाजिक रूप से निचला दर्जा था, जिसके कारण उनके पिता को बार बार नौकरी छोड़नी पड़ी और उन्हें अनिश्चितता का सामना करना पड़ा।
डॉ. भीमराव अंबेडकर के परिवार का सामाजिक और आर्थिक दबाव उनके बचपन से ही महसूस होता था। उनके पिता की सरकारी नौकरी में अस्थायीता और आर्थिक संकट के कारण, उन्हें गरीबी और असामान्यता का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद, उनके पिता ने अपने बच्चों की शिक्षा को महत्व दिया और उन्हें उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर के पिता की मृत्यु के बाद, परिवार के आर्थिक संकट में और भी बढ़ गये। उन्होंने संघर्षों और परिश्रम के माध्यम से अपनी शिक्षा को जारी रखा और अग्रगामी वर्षों में विद्यालय और कॉलेजों में अध्यापन करने का संकल्प बनाया।
उनके पिता के आर्थिक और सामाजिक दबाव का अनुभव डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला और उन्हें सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने का प्रेरणा स्वरूप बना। उनके महान कार्यों ने समाज में उच्चतम स्थान प्राप्त किया और उन्हें एक महापुरुष के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
डॉ. अंबेडकर ने अपनी पढ़ाई कहाँ से की थी?
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपनी पढ़ाई को मध्य प्रदेश के महू नगर गांव से शुरू किया था। उन्होंने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को वहीं पूरी की। इसके बाद उन्होंने बारामती के महाराष्ट्र आश्रम शाला में अध्ययन किया।
उनकी अद्यापित माता की मेहनत और समर्पण के बाद, उन्हें ब्रिटिश सरकार के छात्रवृत्ति द्वारा दूरगामी शिक्षा का मौका मिला। उन्होंने 1907 में बारामती के महाराष्ट्र विद्यालय से उच्च शिक्षा में प्रवेश पाया।
इसके बाद उन्होंने अपनी शिक्षा को और ऊँचाईयों तक बढ़ाने के लिए विदेश जाने का निर्णय लिया। उन्होंने सन् 1913 में न्यायशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के लिए लंडन विश्वविद्यालय में शिक्षा ली। इसके बाद उन्होंने स्नातकोत्तर की पढ़ाई को आगे बढ़ाते हुए अंग्रेजी और बरिस्टरी की पढ़ाई भी की।
अपनी अध्ययन के दौरान, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अंग्रेजी साहित्य, न्यायशास्त्र, सामाजिक विज्ञान, और आर्थिक विज्ञान के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त की। वह अपनी अद्यापित मातृभाषा मराठी के साथ-साथ अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, पाली, और प्राकृत भाषाओं का भी अध्ययन करते थे।
उन्होंने विदेशी देशों में अपनी शिक्षा पूरी की, लेकिन अपने विदेशी शिक्षानिधि के बावजूद, उन्होंने अपने देश भारत में वापसी की और वहां दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने का निर्णय लिया। उन्होंने विदेशी शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा और अध्यापन की क्षमता प्राप्त की, जो उन्हें भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में मददगार साबित हुई।
डॉ. भीमराव अंबेडकर की पढ़ाई उनके जीवन के बादी महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी, जिसने उन्हें सामाजिक, राजनीतिक, और न्यायिक क्षेत्र में एक विचारशील और प्रभावशाली नेता बनाया।
बीआर अंबेडकर ने भारत के लिए क्या किया?
बीआर अंबेडकर ने भारत के लिए अनेक योगदान दिए हैं। उनके सामाजिक, राजनीतिक और न्यायिक कार्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया है। यहां कुछ महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख किया जा सकता है:
- संविधान निर्माण: डॉ. अंबेडकर ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान सभा के नेतृत्व किया और संविधान का मसौदा तैयार किया। उनके संविधान में समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण विधान शामिल थे।
- दलितों के अधिकारों की लड़ाई: डॉ. अंबेडकर ने दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और उनके समाजिक उत्थान के लिए संघर्ष किया। उन्होंने दलितों के लिए न्यायपूर्ण व्यवस्था, शिक्षा और रोजगार के अवसर, और सामाजिक समानता की मांगें रखी।
- विद्याभ्यास के प्रोत्साहन: अंबेडकर ने शिक्षा के महत्व को समझा और दलितों के लिए विद्याभ्यास के प्रोत्साहन के लिए अपार प्रयास किए। उन्होंने स्वयं एक शिक्षाविद् बनने का संकल्प लिया और दलितों के लिए शिक्षासंस्थान स्थापित किए।
- विपणन संघ की स्थापना: उन्होंने विपणन संघ की स्थापना की, जो दलित व्यापारियों को वाणिज्यिक उपायों के माध्यम से सहायता प्रदान करता है। इसका उद्देश्य दलित व्यापारियों को आर्थिक स्वायत्तता और समृद्धि की दिशा में मदद करना था।
- महादलित आंदोलन: डॉ. अंबेडकर ने महादलितों के लिए एकात्मता का आंदोलन शुरू किया। इसका उद्देश्य उन्हें दलित समाज से अलग रखने वाली दरिद्रता, शोषण और असामान्यता से निपटना था।
ये सिर्फ़ कुछ उदाहरण हैं, जो बीआर अंबेडकर द्वारा किए गए कार्यों का एक छोटा सा अंश हैं। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक क्षेत्र में दलितों के लिए समानता और न्याय की लड़ाई लड़ी, और वे भारतीय निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान के प्रतीक हैं।
अंबेडकर के पास कितनी डिग्री थी?
डॉ. भीमराव अंबेडकर के पास कई डिग्री थीं। उन्होंने अपनी शिक्षा में विशेषज्ञता प्राप्त की और अनेक उच्चतर शिक्षाप्राप्त की। यहां वे मुख्य डिग्री की एक सूची है:
- वकालती डिग्री (Barrister-at-Law): डॉ. अंबेडकर ने लंदन की ग्रेट ब्रिटेन से वकालती डिग्री प्राप्त की। इससे पहले, वह बॉम्बे विश्वविद्यालय से मौजूदा लॉ डिग्री भी प्राप्त कर चुके थे।
- डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसोफी (Ph.D.): उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से नियमित शिक्षा करके न्यायशास्त्र में डॉक्टरेट प्राप्त की। उनकी विवेचना “पराधीनता अधिकार और स्वतंत्रता की आवश्यकता” पर थी।
- मास्टर ऑफ आर्ट्स (M.A.): उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस में मास्टर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की।
- बैचलर ऑफ आर्ट्स (B.A.): उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की।
इन डिग्रीज के साथ-साथ, डॉ. अंबेडकर ने अन्य शैक्षिक प्रमाणपत्र भी प्राप्त किए हो सकते हैं, लेकिन उपर्युक्त डिग्रीज ही उनके प्रमुख शिक्षाग्रहण हैं।

अंबेडकर क्यों प्रसिद्ध है?
भीमराव आंबेडकर (अंग्रेजी: Bhimrao Ramji Ambedkar) भारतीय संविधानविद, सामाजिक न्याय विचारक, महानियंत्रक, दार्शनिक और राष्ट्रीय नेता थे। वह भारतीय संविधान के मुख्य रचनाकारों में से एक माने जाते हैं और उन्हें “भारतीय संविधान के पिता” के रूप में भी जाना जाता है। वे सामाजिक न्याय, जाति विचार, भारतीय नागरिकता, विदेशी व्यापार नीति और महिला अधिकारों के लिए अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं।
यहां कुछ मुख्य कारण दिए जा रहे हैं जिनके कारण अंबेडकर प्रसिद्ध हुए:
- भारतीय संविधान का मुख्य रचनाकार: डॉ. आंबेडकर को भारतीय संविधान के प्रमुख रचनाकारों में से एक माना जाता है। उन्होंने संविधान समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया और भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- सामाजिक न्याय के लिए लड़ाई: आंबेडकर ने दलितों और अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। उन्होंने कार्य की जोशीले तरीके से आंदोलन की गई, जिससे दलितों को शोषण से मुक्ति मिली और उन्हें सामाजिक समानता की पहचान मिली।
- जाति विचार के लिए योगदान: आंबेडकर ने जाति व्यवस्था के खिलाफ अपने विचार और कार्यों के माध्यम से संघर्ष किया। उन्होंने जाति प्रथा की आलोचना की और जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका उद्देश्य एक समान और समरस्त भारतीय समाज की स्थापना थी।
- विदेशी व्यापार नीति के मुद्दे पर कार्य: आंबेडकर विदेशी व्यापार नीति के मुद्दे पर भी कार्य करते थे। उन्होंने उत्पादन और वित्तीय प्रणाली में उन्नति के लिए नयी नीतियों की मांग की।
- महिला अधिकारों के लिए संघर्ष: डॉ. आंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया। उन्होंने सामाजिक बदलाव के लिए महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए अपनी मेहनत की।
इन सभी कारणों के कारण, भीमराव आंबेडकर को भारतीय समाज में एक महान विचारक, समाजसेवी और समाजसंगठक के रूप में प्रसिद्ध किया जाता है। उनके योगदान ने देश को समाजिक और न्यायिक सुधारों की दिशा में प्रेरित किया है और उनकी विचारधारा और आंदोलनों ने लोगों की सोच को परिवर्तित किया है।
अंबेडकर का असली नाम क्या है?
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर का असली नाम भीमराव रामजी अंबेडकर था। उन्होंने अपने बहुमुखी प्रतिभा और सामाजिक सुधार के कार्यों के लिए विशेष पहचान प्राप्त की हैं। वे भारतीय संविधान के मुख्य लेखक और भारतीय संघटना विभाजन के प्रमुख आदार्य हैं। उन्हें आम तौर पर भारतीय संविधान और भारतीय सामाजिक और राजनीतिक न्याय के पिता के रूप में जाना जाता है।
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर, जिन्हें भारतीय समाज में महापुरुष के रूप में मान्यता है, 14 अप्रैल 1891 को महाराष्ट्र के मौंबी गांव में जन्मे थे। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था। उनके परिवार की जाति महार नामक एक अत्यंत पिछड़ी जाति से संबंधित थी।
अंबेडकर ने अपने शिक्षार्थी जीवन में बड़ी कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने प्रगतिशीलता और ज्ञान के माध्यम से अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया। उन्होंने अपनी पढ़ाई करके विद्या की उच्चतम स्तरों तक पहुंचा और बाद में विदेशों में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने लॉ डिग्री प्राप्त की और उन्हें कोलंबो विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट भी प्राप्त हुआ।
अंबेडकर का समाज सुधार के क्षेत्र में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने दलित समाज के अधिकारों और समानता की लड़ाई लड़ी और दलितों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उन्नयन के लिए लगातार संघर्ष किया।
अंबेडकर ने भारतीय संविधान की तैयारी की और वह उसके मुख्य लेखक माने जाते हैं। वे आयोग के सदस्य और भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष भी थे। उन्होंने भारतीय संविधान को न्यायपूर्ण, समान और विचारशील तरीके से तैयार किया, जो देश के न्यायपालिका और संविधानिक प्रणाली के आधार बना।
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की मृत्यु 6 दिसंबर 1956 को हुई। उनके सामाजिक और राजनीतिक योगदान को मान्यता और सम्मान के साथ याद किया जाता है, और उन्हें “भारतीय समाज के जाति पिता” के रूप में भी जाना जाता है।
उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में किसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, वह कौन सी थी?
भारतीय संविधान के निर्माण में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। वे संविधान सभा के अध्यक्ष थे और संविधान निर्माण के समय मुख्य लेखक बने। उन्होंने संविधान सभा के सदस्यों के सहयोग से संविधान का मसौदा तैयार किया, जिसमें वे भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों, संघीय संरचना, संविधानिक संगठन, शासन और न्याय प्रणाली, विभिन्न संविधानिक निकायों के कार्य, और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान दिया। उनका महत्वपूर्ण योगदान इसे भारतीय संविधान का अध्यादेश और विशेषता देने में था, जिसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया था। इसके पश्चात, भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से प्रभावी हुआ।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के अलावा विभिन्न महत्वपूर्ण योगदान भी किए। उन्होंने अपनी विद्या, अनुभव, और विचारधारा का उपयोग करके संविधान को भारतीय समाज की विभिन्न जातियों, धर्मों, लिंगों, और क्षेत्रों के लोगों के हित में न्यायपूर्ण और संवेदनशील बनाने का प्रयास किया।
अंबेडकर ने संविधान को दायित्वपूर्ण, संघटनात्मक और सर्वांगीण बनाने के लिए प्रयास किया। उन्होंने व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए संविधान में स्पष्टता और स्पष्टता दर्ज की। उन्होंने भारतीय संविधान में समानता, न्याय, और भागीदारी के मूल्यों को प्रमुखता दी।
उन्होंने आर्थिक और सामाजिक स्थानांतरण को दूर करने, अधिकारियों की अधिकता पर नियंत्रण लागू करने, महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता सुनिश्चित करने, और दलितों, आदिवासियों, और पिछड़े वर्गों के हकों की सुरक्षा करने के लिए भी कठिन प्रयास किए।
अंबेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका इसे भारतीय संविधान का एक आदर्श और लोकतंत्र की नींव के रूप में स्थापित करने में थी। उनके संविधान में शामिल किए गए मूल्यों और सिद्धांतों का महत्वपूर्ण योगदान भारतीय समाज के विकास, सद्भाव, और एकात्मता को सुनिश्चित करने में था। इसलिए, अंबेडकर को “भारतीय संविधान के पिता” के रूप में सम्मानित किया जाता है।
डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज में जाति प्रथा के विरुद्ध आंदोलन किया था, इसका कारण क्या था?
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय समाज में जाति प्रथा के विरुद्ध आंदोलन किया था क्योंकि उनके अनुसार जाति प्रथा में आधारित विभेद, उत्पीड़न और न्यायहीनता एक अन्यायपूर्ण और अनापत्तिजनक प्रणाली थी।
इसके पीछे कई कारण थे। पहले, जाति प्रथा भारतीय समाज में जातिवाद, अवैध विभेद और उत्पीड़न का मुख्य स्रोत थी। जातिवाद के कारण लोगों को उनकी जन्मजात जाति के आधार पर व्यक्तिगत और सामाजिक अधिकारों से वंचित किया जाता था। यह विभेदशीलता, असमानता और उत्पीड़न का माहोल पैदा करती थी।
दूसरे, डॉ. अंबेडकर स्वयं एक दलित थे, जो सामाजिक रूप से वंचित जाति के हिस्से में थे। उन्होंने अपने जीवन के दौरान जाति प्रथा से उठकर निकलने के लिए कठोर संघर्ष किया। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें जातिवाद, जातिगत असमानता और उत्पीड़न के बारे में समझ और ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने समाज में जातिगत असमानता के खिलाफ अधिकारिक और सामाजिक संघर्ष करने का निर्णय लिया।
अंबेडकर का यह आंदोलन जाति प्रथा को समाप्त करके समाज में समानता, न्याय और विचारधारा का स्थापना करने का उद्देश्य रखता था। उन्होंने संघर्ष किया और विभिन्न समाजसेवी और राजनीतिक पहलुओं के माध्यम से जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका संघर्ष भारतीय समाज को समानता और न्याय की ओर मुख्यालय ले गया और आज भी उनका योगदान जातिगत असमानता को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
डॉ. अंबेडकर की मृत्यु कब हुई और कहाँ हुई थी?
डॉ. भीमराव अंबेडकर की मृत्यु 6 दिसंबर 1956 को हुई थी। उनकी मृत्यु महाराष्ट्र के मुंबई (पहले बॉम्बे) शहर में हुई। उनकी आत्मकथा “ज्ञानयोग” के प्रकाशन के दिन ही, 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हुआ। उनके मृत्यु के बाद, उन्हें भारतीय संविधान निर्माण के पिता, सामाजिक सुधारक, और महापुरुष के रूप में मान्यता दी गई है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर की मृत्यु के बाद, उन्हें महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvana Day) के रूप में मान्यता दी गई है, जो हर साल 6 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिवस डॉ. अंबेडकर के सम्मान में उनके योगदान, सामाजिक सुधार कार्यों, और महत्वपूर्ण विचारधारा को याद करने का एक अवसर है।
उनकी मृत्यु के बाद, डॉ. अंबेडकर के शरीर का अंतिम संस्कार दीक्षाभूमि (Deekshabhoomi) नामक स्थान पर हुआ। दीक्षाभूमि महाराष्ट्र के नागपुर शहर में स्थित है और यह एक महत्वपूर्ण बौद्ध धर्मस्थल है। यहां पर डॉ. अंबेडकर की अंतिम अवशेषों को समाधि (stupa) में संजोया गया है और यह स्थान उनके आदर्शों, विचारधारा और अपार योगदान का प्रतीक है। दीक्षाभूमि में हर साल महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर भव्य आयोजन होते हैं और लाखों लोग वहां आकर डॉ. अंबेडकर की स्मृति में प्रार्थना करते हैं।

डॉ. अंबेडकर को भारतीय नागरिकता दिवस मनाने के लिए क्यों चुना गया है? इस दिन क्यों मनाया जाता है?
डॉ. अंबेडकर को भारतीय नागरिकता दिवस मनाने का कारण उनके भारतीय संविधान को तैयार करने के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान को मान्यता देना है। भारतीय संविधान को उनकी अगुआई में तैयार किया गया था और यह विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
भारतीय नागरिकता दिवस 26 नवंबर को मनाया जाता है। इस दिन, वर्ष 1949 में डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान को तैयार करके संविधान सभा को स्वीकार करने की प्रस्तावना की थी। यह एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक घटना थी जिससे भारतीय संविधान को स्वीकृति मिली और भारतीय नागरिकता की मूल नींव रखी गई।
भारतीय नागरिकता दिवस के रूप में मनाने से, डॉ. अंबेडकर के महत्वपूर्ण योगदान की याद रखी जाती है और भारतीय नागरिकों को उनके संविधानिक अधिकारों, स्वतंत्रता के महत्व, और संविधान के महत्वपूर्ण मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाई जाती है। इस दिवस पर, भारतीय संविधान की महत्वता, संविधानिक सिद्धांतों, और डॉ. अंबेडकर के विचारों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
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