JWALA MATA KI KAHANI IN HINDI(ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?)

By Shweta Soni

Published on:

WhatsApp Group (Join Now) Join Now
Telegram Group (Join Now) Join Now

नमस्कार दोस्तों,

मेरा नाम श्वेता है और में हमारे वेबसाइट के मदत से आप के लिए एक नयी ज्वाला माता की कहानी लेके आई हु और ऐसी अच्छी अच्छी कहानिया लेके आते रहती हु। वैसे आज मै ज्वाला माता की कहानी लेके आई हु कहानी को पढ़े आप सब को बहुत आनंद आएगा |

ज्वाला माता हिंदू पौराणिक कथाओं में एक पूज्य देवी हैं, जो भगवान शिव की ज्वालामुखी की ऊर्जा के अवतार मानी जाती हैं। ज्वाला शब्द का अर्थ होता है “आग की लपट” और देवी को आमतौर पर अपने शरीर से निकलती हुई कई ज्वालाओं के साथ दिखाया जाता है।

मंदिर को भारत के हिमाचल प्रदेश में नजदीकी कँगड़ा शहर स्थित है। मां ज्वाला की जयंती के अवसर पर यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ जाती है जहाँ वे उनकी पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते है ज्वाला माता की कहानी हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

यह कहानी एक देवी की उत्पत्ति, उसके ललाट से उगती ज्वालामुखी, उसके चमत्कारों की गवाही और उसके मंदिर के महत्व के बारे में है। यह कहानी हमें धार्मिक श्रद्धा, आस्था और सम्मान की महत्वपूर्ण बातें सिखाती है। ज्वाला माता की कहानी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसे न केवल धार्मिक अर्थ में, बल्कि इतिहास, कला और संस्कृति के रूप में भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

JWALA MATA KI KAHANI IN HINDI(ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?)
JWALA MATA KI KAHANI IN HINDI(ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?)

ज्वाला माता की कहानी

ज्वाला माता हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं जो प्राथमिक रूप से राजस्थान में पूजी जाती हैं। इन्हें मां पार्वती का अवतार माना जाता हैं। ज्वाला माता के बारे में प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में विस्तृत रूप से बताया गया है।

कहते हैं कि एक समय एक राक्षस नाम जलंधर था जिसने अपनी तपस्या और भक्ति के माध्यम से अत्यधिक शक्ति प्राप्त की थी। अपनी नई मिली शक्ति के साथ, वह अहंकारी हो गया और देवी-देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। देवता उन्हें मदद के लिए भगवान शिव के पास गए, लेकिन उन्हें पराजित करने में वे असमर्थ थे क्योंकि जलंधर ने भगवान ब्रह्मा से एक वरदान प्राप्त किया था जो उसे अजेय बनाता था जब तक उसकी पत्नी का पवित्रता बरकरार रहती थी।

फिर देवता भगवान विष्णु के पास गए, जो एक योजना बनाया। वह जलंधर के रूप में अपने आप को छिपाकर जलंधर की पत्नी वृंदा से मिलने गया। वृंदा ने उसे पहचान लिया और उससे अपनी कथा सुनाई। उसने विष्णु से अपनी समस्या के बारे में बताया और उसे अपने पति के धर्म को स्थायी रूप से छोड़ने की सलाह दी। विष्णु ने वृंदा से बात करते समय उसकी पतिव्रता के प्रति जलंधर की शक्ति को कम करने की योजना बनाई।

इस प्रकार, वृंदा के पति का धर्म क्षीण हुआ और जलंधर की शक्ति कम हो गई। देवता ने अभी भी उससे लड़ाई जारी रखी, जो एक बहुत लंबी और घातक लड़ाई बन गई। वह इतनी शक्तिशाली थी कि उसकी साँसों से आग निकलती थी। देवता इसे हराने के लिए भगवान शिव की मदद लेने की सलाह दी।

भगवान शिव ने इस लड़ाई का समापन करने के लिए अपनी एक शक्ति को स्वरूप लिया, जो आग का रूप ले चुकी थी। उन्होंने उसे जलंधर के सिर से अलग कर दिया, जिससे उसकी शक्ति तुरंत खत्म हो गई।इस घटना के बाद से, उस जगह पर जो आग उठी थी वहां पर माता ज्वाला का मंदिर बना। इस मंदिर में लगगने और मुख्य द्वार पर सबसे पहले दो छोटे जगमगाते दीप जलते हैं, जिनके बाद उष्णतम रूप से ज्वाला माता के चारों ओर अन्य दीपों को जलाया जाता है।

यहां तक ​​कि आज भी ज्वाला माता मंदिर में जो दीप जलते हैं वे जलते रहते हैं और उस दिन से यहां एक नई परंपरा शुरू हुई है। लोग वहां अपनी मनोकामनाएं मांगने आते हैं और ज्वाला माता को नवीन अन्न, फल और दीप चढ़ाते हैं। ज्वाला माता की कहानी अब भी अपूर्व तथा रोचक है और इसकी पौराणिक महत्ता आज भी बनी हुई है। यह एक ऐसी ऊर्जा का स्रोत है जो लोगों को मंदिर में आने के लिए प्रेरित करता है और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए तैयार करता है।

ज्वाला माता की कहानी लोगों में उनके परम आदर के साथ जुड़ी हुई है। वे इसे अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। ज्वाला माता को उनकी मनोकामनाओं को पूरा करने में मदद मिलती है और उन्हें शक्ति देती है। इस खास परंपरा को बनाये रखने के लिए लोग इस मंदिर में धार्मिक अध्ययन करते हैं और अनेक धर्मों के लोग इस मंदिर में आते हैं ताकि वे ज्वाला माता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

इस तरह, ज्वाला माता की कहानी भारतीय परंपराओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। लोग इसे एक पवित्र तीर्थ स्थल मानते हैं और उन्हें इसे बनाए रखने में अपना योगदान देते हैं। ज्वाला माता की कहानी हमें इस बात का अहसास कराती है कि धर्म और परंपराएं हमें हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा समझाती हैं और उन्हें बनाए रखने के लिए हमें सदैव सक्रिय रहना चाहिए।

ज्वाला माता की कहानी एक ऐसी कथा है जो हमें शक्ति और निर्भयता का अहसास कराती है। यह कथा हमें बताती है कि अगर हम अपने मन में अच्छे विचार रखते हैं और निष्कपट रूप से अपनी इच्छाओं को प्रकट करते हैं तो हम सफल हो सकते हैं।इस कथा में बताया गया है कि एक समय था जब राजा बगेल सिंह अपनी सेना के साथ ज्वाला माता के मंदिर पर हमला करने के लिए आया था। ज्वाला माता ने राजा को धमकाकर कहा कि वह उसके मंदिर में घुसने की कोशिश नहीं कर सकता।

राजा ने फिर भी जवाब नहीं दिया और उसने अपनी सेना को आगे बढ़ाया। इसके बाद ज्वाला माता ने अपनी ज्वालाओं से सेना को जला दिया और राजा बगेल सिंह ने ज्वाला माता के अनुयायियों की ओर उनके प्रति सम्मान जताकर चले गए। इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हम अपनी मनोकामनाओं को प्रकट करते हैं और अपने लक्ष्य के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाते हैं तो हम सफल हो सकते हैं।

ज्वाला माता की कहानी हमें शक्ति देती है और हमें यह बताती है कि हमें हमेशा सत्य का पालन करना चाहिए। जब राजा बगेल सिंह ने अपनी सेना के साथ मंदिर पर हमला करने का फैसला किया, तब ज्वाला माता ने उसे अपने मंदिर में घुसने से रोक दिया। यह दिखाता है कि सत्य हमेशा विजयी होता है।

इस कहानी से हमें यह भी सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपने संघर्षों से नहीं घबराना चाहिए। ज्वाला माता ने अपनी ज्वालाओं से सेना को जला दिया था लेकिन वह अपने मंदिर को बचाने के लिए संघर्ष करती रही थी। हमें भी अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं भागना चाहिए बल्कि उनसे संघर्ष करना चाहिए ताकि हम सफलता हासिल कर सकें।

ज्वाला माता की कहानी हमें यह भी बताती है कि हमें अपने धर्म और अपने मूल्यों के प्रति समर्पित रहना चाहिए। ज्वाला माता का मंदिर हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थान है और इस कथा से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें अपने धर्म और मूल्यों को समर्पित रहना चाहिए।

ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?

ज्वाला देवी या ज्वालाजी का मंदिर जम्मू और कश्मीर में है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर ज्वाला माता या ज्वालाजी के लिए बनाया गया था।

ज्वाला देवी की उत्पत्ति के बारे में कुछ विभिन्न कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, दक्ष याज्ञ के समय भगवान शिव के पुत्र माता सती ने अपनी इच्छा से अग्नि में खुद को समाहित कर लिया था। इससे भगवान शिव बहुत दुखी हो गए थे और उन्होंने माता सती के शरीर को बांट कर पृथ्वी पर फैला दिया था। यहां तक ​​कि भगवान शिव का शोक ऐसा था कि वह समय-समय पर माता सती के शरीर के टुकड़ों को ढूंढ़ते रहते थे और उन्हें पूजने लगे थे।

एक दूसरी कथा के अनुसार, ज्वाला देवी का मंदिर महाभारत काल में बना था। अर्जुन ने अपनी तपस्या के दौरान उन्हें ज्वाला देवी का दर्शन कराया था और ज्वाला देवी ने अर्जुन की आशा को पूरा किया था। इन कथाओं के अलावा, अन्य भी कई कथाएं हैं जो ज्वालला देवी की उत्पत्ति के बारे में बताती हैं। इन कथाओं के अनुसार, ज्वाला देवी एक शक्ति स्वरूप हैं और उनकी उत्पत्ति का कारण उनकी शक्ति और ताकत है। इसी कारण ज्वाला देवी को महाशक्ति का रूप माना जाता है।

ज्वाला देवी के मंदिर को विशेष ध्यान देने वाला एक अन्य प्रसिद्ध कारण यह है कि मंदिर में स्थित अग्नि ज्वालाएं न केवल संग्रहलय के रूप में देखी जाती हैं बल्कि इनकी पूजा भी की जाती है। इसे जलती अग्नि का प्रतीक माना जाता है जो ज्वाला देवी की शक्ति और ताकत को दर्शाती है।ज्वाला देवी का मंदिर एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है जो देश के विभिन्न हिस्सों से लोगों को आकर्षित करता है। ज्वाला देवी की उत्पत्ति के बारे में यह न केवल एक कथा है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक संस्कृति का हिस्सा है जो देश की अनेक पीढ़ियों को जोड़ता है।

ज्वाला देवी के मंदिर का इतिहास और कथाएं अनेक हैं, जो इसके लिए महत्वपूर्ण होती हैं। इस मंदिर को अधिकतर लोग ज्वालामुखी मंदिर के नाम से जानते हैं। ज्वालामुखी का अर्थ होता है “ज्वाला का मुँह” जिससे इस मंदिर के पास स्थित ज्वाला देवी की प्रतिमा के लिए नाम ज्योतिर्मय हो गया है।

ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। मंदिर एक गुफा के अंदर बना हुआ है जो पहाड़ के अंदर बना हुआ है। इस मंदिर में शायद ही किसी शक्ति का पूजन इतना ज्यादा होता होगा जितना कि ज्वाला देवी का।ज्वाला देवी के मंदिर में स्थित अग्नि ज्वालाएं बड़े ही अद्भुत होती हैं। इन ज्वालाओं को देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं क्योंकि ये अग्नि ज्वालाएं बिना किसी उपकरण या इलेक्ट्रिसिटी के जलती रहती हैं।

ज्वाला देवी की पूजा भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों में की जाती है। इस मंदिर में शक्ति पूजा के अलावा ज्वाला देवी की कथाओं में उनकी उत्पत्ति के विभिन्न कथाएं मिलती हैं। एक कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण था जो धनबाद जिले में रहता था। उसे अपनी पत्नी से समस्याएं थीं जो कि उनकी संतानों की असुविधाओं से संबंधित थीं। एक दिन उस ब्राह्मण को लगा कि उसे उनकी समस्याओं का समाधान करने वाली कोई शक्ति होनी चाहिए। इसलिए, उसने एक तपस्या की जिससे ज्वाला देवी का उद्भव हुआ।

दूसरी कथा के अनुसार, एक संत था जो कि आजमगढ़ में रहता था। एक दिन उसने एक देवी की प्रतिमा निकाली जो ज्वाला के समान थी। इस प्रतिमा के साथ, उसने एक आग को भी उठाया था जो नित्य जलती रहती थी। यह ज्वाला देवी के मंदिर का उद्भव हुआ।

तीसरी कथा के अनुसार, एक सिद्ध था जो कि श्रीनगर में रहता था। एक दिन उसे एक देवी के स्थान का पता लगा जो ज्वाला के समान थी। वह उस स्थान पर पहुंचा और उसने वहां एक गुफा में ज्वाला देवी की प्रतिमा देखी। वहां उसने पूजा की पूजा के दौरान, सिद्ध ने ज्वाला देवी से आग्नेयी शक्ति के रूप में बातचीत की और उन्हें बुलाया कि वे उनकी समस्याओं का समाधान करें। उसके बाद से ज्वाला देवी उस स्थान पर नित्य जलती हुई नजर आती हैं।

चौथी कथा के अनुसार, ज्वाला देवी का उद्भव जंगल में हुआ था। एक दिन एक स्वयंभू प्रतिमा के साथ, जंगल में एक आग निकली। यह आग नित्य जलती रहती थी और उस स्थान को “ज्वालामुखी” नाम दिया गया। उस स्थान पर बाद में ज्वाला देवी का मंदिर बना दिया गया।इन सभी कथाओं में, ज्वाला देवी का उद्भव एक आग के रूप में बताया गया है जो नित्य जलती रहती है। उनके मंदिर में, लोग उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए पूजते हैं। ज्वाला देवी को आग्नेयी शक्ति के रूप में भी जाना जाता है और उन्हें अग्नि, उत्तेजना और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।

JWALA MATA KI KAHANI IN HINDI(ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?)
JWALA MATA KI KAHANI IN HINDI(ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?)

मां ज्वाला देवी मंदिर कहां स्थित है?

मां ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश में कंगड़ा जिले के नगर कसौली में स्थित है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। मां ज्वाला देवी के इस मंदिर में हर साल हजारों भक्त आते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

यह मंदिर नगर कसौली से लगभग 34 किलोमीटर दूर स्थित है और इसे पहाड़ों के बीच में बसा हुआ है। मंदिर के पास एक खास पहाड़ी पर ज्वाला जी के शिखर के समान बारूद से भरी छोटी-छोटी झिल्लियों में आग उगलती हुई दिखाई देती हैं। इसे देखने के लिए खास ढाँचे से बने होटल और दीवारें हैं, जिन्हें दर्शनीय दीवार भी कहा जाता है। मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह, भगवान शिव, माँ काली और महालक्ष्मी की मूर्तियां भी हैं।

मां ज्वाला देवी मंदिर के अलावा यहां कुछ अन्य धार्मिक स्थल भी हैं जैसे नावग्रह मंदिर और चमुण्डा माता मंदिर। नावग्रह मंदिर में नौ ग्रहों की मूर्तियां हैं जो अलग-अलग रंगों के होते हैं। चमुण्डा माता मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है और यहां भी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मां ज्वाला देवी मंदिर में हर साल ज्वाला मुखी मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों भक्त आते हैं और ज्वाला माता की पूजा करते हैं। मेले के दौरान यहां अनेक प्रकार की भोजन सामग्री, धार्मिक उपहार, उपयोगी चीजें और स्थानीय कलाकारों की संग्रहालय भी खोले जाते हैं। ज्वाला मुखी मेले में भारत के विभिन्न हिस्सों से आने वाले भक्त भी आते हैं और यहां एक साथ आकर मां ज्वाला देवी की आराधना करते हैं।

इसके अलावा मंदिर के आस-पास भी कुछ आकर्षक स्थल हैं। यहां से दूर नहीं है राजगर्ह का एक बहुत ही प्रसिद्ध रोडवे गार्डन है, जो अपने खूबसूरत फूलों के लिए जाना जाता है। दूसरी ओर, भारत के आध्यात्मिक और ऐतिहासिक शहरों में से एक नागर कुलगढ़ का मंदिर भी यहां से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है।

ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के ऊँचाइयों में स्थित होने के कारण, यहां जाने के लिए उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च तक होता है, जब मौसम सुहावना होता है। यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटवर्ती रेलवे स्टेशन हमीरपुर है जो दिल्ली से ३५० किलोमीटर दूर है। हमीरपुर से आप टैक्सी या बस का इस्तेमाल करके मंदिर तक पहुंच सकते हैं। ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश की एक अनुभवी और धार्मिक यात्रा है। इसके अलावा यहां के नजदीकी स्थलों के साथ भी यह एक बेहतरीन पर्यटन स्थल है।

मंदिर के पास अनेक शॉप हैं जो आपको धार्मिक आइटम जैसे पूजा सामग्री, तंबाकू, सौंधी इत्यादि खरीदने का अवसर देते हैं। इसके अलावा, मंदिर के सामने एक छोटा मार्केट है जहां आप स्थानीय खाने की चीजें खरीद सकते हैं। यहां पर आप भूतानी खाना, सिद्धू और धुमालू खाने का मजा ले सकते हैं।

मंदिर में आराधना के अलावा यहां आप एक सुखद और शांतिपूर्ण माहौल भी पा सकते हैं। मंदिर में आपको अपनी आत्मा को शुद्ध करने का मौका मिलता है और आप अपने शांत वातावरण में रहने के लिए लंबे समय तक यहां ठहर सकते हैं।इस प्रकार, ज्वाला देवी मंदिर एक अनुभवों से भरपूर स्थल है जो आपको आध्यात्मिकता, धार्मिकता और प्रकृति का संयोग प्रदान करता है। इसे एक यात्रा के रूप में जरूर जाएं और इस माता की कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करें।

ज्वालामुखी मंदिर का इतिहास क्या है?

ज्वालामुखी मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। यह मंदिर हिमालय के पश्चिमी देवभूमि में स्थित है और हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। ज्वालामुखी मंदिर देवी ज्वाला माता को समर्पित है जो हिंदू धर्म की शक्ति को प्रतिनिधित्व करती हैं।

मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। इस मंदिर की विशालता को देखते हुए कहा जाता है कि यह एक समय में भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक था। इस मंदिर के बारे में अनेक पुरानी कहानियां मिलती हैं, लेकिन उसका असली इतिहास उस समय से शुरू होता है जब भारत में बौद्ध धर्म के प्रभाव से लोग अपने पूर्वजों के धर्म को छोड़कर इस धर्म को अपनाने लगे।

ज्वालामुखी मंदिर का निर्माण सन् 1815 में शुरू हुआ था। इस मंदिर का निर्माण राजा रणजीत सिंह द्वारा किया गया था। मंदिर के निर्माण के बाद से यह मंदिर देश और विदेश से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्ष ज्वालामुखी मंदिर बहुत पुराना है और इसका इतिहास बहुत रोचक है। मंदिर में लोग ज्वालामुखी देवी की पूजा करते हैं। इस मंदिर को विश्व के सबसे शक्तिशाली मंदिरों में से एक माना जाता है।

इस मंदिर के अनुसार, इसे 12वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसके निर्माता और संस्थापक के बारे में कोई जानकारी नहीं है।ज्वालामुखी मंदिर का नाम उस वजह से है कि इसके पीछे एक छोटा सा ज्वालामुखी होता है जो हमेशा जलता रहता है। इस ज्वालामुखी को निरंतर देखने से लोगों को भयंकर संकट से छुटकारा मिलता है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

इस मंदिर में एक बहुत बड़ी दरबार है जहां लोग देवी की पूजा करते हैं। इस मंदिर में एक और विशेषता है जो इसे दुनिया भर में मशहूर बनाती है। इस मंदिर में एक चमत्कारी स्तंभ है जो 15 फुट ऊंचा है। लोग इस स्तंभ के चारों तरफ घूमते हैं और अपनी आखों को बंद करते हैं। फिरज्वालामुखी मंदिर में मां ज्वाला देवी की पूजा लगातार चली आ रही है और यह भगवान शिव के दो मंदिरों के बीच में स्थित है।

मंदिर में लगभग 12 से 13 वीं शताब्दी में बनाई गई मूर्ति है, जो आज भी मंदिर के समाधि मंडप में स्थित है।इस मंदिर के इतिहास में अनेक बदलाव हुए हैं। पहले इसे सिद्ध चतुर्भुज वाली देवी का मंदिर जाना जाता था। यह मंदिर ज्वालामुखी के पास ही था। बाद में ज्वालामुखी की शक्ति के कारण इस मंदिर को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।इस मंदिर के बारे में लोगों में एक दूसरे के बीच विश्वास बहुत है।

ज्वालामुखी मंदिर पर्वत श्रृंखला पर स्थित होने के कारण यहां से सुंदर पर्वत दृश्य देखने को मिलते हैं। इसलिए यह धार्मिक तथा पर्यटन दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

इस मंदिर के आसपास कई प्राकृतिक खूबसूरत जगहें भी हैं। इस मंदिर से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, इसकी स्थिति, इसकी अतिरिक्त विशेषताएँ और इसकी पूजा विधि सब कुछ अनुभव करने लायक होता है।इस मंदिर की स्थापना शक्ति की पूजा को लेकर हुई थी, जो देवी शक्ति की एक अद्भुत स्वरूप है। ज्वालामुखी मंदिर में जो आज भी मूर्ति है, वह शक्ति के वर्तमान स्वरूप को दर्शाती है।

इस मंदिर में संत श्री शिवानंद सरस्वती जी ने भी कुछ समय बिताया था। उन्होंने यहां पूजा अर्चना के अलावा अपने शास्त्रों के ग्रंथों का भी अध्ययन किया था।इस मंदिर के समीप ही शक्तिपीठ स्थित है, जिसमें भगवती शक्ति का आशीर्वाद हमेशा उपलब्ध होता है। इसलिए लोग इस पीठ पर जाकर शक्ति के आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं।

ज्वालामुखी मंदिर में हर साल नवरात्र के दौरान भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है और इस दौरान भक्त यहां आकर देवी की पश्चिम बंगाल में स्थित ज्वालामुखी मंदिर भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल है। इस मंदिर की असली नींव क्रिश्चियन धर्म के एक गिरजाघर से ली गई है। 18वीं शताब्दी में यह गिरजाघर भगवान शिव की तलाश में घुमते हुए बंगाल के राजा बाजीराव के द्वारा बनवाया गया था।

JWALA MATA KI KAHANI IN HINDI(ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?)
JWALA MATA KI KAHANI IN HINDI(ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?)

इस जगह पर एक ज्वालामुखी होने के कारण इसे ज्वालामुखी मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में मां ज्वालामुखी की विग्रह लगाई गई है, जो भयंकर रूप में दिखती है। मान्यता है कि मां ज्वालामुखी अग्नि की देवी होती हैं और इस मंदिर में उनकी उपासना की जाती है।इस मंदिर में दिन भर भक्तों की भीड़ लगती है जो मां ज्वालामुखी के दर्शन करने आते हैं। यहां पर समस्त धर्म के लोग श्रद्धालु होते हैं और मां ज्वालामुखी की कृपा और आशीर्वाद की कामना करते हैं।

READ MORE :- RANI LAXMIBAI KI KAHANI IN HINDI (रानी लक्ष्मी बाई ने विरोध क्यों किया था?)

Hello Friend's! My name is Shweta and I have been blogging on chudailkikahani.com for four years. Here I share stories, quotes, song lyrics, CG or Bollywood movies updates and other interesting information. This blog of mine is my world, where I share interesting and romantic stories with you.

Leave a Comment