नमस्कार दोस्तों,
मेरा नाम श्वेता है और में हमारे वेबसाइट के मदत से आप के लिए एक नयी पांच तत्त्व की कहानी लेके आई हु और ऐसी अच्छी अच्छी कहानिया लेके आते रहती हु। वैसे आज मै पांच तत्त्व की कहानी लेके आई हु कहानी को पढ़े आप सब को बहुत आनंद आएगा | अगर हमारी कहानी अच्छी लगे तो अपने परिवार और दोस्तों में जरूर शेयर करे धन्यवाद।
एक समय की बात है, जब यह सृष्टि बनाई गई थी। इस सृष्टि में प्रकृति के चार मुख्य तत्व थे – भूमि, जल, वायु और अग्नि। इन चारों तत्वों के बीच बहुत बढ़िया संबंध था। इसलिए इन तत्वों के बीच एक दोस्ती और समझौता हुआ।
एक दिन, वे चारों तत्व बात कर रहे थे कि उनमें सबसे ताकतवर कौन है। भूमि बोली, “मुझमें सभी जीवों का आधार होता है। बिना मेरे किसी भी सहारे के, कोई भी जीव नहीं रह सकता। मैं सबसे ताकतवर हूँ।” जल ने जवाब दिया, “तुम सभी जीवों को जीवित रखने के लिए बहुत जरूरी हो, लेकिन अगर मैं नहीं होता तो जीव नहीं होते। तो मैं सबसे ताकतवर हूँ।” वायु ने उनसे कहा, “अगर मैं नहीं होता तो तुम्हारी जगह जीवों को अपने साथ ले जाना पड़ता होता। मैं सबसे ताकतवर हूँ।
” अग्नि ने उन सभी तत्वों को ध्यान से सुना और फिर बोला, “तुम सब मेरे बिना कुछ नहीं हो सकते। बिना मेरी आग के तुम नह सकते, मैं सबसे ताकतवर हूँ।”इस तरह, चारों तत्व एक-दूसरे को ताकतवर बताने में लगे रहे। फिर एक दिन, एक महान आध्यात्मिक ऋषि उनके पास आया। उन्होंने चारों तत्वों को देखा और उनसे पूछा, “तुम सभी में सबसे ताकतवर कौन है?”
चारों तत्व अपने अपने तरीके से अपनी ताकत बताने लगे। ऋषि ने उनसे मुस्कुराते हुए कहा, “तुम सभी में से कोई भी ताकतवर नहीं है। तुम सभी एक-दूसरे के साथ मिलकर इस सृष्टि को चलाते हो। तुम सभी के बिना यह सृष्टि नहीं चल सकती।”चारों तत्व यह सुनकर एक-दूसरे को देखने लगे और समझे कि वे एक-दूसरे के साथ मिलकर ही इस सृष्टि को चला सकते हैं। उन्होंने आपस में समझौता किया और सभी तत्वों ने मिलकर इस सृष्टि को संतुलित रखा।
इस तरह, चारों तत्वों ने समझ और समझौता से एक-दूसरे के साथ मिलकर सृष्टि को चलाया। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हम सभी को मिलकर काम करना चाहिए और हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर यह सृष्टि को संतुलित रखना चाहिए। एक व्यक्ति अकेले ताकतवर नहीं हो सकता, बल्कि उसकी ताकत समूह के साथ काम करने से होती है। इस कहानी से हमें चारों तत्वों के महत्व का भी पता चलता है। हमारी सृष्टि में प्रकृति के चारों तत्व बहुत महत्वपूर्ण हैं और हमें उनसे जुड़कर रहना चाहिए।आशा करता हूँ, यह कहानी आपको पंच तत्व के महत्व के बारे में समझाने में मददगार साबित हुई होगी।

अविरल गंगा की कहानी
एक बार दो युवक दूरस्थ गांव से अपने शहर की यात्रा करने का फैसला करते हैं। वे अपने रास्ते में अविरल गंगा के किनारे से गुजरते हैं और वहां बैठकर थोड़ी देर आराम करते हैं।एक युवती उन्हें देखती है जो अविरल गंगा की किनारी पर खड़ी है और उनसे पूछती है, “क्या तुम अविरल गंगा के बारे में जानते हो?” दोनों युवकों का उत्तर हाँ होता है।
उन्होंने युवती से पूछा, “लेकिन हमें अविरल गंगा का कुछ नहीं पता। क्या आप हमें बता सकती हैं?” उन्हें देखते हुए उसने उनसे पूछा, “क्या आप मुझे अपने हाथों की लकीरों दिखा सकते हैं?” युवकों ने अपनी लकीरें दिखाईं। उसने उन्हें बताया, “देखिए, आप दोनों की लकीरें एक जैसी नहीं हैं। इसी तरह, हर मनुष्य की जिंदगी एक जैसी नहीं होती। हर किसी का अपना-अपना सफ़र होता है।”
उसने फिर जोड़ते हुए कहा, “लेकिन अविरल गंगा सबके लिए एक जैसी होती है। वह सभी के लिए जीवन का स्रोत होती है और सभी को नया जीवन देती है।”युवती ने फिर उन्हें एक चुनौती दी। वह बोली, “आप देखते हो कि अविरल गंगा बहुत तेज होती है और अधिकांश समय अपनी मार्ग से फिरती रहती है। तो क्या तुम उसे रोक सकते हो?”
पंचतत्व का अर्थ क्या है?
पंचतत्व एक संस्कृत शब्द है जो पांच भौतिक तत्वों को दर्शाता है जो हमारे विश्व में पाए जाते हैं। ये पांच तत्व हैं: भूमि (पृथ्वी), जल (अप), वायु (वायु), अग्नि (अग्नि) और आकाश (आकाश)। पंचतत्व दार्शनिक तथ्यों के अनुसार हमारे शरीर और जगत में इन पांच तत्वों के सम्मिलन से बना होता है। प्राचीन भारतीय दर्शन और आयुर्वेद में पंचतत्व को समझने का विशेष महत्व है।
पंचतत्व दर्शन के अनुसार, हमारे शरीर के विभिन्न भागों में पांच तत्वों की विभिन्न मात्राएं होती हैं और इन मात्राओं का संतुलन बना रखना हमारे स्वास्थ्य और संतुलित विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है।इन पांच तत्वों के विभिन्न अनुपातों से बना हमारा शरीर, मन और आत्मा के संबंध पर भी प्रभाव पड़ता है। यह दर्शन शरीर, मन और आत्मा के संतुलित विकास के लिए उत्तम होता है।
इसके अलावा, पंचतत्व दर्शन के अनुसार, हमारा जीवन भी पांच तत्वों के सम्मिलन से बना होता है और इन तत्वों के संतुलन को बनाए रखना हमारे जीवन में संतुलित तथा समृद्ध जीवन के लिए आवश्यक होता है। इसलिए, पंचतत्व के अध्ययन से हम अपने शरीर, मन और आत्मा को समझ सकते हैं और इनके संतुलित विकास और जीवन में संतुलितता लाने के लिए उपयोगी उपायों का पता लगा सकते हैं।
पंचतत्व दर्शन को आधुनिक विज्ञान से भी जोड़ा जा सकता है। विज्ञान में भी प्रकृति के तत्वों को अलग-अलग अवस्थाओं में अध्ययन करते हुए इनकी गुणधर्मों का अध्ययन किया जाता है। इस तरह का अध्ययन हमें विभिन्न विज्ञानों, जैसे कि भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जैव विज्ञान आदि के माध्यम से नए ज्ञान का प्राप्ति करने में मदद करता है।
आयुर्वेद में भी पंचतत्व का अध्ययन किया जाता है और इसका उपयोग रोग और उनके उपचार के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में पंचतत्वों के संतुलित होने का महत्व बताया गया है और इसके अनुसार रोगों के उपचार में भी पंचतत्वों के संतुलन को बनाए रखने का ध्यान रखा जाता है।
संक्षेप में, पंचतत्व दर्शन हमें हमारे शरीर, मन और आत्मा के संबंध पर समझने में मदद करता है और जीवन में संतुलितता लाने के लिए उपयोगी होता है। इसके अलावा, यह आधुनिक विज्ञान और आयुर्वेद में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे समझने से हम अपने शरीर, मन और आत्मा के सम्बन्धों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और संतुलित जीवन जीने में मदद मिलती है।
यह दर्शन हमें अपने संबंधों को समझने के साथ-साथ प्रकृति के साथ भी मिलाता है। पंचतत्वों की गुणधर्मों के अध्ययन से हमें प्रकृति की विविधता और समस्त जीव-जंतुओं के संबंधों को समझने में मदद मिलती है।इसलिए, पंचतत्व दर्शन हमारे जीवन के सभी पहलुओं में उपयोगी होता है। इससे हम अपने शरीर, मन और आत्मा को समझ सकते हैं और जीवन में संतुलितता बनाए रख सकते हैं।
पंचतत्व से शरीर कैसे बनता है?
पंचतत्व दर्शन में शरीर का संरचन और उसमें आगंतुक प्रकृति को पाँच मूल तत्वों से जोड़ा जाता है। ये पाँच मूल तत्व होते हैं: भूमि (पृथ्वी), जल (पानी), वायु (हवा), अग्नि (आग) और आकाश (शून्य)।
शरीर का संरचन भी इन पाँच मूल तत्वों से बना होता है। शरीर के भौतिक अंगों में पृथ्वी तत्व बोन्ने, पानी तत्व रक्त, हवा तत्व श्वसन और शोथ, आग तत्व जठराग्नि और शरीर की ऊष्मा को नियंत्रित करता है, जबकि आकाश तत्व शरीर की अंतरंगता और अभाव को दर्शाता है। इस प्रकार, पंचतत्व दर्शन में, हम शरीर को एक समझदारी तरीके से देख सकते हैं और इससे हमें अपने शरीर के संबंधों को समझने में मदद मिलती है।
इसके अलावा, पंचतत्व दर्शन शरीर के साथ-साथ मन और आत्मा को भी समझने में मदद करता है। मन की समस्याओं में वायु तत्व (हवा) का बहुत बड़ा रोल होता है, इसलिए वायु तत्व को नियंत्रित करने वाले प्राणायाम आसन आदि शरीर और मन दोनों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। इसी तरह, आत्मा को आकाश तत्व से जोड़ा जाता है और योग और ध्यान आदि आत्मिक संबंधों को समझने में मदद करते हैं।
अंततः, पंचतत्व दर्शन का उद्देश्य हमें अपने शरीर, मन और आत्मा के संबंधों को समझने में मदद करना है ताकि हम एक संतुलित और स्वस्थ जीवन जी सकें। इसके अलावा, पंचतत्व दर्शन शरीर के विभिन्न अंगों के उत्पादन और विकास के संबंध में भी मदद करता है। शरीर के विभिन्न अंग जैसे मांसपेशियां, हड्डियां, अंगूठे, नाक, कान आदि में पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों का अलग-अलग प्रभाव होता है। इन तत्वों का संतुलन सही होने से हमारे शरीर के अंग स्वस्थ रहते हैं और विकास करते रहते हैं।
अधिकतर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, पंचतत्व दर्शन योग, ध्यान, प्राणायाम और मेडिटेशन जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं में उपयोगी होता है। इन प्रक्रियाओं में हम अपने मन को शांत और स्थिर करते हुए शरीर, मन और आत्मा के संबंधों को समझने का प्रयास करते हैं और अपने जीवन को एक संतुलित दृष्टिकोण से देखने की कोशिश करते हैं।
इस प्रकार, पंचतत्व दर्शन शरीर, मन और आत्मा के संबंधों को समझने में मदद करता है और हमें एक संतुलित और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करता है।

पंचतत्व में कितने तत्व होते हैं?
पंचतत्व दर्शन के अनुसार, मानव शरीर के लिए पाँच तत्व होते हैं। ये हैं:
- पृथ्वी तत्व (भूततत्व) – यह तत्व धरती, पत्थर, मिट्टी, मृदा, वनस्पति, जैविक तत्व और शरीर के कई अंगों जैसे नाक, नाभि, नाड़ी आदि से संबंधित होता है। इस तत्व से संबंधित भाव होते हैं – स्थिरता, ठोसता, गंभीरता और सबलता।
- जल तत्व (आपतत्व) – यह तत्व पानी, बारिश, नदियाँ, समुद्र, अधोलोक, उष्णता, शीतलता आदि से संबंधित होता है। इस तत्व से संबंधित भाव होते हैं – चलता-फिरता, नर्मता, प्रवाही और स्नेहन।
- वायु तत्व (वायुतत्व) – यह तत्व हवा, वायु, उड़ान, सांसें, श्वसन, सुगन्ध आदि से संबंधित होता है। इस तत्व से संबंधित भाव होते हैं – उदासीनता, तेजी, स्वतंत्रता और सहजता।
- अग्नि तत्व (तेजतत्व) – यह तत्व आग, रोशनी, ऊष्मा, तपता सूरज, ऊँगलियाँ आदि से संबंधित होता है। इस तत्व से संबंधित भाव होते हैं उजागरता, परिणामकारिता, आकर्षण और उत्साह।
- आकाश तत्व (आदित्यतत्व) – यह तत्व आकाश, अंतरिक्ष, तारे, बिना, अविद्या, निर्विकारता आदि से संबंधित होता है। इस तत्व से संबंधित भाव होते हैं – अनंतता, शांति, व्यापकता और सम्पूर्णता।
इन पाँच तत्वों के बिना, हमारे शरीर का अस्तित्व सम्भव नहीं होता। ये तत्व हमारे शरीर की विभिन्न क्रियाओं और गुणों से संबंधित होते हैं और हमारी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति को समझने में मदद करते हैं।
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