RANI LAXMIBAI KI KAHANI IN HINDI (रानी लक्ष्मी बाई ने विरोध क्यों किया था?)

By Shweta Soni

Published on:

WhatsApp Group (Join Now) Join Now
Telegram Group (Join Now) Join Now

नमस्कार दोस्तों,

मेरा नाम श्वेता है और में हमारे वेबसाइट के मदत से आप के लिए एक नयी रानी लक्ष्मीबाई की कहानी लेके आई हु और ऐसी अच्छी अच्छी कहानिया लेके आते रहती हु। वैसे आज मै रानी लक्ष्मीबाई की कहानी लेके आई हु कहानी को पढ़े आप सब को बहुत आनंद आएगा |

रानी लक्ष्मीबाई की कहानी

रानी लक्ष्मीबाई भारत की स्वतंत्रता संग्राम की एक महान वीरांगना थीं। वह भारत की इतिहास की सबसे महान महिला योद्धा में से एक थीं। उनकी शौर्य और वीरता की कहानी आज भी हमें प्रेरित करती है।

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई था। उनके पिता मृत्यु होने के बाद उनकी माँ उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा देने में विशेष रूचि रखती थीं।

उन्होंने 1842 में झाँसी के महाराज गंगाधर राव के साथ शादी की। उनकी शादी के बाद वे ‘लक्ष्मीबाई’ के नाम से जानी जाने लगीं। उनके पति ने 1853 में अपनी मृत्यु कर दी थी।

उस समय, ब्रिटिश सरकार उन्हें झाँसी नहीं छोड़ने देना चाहती थी। झाँसी के अंतिम नवाब प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद, ब्रिटिश सरकार झाँसी को अपने कब्जे में लेना चाहती थी। लेकिन लक्ष्मीबाई इससे सहमत नहीं थीं। उन्होंने अपनी सेना के राज्य की रक्षा करने के लिए लड़ाई का फैसला किया।

1857 में, सिपाहियों की बगावत के दौरान, लक्ष्मीबाई ने झाँसी की रक्षा करने के लिए अपनी सेना बनाई। उन्होंने अपने साथ कुछ महिला साथियों को भी ले लिया था। इससे पहले उन्होंने अपने लड़के बेटे को नाना साहब के पास भेज दिया था।

लक्ष्मीबाई ने अपनी शौर्य की कहानी को आगे बढ़ाते हुए झाँसी के राजमहल में अपनी फ़ौज के साथ एक महान लड़ाई लड़ी। उन्होंने अपने साथ एक बच्चे को भी ले जाया था, जो उन्हें संभालने में मदद करता था।

लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेना के साथ कई लड़ाईयों में हिस्सा लिया था। उन्होंने अपनी सारी शक्ति और जुनून का उपयोग करके झाँसी की रक्षा की। उन्होंने अपनी सेना के साथ बड़े-बड़े लड़ाईयों में हिस्सा लिया था जैसे कि कानपुर, लखनऊ, ग्वालियर और झाँसी।

लक्ष्मीबाई की बहादुरी के बाद भी, ब्रिटिश सेना ने झाँसी को कब्जे में ले लया था और लक्ष्मीबाई को उनके राज्य से निकाल दिया गया। लेकिन उन्होंने अपने संघर्ष को जारी रखा और अंततः उन्हें ग्वालियर में लड़ाई लड़नी पड़ी। उन्होंने अपनी सेना के साथ ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए अपनी शौर्य और बलिदान का उपयोग किया।

1858 में, लक्ष्मीबाई और उनकी सेना ने ग्वालियर के लिए एक महान लड़ाई लड़ी। उन्होंने इस लड़ाई में ब्रिटिश सेना को हरा दिया। लेकिन उनके बलिदान के बाद भी, उन्हें लड़ाई में घायल होना पड़ा था और उन्हें ग्वालियर से भाग निकलना पड़ा। उन्होंने खुदकुशी का फैसला लिया था लेकिन वे अपनी सेना और अपने राज्य की रक्षा के लिए जितने जुनून से लड़ती थीं, उससे उनकी याद आज भी ताजगी से याद की जाती है।

RANI LAXMIBAI KI KAHANI IN HINDI (रानी लक्ष्मी बाई ने विरोध क्यों किया था?)
RANI LAXMIBAI KI KAHANI IN HINDI (रानी लक्ष्मी बाई ने विरोध क्यों किया था?)

लक्ष्मीबाई के वीरता और बलिदान की कहानी दुनिया भर में जानी जाती है। उनका इतिहास आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।

इस प्रकार, रानी लक्ष्मीबाई ने अपने जीवन भर में अपने देश के लिए लड़ते हुए बड़ी बड़ी लड़ाइयों का सामना किया। वह एक महान शूरवीर, नेता और राजनीतिज्ञ थीं जिनकी शौर्य और बलिदान की उपलब्धियों ने उन्हें समर्थ बनाया जो समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह एक महिला होने के नाते भी अपने देश के लिए अत्यधिक प्रेम और बलिदान के साथ संघर्ष करती रहीं। आज भी रानी लक्ष्मीबाई को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शौर्यगाथाओं में सर्वोच्च स्थान मिलता है।

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी के एक मराठी कुलीन घर में हुआ था। उनके पिता मोरोपंत ताम्बे एक ब्राह्मण थे जो पश्चिमी भारत में सेवा करते थे। उनकी मां भगीरथी बाई उत्तर प्रदेश की लक्ष्मीपुर खीरी में पैदा हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई का असली नाम मणिकर्णिका था।

रानी लक्ष्मीबाई की शैक्षिक योग्यता बहुत अधिक थी। उन्होंने संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी और पंजाबी भाषाओं में शिक्षा प्राप्त की थी।

रानी लक्ष्मीबाई के पति राजा गंगाधर राव नवाब पेशवा बाजी राव के समर्थन में थे और उन्हें उनकी स्थान पर बैठाने का प्रयास किया जाता था। लेकिन उनके बच्चे की मृत्यु के बाद वह 1853 में मर गए।

जब बाजी राव 1851 में मर गए तो ब्रिटिश सरकार ने उनकी जमीनों पर कब्जा कर लिया। उन्हें उनके इग्नोर करने के बावजूद उनके पति के नाम से जमीनें लौटाने का अधिकार था। बाद में ब्रिटिश सरकार ने लक्ष्मीबाई को उनकी जमीनों का हिस्सा नहीं दिया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें झांसी के लिए एक पेंशन देने के बाद अन्य संगठनों के साथ जमीनों को जब्त कर लिया।

लेकिन लक्ष्मीबाई अपनी जमीनों के लिए संघर्ष नहीं छोड़ने वाली थीं। उन्होंने अपने साथ एक सेना जुटाई और जब ब्रिटिश सरकार ने झांसी को लौटने के बारे में तर्क दिया तो लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना को ले कर झांसी में वापस चली गई।

1857 में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ। यह संग्राम ब्रिटिश सरकार के खिलाफ था। इस संग्राम में लक्ष्मीबाई एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं।लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना को जमा किया और बांदेलकंड के मुख्य आंदोलन के नेता नाना साहेब के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी। उन्होंने अपनी सेना को लेकर झांसी में भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

उन्होंने अपनी वीरता के लिए जानी जाती हैं। अंत में उन्होंने 18 जून 1858 को ग्वालियर के लड़वा में अंउग्र संघर्ष के बाद मृत्यु को गले लगाया। लक्ष्मीबाई ने उम्र के सिर्फ 29 साल पूरे किए थे।लक्ष्मीबाई एक महान राजनीतिज्ञ और योद्धा थीं जो अपनी देशभक्ति और स्वाधीनता के लिए अपनी जान दे दी। आज भी लोग उन्हें एक साहसी नायिका और भारतीय स्वाधीनता संग्राम की अमर शहीद के रूप में याद करते हैं।

रानी लक्ष्मी बाई ने विरोध क्यों किया था?

रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध किया था। उन्होंने अंग्रेजों को अपने राज्य की संपत्ति और स्वायत्तता से बर्बाद करने से रोकने के लिए लड़ाई लड़ी थी। 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय, उन्होंने ब्रिटिश सेना के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी और कुछ समय तक उन्होंने अपनी राजधानी ज़ीना तक को अंग्रेजों से सुरक्षित रखा।

उनका समर्थन स्थानांतरण का मुद्दा भी था। उन्होंने अपने समर्थकों को अपने साथ जाने के लिए बोला था लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें अपने घुटनों पर अनुमति नहीं दी। इसलिए, वे स्वतंत्रता और स्वाधीनता के लिए लड़ने के लिए अकेले ही तैयार हुए थे।

रानी लक्ष्मीबाई के विरोध के पीछे एक अन्य मुद्दा भी था। जब उनका पति, महाराजा गंगाधर राव, 1853 में मर गया था, तब उन्हें अपनी सामरिक और नौकरशाही क्षमताओं का परिचय देना पड़ा था। इसके अलावा, उन्हें अपने सुपुत्र दमोदर राव को संभालने में मदद करनी भी पड़ी थी। लेकिन अंग्रेज़ों ने दमोदर राव को बाहर कर दिया था जिससे रानी लक्ष्मीबाई को नायब राजा बनाना पड़ा था।

इस स्थिति में, उन्होंने अपनी स्थानीय जनता के समर्थन को जीतने के लिए संघर्ष किया और उनकी स्वाधीनता और अधिकारों की रक्षा की। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी शानदार युद्ध कुशलता का प्रदर्शन किया।

रानी लक्ष्मीबाई ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया। सन् 1857 में वह जब न्यूडीया के बाहर से ब्रिटिश सैन्य के विरुद्ध लड़ाई लड़ने चली गई तो उसने अपनी सेना के साथ लखनऊ के बाहर भी युद्ध किया। इस युद्ध में उन्हें काफी सफलता मिली लेकिन बाद में उन्हें हार झेलनी पड़ी।

उन्होंने युद्ध के दौरान अपनी गुणवत्ता का प्रदर्शन किया था जब उन्होंने अपनी घोड़े पर खड़े होकर तलवारों से लड़ाई लड़ी थी। इससे उन्होंने अपनी सेना को दृढ़ता और उन्हें समर्थन देने के लिए उत्साहित किया था। उनकी युद्ध कुशलता और उनके वीरता ने उन्हें एक महान योद्धा के रूप में याद किया जाता है। रानी लक्ष्मीबाई की अद्भुत शौर्य और स्वतंत्रता आज भी भारत के लोगों के दिलों में बसी हुई है।

रानी लक्ष्मीबाई के विरोध के पीछे कुछ वजहें भी थीं। जब उनके पति गंगाधर राव ने 1853 में निधन किया तो उन्हें उनकी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनके पति की मृत्यु के बाद, ब्रिटिश सरकार ने उनकी संपत्ति ज़ब्त कर ली थी।

उन्होंने अपने संपत्ति को लौटाने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों से लड़ाई की थी जो उन्हें स्थायी अधिकार नहीं देने के लिए तैयार नहीं थे। इसके अलावा, उनके पति के दोस्तों और समर्थकों को भी ब्रिटिश सरकार ने नीचे दबोच लिया था। रानी लक्ष्मीबाई ने इसके विरोध में उठने के बाद, वह स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक बन गईं।

उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लड़ाई करते हुए अपने जीवन का सबसे बड़ा बलिदान दिया। उनकी वीरता, स्वतंत्रता के लिए लड़ने का समर्थन करने वाले लोगों को प्रेरित करती है और उन्हें एक महान योद्धा के रूप में याद किया जाता है।

रानी लक्ष्मीबाई के विरोध का एक और कारण था उनके पुत्र का निधन। उनके पुत्र दामोदर राव ने बचपन में ही निधन कर दिया था। इस दुख के बाद, उन्हें उनकी संतानों के भविष्य के लिए चिंता होने लगी थी।ब्रिटिश सरकार ने उनकी संपत्ति ज़ब्त करने के साथ-साथ उनकी पुत्री दालबी को भी छीन लिया था। इससे रानी लक्ष्मीबाई का दुख और अधिक बढ़ गया। उन्होंने उनके संबंधित नेताओं से मदद मांगी थी लेकिन उन्हें कोई सहायता नहीं मिली।

इस प्रकार, रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विरोध करने का फैसला किया था। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ दिया था और अंत में उन्हें मार डाला गया था। रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और साहस ने उन्हें देश की स्वतंत्रता के लिए एक अमर योद्धा के रूप में बना दिया है।

रानी लक्ष्मीबाई के दुख का क्या कारण था?

रानी लक्ष्मीबाई के जीवन में कई दुख थे। उनके दुखों के कुछ कारण निम्नलिखित हैं:

  1. उनके पिता की मृत्यु: रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता मोरोपंत ताम्बे एक मराठी सरदार थे। लेकिन उनकी उम्र केवल तीन साल थी जब उनके पिता का निधन हो गया।
  2. बाल्यावस्था में शोक: उनकी माँ भगीरथीबाई ने बचपन में ही निधन कर दिया था। इससे उनकी बाल्यावस्था बहुत दुःखद रही थी।
  3. शिक्षा में अभाव: रानी लक्ष्मीबाई के पिता का निधन के बाद उनकी शिक्षा का पूरा ख्याल नहीं रखा गया था। उन्हें अधिक से अधिक बुद्धि विकसित करने और पढ़ाई करने की अनुमति नहीं थी।
  4. शादी: उनकी शादी उनकी बचपन की दोस्त जीवाजीराव नाईक के साथ हुई थी। यह शादी उनकी इच्छा के विपरीत हो गई थी। उन्हें अपनी शादी से खुश नहीं था।
  5. स्वतंत्रता के लिए संघर्ष: उन्होंने अंग्रेजों के शासन के खिलाफ संघर्ष किया |
  6. स्वतंत्रता संग्राम में गुज़रे दिनों का दुख: रानी लक्ष्मीबाई के स्वतंत्रता संग्राम में कई बलिदानी लोगों की मृत्यु हो गई थी। उन्होंने अपनी सेना के साथ संघर्ष किया था, लेकिन उनकी सेना कमजोर थी और उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए अनेक दुख झेलने पड़े।
  7. सिंघासन हानि: उनके पति गंगाधर राव का भी निधन हो गया था। उसके बाद उन्हें नवगढ़ में सिंघासन पर बैठने का अधिकार था, लेकिन उनके विरोध के बाद उन्हें अपना सिंघासन छोड़ना पड़ा।
  8. विदेश यात्राएं: रानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश सरकार ने जबरन नवाबों के साथ विदेश भेजा था। उन्होंने यह स्वीकार नहीं किया था, लेकिन उस समय उनकी स्थिति बेहद कमजोर थी और उन्हें अंग्रेजों से लड़ने का उपाय नहीं था।
  9. उनके लिए संस्कृति का महत्व: रानी लक्ष्मीबाई एक शिक्षित महिला थी और उन्हें संस्कृति का बखूबी पता था। उन्हें उत्तर भारतीय संस्कृति, संगीत और नृत्य का बखूबी ज्ञान था। इसलिए उन्हें अंग्रेजों के संस्कृति से विरोध था जिसकी वजह से उन्हें उस समय भी दुख पहुंचा था।
RANI LAXMIBAI KI KAHANI IN HINDI (रानी लक्ष्मी बाई ने विरोध क्यों किया था?)
RANI LAXMIBAI KI KAHANI IN HINDI (रानी लक्ष्मी बाई ने विरोध क्यों किया था?)

इन सभी कारणों से उनके जीवन में कई दुख थे जो उन्होंने सहन किए।

READ MORE :- RAHU KETU KI KAHANI IN HINDI (राहु को शांत कैसे करें?)

Hello Friend's! My name is Shweta and I have been blogging on chudailkikahani.com for four years. Here I share stories, quotes, song lyrics, CG or Bollywood movies updates and other interesting information. This blog of mine is my world, where I share interesting and romantic stories with you.

Leave a Comment