SHANI DEV MAHARAJ KI KAHANI IN HINDI (शनि देव को किसने श्राप दिया था?)

By Shweta Soni

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हेलो फ्रेंड्स ,

मेरा नाम श्वेता है और आज मै आप सभी के लिए शनि देव महाराज की कहानी लेके आई हु मै उम्मीद करती हु की आप सभी को कहानी अच्छी लगी होगी। मै आप सभी दोस्तों के लिए नई नई कहानिया लेके आते रहती हु आप सभी को ये कहानी भी अच्छी लगेगी एक बार कहनी को पढ़े और अच्छी लगे तो अपने दोस्तों और परिवारों में शेयर करे धन्यवाद।

शनि देव महाराज सूर्य देवता और उनकी पत्नी छाया के पुत्र थे। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे काफी अंधेरे रंग के थे और उनकी माँ छाया को उनकी सौतेली माँ संध्या द्वारा अन्याय के साथ व्यवहार करने की शिकायत थी। इससे शनि देव एक अकेला व्यक्ति बन गए और वह अपने परिवार से दूर चला गया।

जब वह बड़ा हुआ, तो शनि देव ज्योतिष का एक महारत बन गए और उनकी योग्यता के कारण वे भविष्यवाणी करने में सक्षम थे। उनकी न्यायपूर्ण सोच और न्याय के प्रति उनकी कड़ी निष्ठा उन्हें अनुकूल नहीं बनाती थी और वे उन लोगों को सज़ा देते थे जो गलत करते थे, उनकी स्थिति या उनकी पद-प्रतिष्ठा के बावजूद।

हालांकि, उनकी न्यायपूर्ण सोच के कारण लोगों में उनसे डर और असमंजस होने लगा। यह माना जाता था कि अगर शनि देव को संतुष्ट नहीं किया गया तो वह व्यक्तियों और उनके परिवारों के लिए दुर्भाग्य ले आएगा।

लेकिन इसके बावज शनि देव की कहानी बड़ी रोचक है। शनि देव हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं जो कर्म फल के देवता होते हैं। इन्हें काल देवता भी कहा जाता है। शनि देव उत्तर भारत के हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित एक गुफा में रहते थे।

शनि देव की कहानी में उनकी पत्नी के शाप के कारण उन्हें भूलभुलैया और अन्याय के रूप में परिचित किया जाता है। शनि देव की विशेषता यह है कि वे न्याय के देवता होते हैं और अन्याय को सदा प्रतिबद्ध रहते हैं। उन्होंने अपनी पत्नी के शाप से सबक लिया था और उन्होंने अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करके लोगों को सच्चे न्याय का अनुभव कराने का प्रयास किया था। शनि देव एक महत्वपूर्ण देवता हैं जो काल और कर्म फल को नियंत्रित करते हैं और उन्हें उनके अनुभवों से सीखना चाहिए।

SHANI DEV MAHARAJ KI KAHANI IN HINDI (शनि देव को किसने श्राप दिया था?)
SHANI DEV MAHARAJ KI KAHANI IN HINDI (शनि देव को किसने श्राप दिया था?)

शनि देव महाराज की कहानी

शनि देव महाराज हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं। शनि देव को अमावस्या के दिन प्रसन्न करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां हम आपके लिए एक कहानी लाये हैं जो शनि देव महाराज की उपासना का महत्व बताती है।

एक गांव में एक बहुत ही सम्पन्न राजा रहता था। उसके पास बहुत सारा धन था और वह अपनी दौलत से बहुत अहंकारी हो गया था। एक दिन, उसे शनि देव महाराज का नाम सुनने को मिला और वह सोचा कि यह कौन सा देवता है। वह अपने पुरोहित से शनि देव के बारे में पूछता है तो पुरोहित ने बताया कि शनि देव दुःख का देवता हैं। उसने भी समझा कि जितना धन उसके पास है, उतना ही उसे सुख भी मिलेगा।

राजा ने तुरंत ही शनि देव की पूजा करना शुरू कर दी। उसने शनि देव के लिए एक बड़ा मंदिर भी बनवा लिया और उसमें अनेक उपहार भी चढ़ाए। लेकिन फिर भी उसके जीवन में दुःख का आगमन होता रहा। राजा का राज्य नुकसान में आने लगा और उसके असंतोष के कारण वह हर व्यक्ति से अधिकाधिक धन कमाने लगा था।

एक दिन उसे एक बुढ़िया मिली जो उससे कुछ धन मांगती थी। राजा ने उसे अपनी दौलत का कुछ हिस्सा दे दिया लेकिन उसे उससे खुशी नहीं मिली। बुढ़िया ने उसे बताया कि धन से हमेशा खुशी नहीं मिलती है। उसने उसे शनि देव महाराज की पूजा करने की सलाह दी। राजा ने उसे धन दिया और उसने शनि देव की पूजा शुरू कर दी।

धीरे-धीरे राजा के जीवन में सुख लौट आया। उसे उसकी अभिलाषाओं से ऊपर उठकर दुःख और सुख के मूल्य का आभास हुआ। वह अब शनि देव के अति महत्व को समझ गया था।इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि धन से हमेशा खुशी नहीं मिलती है और शनि देव महाराज को प्रसन्न करने से हमें अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।

शनि देव महाराज के बारे में अधिक जानकारी के लिए, उनकी कहानियों और महत्व के बारे में अध्ययन किया जाना चाहिए। उनके भक्तों के लिए उनके मंदिरों में जाकर पूजा करना बहुत फलदायी माना जाता है। शनि देव महाराज को ध्यान में रखकर हम सभी दुःखों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

शनि देव महाराज की कहानी हमें यह भी शिक्षा देती है कि हमें संतोष बनाए रखना चाहिए और अपनी अभिलाषाओं के लिए नहीं, अपितु अपने कर्तव्यों के लिए जीना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि जीवन में सुख और दुःख एक साथ होते हैं और हमें इन्हें एक समान रूप से स्वीकार करना चाहिए। इसी तरह हमें अपने कर्मों का फल भी स्वीकार करना चाहिए।

शनि देव को किसने श्राप दिया था?

शनि देव को राजा वैवस्वत (रवि वंश का संतान) ने श्राप दिया था। वैवस्वत राजा का दो बेटे थे, मनु और यम देव। मनु मानव जाति के प्रजापति थे जबकि यम देव मृत्यु के देवता थे। एक दिन वैवस्वत राजा ने अपने दोनों बेटों को उत्तराखंड में एक जंगल में चले जाने को कहा। यम देव ने अपनी मां के लिए खिलाऊ मांगा जिसे मनु ने उनसे मांगवा लिया। इससे यम नाराज हो गए और उन्होंने शनि देव के सम्पूर्ण शक्तियों को लेकर उन्हें श्राप दिया कि वह किसी भी व्यक्ति की कुंडली में जन्म करके उसे उसके कर्मों के अनुसार शिक्षा देने के लिए उसके जीवन में उतरेंगे। इसी तरह शनि देव को श्राप मिला था।

इसके बाद से शनि देव को भारी शनि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उनकी शक्तियों का प्रभाव भारी होता है। शनि देव का उल्लेख हिंदू धर्म के अनेक प्रतिष्ठित ग्रंथों में मिलता है और उन्हें ज्योतिष के स्थान पर भी महत्वपूर्ण माना जाता है। शनि देव के श्राप से उनकी प्रतिष्ठा कम नहीं हुई बल्कि उन्हें अपने कर्तव्य के प्रति जोर दिया गया। शनि देव की पूजा शनिवार को की जाती है और इस दिन उन्हें विशेष अर्पण किया जाता है।

शनि देव ज्योतिष के स्थान पर उत्तरदायी ग्रह माने जाते हैं और उनका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार से दिखता है। शनि देव के प्रभाव से कुछ लोगों को दु:ख और कष्ट भोगना पड़ता है जबकि कुछ लोगों को उनका प्रभाव शुभ होता है। शनि देव की पूजा करने से उनके दुष्प्रभाव कम हो सकते हैं और शनि देव की कृपा से कष्टों और दु:खों से मुक्ति मिल सकती है।

शनि देव की कहानियों और महिमा को सुनकर लोग उन्हें प्रभु शनि या शनिश्चर के नाम से भी जानते हैं। उनकी कथाओं में शनि देव को दु:ख और कष्ट से गुज़रने वालों के महत्वपूर्ण उपाय बताये जाते हैं। शनि देव की पूजा करने से लोग उनकी कृपा प्राप्त करते हैं और उनके दुष्प्रभावों से बच सकते हैं।

शनि देव की कथाओं में उनके धर्म के आधार पर उन्हें धीरे-धीरे सबक सिखाने वाले दानव माना जाता है। उनकी कठिन शापों से लोगों को सबक मिलता है और उनकी पूजा विधि से उन्हें प्रसन्न होने का शनि देव की कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका उनकी माँ चाया देवी की है। चाया देवी शनि देव की माँ थीं। उनके पिता सूर्य देव उन्हें बेहद प्रिय थे। चाया देवी ने सूर्य देव से विवाह किया था और उन्हें शनि देव की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

कुछ कथाओं में बताया जाता है कि शनि देव ने अपनी माँ की शाप लेने के बाद उनके पास लौटने का रास्ता खो दिया था। चाया देवी ने अपने पति सूर्य देव के सामने उनके बेटे शनि देव को पसन्द नहीं करने का अपना विचार रखा था। इस पर सूर्य देव ने उनसे कहा कि अगर वह उनकी अपनी संतान को पसन्द नहीं करती हैं तो वह उनके सामने आँखें बंद कर ले।

चाया देवी ने सूर्य देव की आज्ञा का पालन करते हुए उनके सामने आँखें बंद कर लीं। इसके बाद जब वह उनकी संतान शनि देव को जन्म देने वाली थीं, तो उनके देखते ही शनि देव ने अपने चारों हाथों को फैला दिया। इससे चाया देवी को बहुत दर्द हुआ और वह इसेचाया देवी ने इस पर शिकायत की कि उसने इस संतान को जन्म नहीं देने का वादा किया था। सूर्य देव ने उसे समझाया कि यह उसकी गलती नहीं थी और इस बच्चे को उसने जन्म दिया है, इसलिए उसे उसकी संतान मानना चाहिए।

शनि देव का यह व्यवहार चाया देवी को बहुत दुःख पहुँचाया था। उन्होंने शनि देव को शाप देने का निर्णय लिया कि उनका बच्चा संपूर्ण दुनिया में कोई भी काम करने नहीं पाएगा और उसे कोई भी शुभ कार्य नहीं करने देगा।इस शाप के बाद से शनि देव एक ऐसे ग्रह के रूप में जाना जाता है जो अनिष्ट फल देने वाला होता है। लेकिन उनके शाप के बाद उन्होंने अपनी माँ को फिर से ढूंढ निकाला था और उन्हें खुश रखने का प्रयास किया था।यह शाप शनि देव के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो उनकी पुनर्जन्म और उनकी विशेषताओं के बारे में बताती है।

शनि देव की सबसे प्रिय राशि कौन सी है?

शनि देव की सबसे प्रिय राशि कुंभ राशि होती है। कुंभ राशि के जातकों को शनि देव के आशीर्वाद से अधिक फल मिलते हैं और उन्हें उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके अलावा, कुंभ राशि वालों को अपने आप को अपने कामों में लगने की शक्ति भी मिलती है। शनि देव कुंभ राशि को समर्पित होते हैं और इस राशि के जातकों को उनकी कड़ी मेहनत के लिए बधाई भी देते हैं।

शनि देव को कुंभ राशि से बहुत प्रेम होता है क्योंकि यह एक वैदिक राशि है और शनि देव भी वैदिक देवता हैं। कुंभ राशि के जातकों को शनि देव की कृपा से उनके काम सफल होते हैं और उन्हें सफलता की प्राप्ति में मदद मिलती है।शनि देव उन सभी लोगों की मदद करते हैं जो कठिनाईयों और चुनौतियों का सामना कर रहे होते हैं। वे उनकी सहायता करते हैं ताकि वे अपने लक्ष्यों तक पहुंच सकें। शनि देव अपने भक्तों को धैर्य, संयम और उत्तरदायित्व की सीख देते हैं।

वे बताते हैं कि किसी भी काम को करने से पहले उसके फल की सोचना चाहिए और फिर उसे करना चाहिए। शनि देव की सबसे प्रिय राशि कुंभ राशि होने के कारण, उनके भक्तों को कुंभ राशि के जातकों के लिए अलग-अलग उपाय बताए जाते हैं जिन्हें करने से वे शनि देव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए कुंभ राशि के जातकों को अपने कर्मों को और भी सावधानीपूर्वक करना चाहिए। उन्हें अपने दोषों को स्वीकार कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए। कुंभ राशि के जातकों को शनि देव की पूजा और उनके भक्ति का पालन करना चाहिए।

शनि देव को खुश करने के लिए कुंभ राशि के जातकों को उनकी मूर्ति का जल अभिषेक करना चाहिए। इसके अलावा, शनिवार के दिन उनकी पूजा करनी चाहिए। कुंभ राशि के जातकों को शनि देव के उपायों में शनि देव के मंत्र का जप करना चाहिए जो उनके काम सफल होने में मदद करता है।

कुंभ राशि के जातकों को शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए एक अन्य उपाय है शनि देव की आरती का गाना। शनि देव की आरती गाने से उनकी कृपा बनी रहती है और उनकी सहायता से जीवन में अधिक सफलता मिलती है। इस तरह, कुंभ राशि के जातकों को शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए उन्हें उपायों का पालन करना चाहिए और शनि देव को समर्पित शनि देव को समर्पित होना बहुत महत्वपूर्ण है।

शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए कुंभ राशि के जातकों को शनि देव के उपासना में अधिक ध्यान देना चाहिए। शनि देव की पूजा के लिए उन्हें उनके शनिवार के दिन विशेष तौर पर समर्पित होना चाहिए।कुंभ राशि के जातकों को शनि देव की प्रतिमा को दान करना चाहिए। इसके अलावा, शनि देव की मूर्ति के सामने अपनी आँखें बंद करके उनके मंत्र का जप करना चाहिए। शनि देव के मंत्र का जप करने से कुंभ राशि के जातकों को उनकी सहायता मिलती है और उनके जीवन में समस्याओं से निपटने के लिए सहायता मिलती है।

कुंभ राशि के जातकों को शनि देव के उपायों के अलावा उनके बरतने की भी ध्यान रखना चाहिए। उन्हें शनि देव के कारण हुई समस्याओं को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें दूर करने के लिए सक्रिय होना चाहिए। कुंभ राशि के जातकों को अपनी राशि के अनुसार शनि देव के उपायों का पालन करना चाहिए। इसके लिए उन्हें अपनी राशि के अनुसार शनि देव के उपायों को जानना चाहिए।

शनि देव की कितनी पत्नियां थीं?

शनि देव की कुल 2 पत्नियाँ थीं। उनका पहला पत्नी का नाम देवी नीला था और दूसरी पत्नी का नाम देवी मंदोदरी था। शनि देव की पत्नियों को देवी संग्या और देवी चाया के नाम से भी जाना जाता है। वे दोनों देवी दिति और ऋणा के भी रूप में जानी जाती हैं।शनि देव देवी नीला से अपनी पहली पत्नी और देवी मंदोदरी से अपनी दूसरी पत्नी के साथ बहुत प्रेम करते थे। देवी नीला के साथ उनका पुत्र शनैश्चर और देवी मंदोदरी के साथ उनकी पुत्री तप्ति उत्पन्न हुई।

शनि देव की पत्नियों का नाम भी कुछ जगहों पर अलग-अलग रूप में दिया गया है, लेकिन इन नामों के बारे में कुछ निश्चित जानकारी नहीं है।शनि देव की पत्नियों के बारे में विविध पुराणों और लोक कथाओं में बताया गया है कि उन्होंने दोनों पत्नियों से बहुत प्यार किया था और उनके साथ बहुत समय बिताया था। शनि देव के दोनों पत्नियों का स्वभाव भी बहुत भिन्न था। देवी नीला बहुत उत्साही थी और सदा खुश रहती थी, जबकि देवी मंदोदरी बहुत शांत और समझदार थी।

इन विविधताओं के बावजूद, शनि देव दोनों पत्नियों से बहुत प्यार करते थे और उनके साथ बहुत समय बिताना पसंद करते थे। शनि देव को एक बहुत विशिष्ट देवता माना जाता है और उनकी पत्नियां भी देवी के रूप में उन्हें समर्पित होती हैं।कुछ पुराणों में बताया जाता है कि शनि देव ने अपनी दोनों पत्नियों को एक साथ संतुष्ट नहीं कर पाए थे। इसके बावजूद, वे दोनों पत्नियों को समानता देते थे और उनकी आशा को पूरा करने के लिए प्रयास करते थे।

वे दोनों पत्नियों से उनके धर्म, नैतिकता, और दयालुता को समझते थे और उनकी दृष्टि में इस दुनिया में सब कुछ समान होता है।इस तरह, शनि देव की पत्नियों के बारे में विविध प्रकार की कहानियां हैं। लेकिन, सभी पुराणों में एक बात स्पष्ट है कि शनि देव अपनी पत्नियों से बहुत प्यार करते थे और उनके साथ बहुत समय बिताना पसंद करते थे।

शनि देव का शत्रु कौन है?

शनि देव का प्रमुख शत्रु होता है सूर्य देव या सूर्य पुत्र भगवान सूर्य। इसका कारण यह है कि शनि देव ज्योतिष्मती ग्रह होते हैं जो कि कर्म फल के लिए जिम्मेदार होते हैं। जबकि सूर्य देव जीवन का प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक होते हैं। इसलिए, शनि देव और सूर्य देव के बीच एक विरोध होता है जो उन्हें शत्रु के रूप में दर्शाता है।

इसके अलावा, कुछ लोग शनि देव का शत्रु मंगल ग्रह मानते हैं। मंगल ग्रह को लोग लाल ग्रह भी कहते हैं जो अग्नि का प्रतीक होता है। यह ग्रह संयम, उत्साह और ऊर्जा का प्रतीक होता है। इसलिए, मंगल ग्रह का शनि देव से विरोध होता है जो कि कर्म फल के लिए जिम्मेदार होते हैं।

शनि देव के अलावा, कुछ लोग बुध ग्रह को भी उनका शत्रु मानते हैं। बुध ग्रह बुद्धि, विवेक, बुद्धिमानी और वाणी का प्रतीक होता है। शनि देव के विरोध में, बुध ग्रह जीवन में सफलता के लिए बुद्धिमानी और ज्ञान के लिए जिम्मेदार होता है। इसलिए, शनि देव और बुध ग्रह के बीच एक विरोध होता है जो उन्हें शत्रु के रूप में दर्शाता है। इसके अलावा, शनि देव का शत्रु होते हैं अहंकार, घमंड और दम्भ जैसी बुरी आदतों का प्रतीक होते हैं।

यदि कोई व्यक्ति इन बुरी आदतों में उलझ जाता है तो शनि देव उसके विरुद्ध बन जाते हैं। इस तरह, शनि देव के कई शत्रु होते हैं, लेकिन उनमें सूर्य देव या मंगल ग्रह उनके प्रमुख शत्रु होते हैं। शनि देव को मंगल ग्रह का शत्रु माना जाता है क्योंकि इन दोनों ग्रहों के स्वभाव एक दूसरे के विपरीत होते हैं। मंगल ग्रह साहस, सड़कता, स्वाभिमान और आत्मविश्वास का प्रतीक होता है जबकि शनि देव कठिनाई, कर्मठता, तपस्या और धैर्य का प्रतीक होते हैं। इसलिए, शनि देव और मंगल ग्रह के बीच एक विरोध होता है जो उन्हें शत्रु के रूप में दर्शाता है।

SHANI DEV MAHARAJ KI KAHANI IN HINDI (शनि देव को किसने श्राप दिया था?)
SHANI DEV MAHARAJ KI KAHANI IN HINDI (शनि देव को किसने श्राप दिया था?)

वैदिक ज्योतिष में सूर्य देव भी शनि देव का शत्रु माना जाता है। सूर्य देव को स्वतंत्रता, आत्मविश्वास और ताकत का प्रतीक माना जाता है जबकि शनि देव को संघर्ष, कठिनाई और सीमित समय का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, शनि देव और सूर्य देव के बीच भी एक विरोध होता है जो उन्हें शत्रु के रूप में दर्शाता है।

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