SHIVLING KI KAHANI IN HINDI(12 ज्योतिर्लिंग के पीछे की कहानी क्या है)

By Shweta Soni

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हर हर महादेव दोस्तों,

मेरा नाम श्वेता है और में हमारे वेबसाइट के मदत से आप के लिए एक नयी शिवलिंग की कहानी लेके आई हु और ऐसी अच्छी अच्छी कहानिया लेके आते रहती हु। वैसे आज मै शिवलिंग की कहानी लेके आई हु कहानी को पढ़े आप सब को बहुत आनंद आएगा अगर हमारी कहानी अच्छी लगे तो अपने परिवार और दोस्तों में जरूर शेयर करे धन्यवाद ।

शिवलिंग की कहानी हमारी संस्कृति में विस्तृत रूप से वर्णित है। इसके अनुसार, एक दिन ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिमूर्ति बैठे हुए थे। तभी एक ज्योति उनके बीच उठी और उसमें से शिव का आभास दिखाई दिया। त्रिमूर्ति ने उस ज्योति का पता लगाने के लिए एक दिशा में चलने का विरोध किया, लेकिन शिव ने उन्हें समझाया कि यह ज्योति उनकी तेजस्विता की प्रतिनिधि है। उन्होंने उस ज्योति की पूजा की और उसे शिवलिंग के रूप में स्थापित किया। यहीं से शिवलिंग की पूजा की परंपरा शुरू हुई।

शिवलिंग एक प्राचीन हिंदू धर्म का पूजा स्थल है जो महादेव या शिव को समर्पित होता है। इसका इतिहास बहुत पुराना है और इसका उल्लेख वेदों में भी मिलता है।

शिवलिंग का मूल्यांकन धार्मिक होता है और इसे एक शिव भक्त का सबसे प्रतिष्ठित स्थल माना जाता है। शिवलिंग को धातु, पत्थर, माला आदि से सजाया जाता है। इसका उपयोग पूजा और ध्यान के लिए किया जाता है।

शिवलिंग के बारे में कुछ विवाद भी हैं। कुछ लोगों के अनुसार, शिवलिंग लिंग पूजा से जुड़ा हुआ है, जो एक विवादित विषय है। हालांकि, अधिकांश वैदिक ग्रंथों में शिवलिंग को महादेव या शिव का रूप माना जाता है।

शिवलिंग की शारीरिक विशेषताओं के अलावा, इसकी आध्यात्मिक अर्थव्यवस्था भी होती है। शिवलिंग को त्रिमूर्ति का प्रतीक भी माना जाता है जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश को दर्शाता है।

समय से पहले, लोग शिवलिंग को जल, दूध, घी, दही, मधु आदि से समय से पहले, लोग शिवलिंग को जल, दूध, घी, दही, मधु आदि से स्नान कराते थे। यह स्नान शिवलिंग की शुद्धि और आराधना के लिए किया जाता था। आज के दौर में, शिवलिंग को पानी से धोया जाता है और फूल, धूप, दीपक आदि से उसकी पूजा की जाती है।

शिवलिंग की उत्पत्ति के बारे में बहुत सारी कहानियाँ हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने शिवलिंग को अपनी पीठ पर स्थापित किया था ताकि शिव की उपासना की जा सके। एक और कथा के अनुसार, भगवान शिव ने अपने आभूषण रथ को एक पत्थर में बदल दिया था और उसे शिवलिंग के रूप में प्रतिष्ठित किया था।

शिवलिंग एक प्रसिद्ध हिंदू धर्म का पूजा स्थल है और इसे महादेव या शिव को समर्पित होता है। शिवलिंग की पूजा और आराधना के माध्यम से, लोग शिव की भक्ति और उनकी कृपा का अनुभव करते हैं।

य से पहले, लोग शिवलिंग को जल, दूध, घी, दही, मधु आदि से स्नान कराते थे। यह स्नान शिवलिंग की शुद्धि और आराधना के लिए किया जाता था। आज के दौर में, शिवलिंग को पानी से धोया जाता है और फूल, धूप, दीपक आदि से उसकी पूजा की जाती है।

शिवलिंग की उत्पत्ति के बारे में बहुत सारी कहानियाँ हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने शिवलिंग को अपनी पीठ पर स्थापित किया था ताकि शिव की उपासना की जा सके। एक और कथा के अनुसार, भगवान शिव ने अपने आभूषण रथ को एक पत्थर में बदल दिया था और उसे शिवलिंग के रूप में प्रतिष्ठित किया था।

शिवलिंग एक प्रसिद्ध हिंदू धर्म का पूजा स्थल है और इसे महादेव या शिव को समर्पित होता है। शिवलिंग की पूजा और आराधना के माध्यम से, लोग शिव की भक्ति और उनकी कृपा का अनुभव करते हैं।

शिवलिंग के अलावा, भगवान शिव के विभिन्न रूपों की मूर्ति भी होती हैं जैसे नटराज, अर्धनारीश्वर, महाकाल, महादेव आदि। शिवलिंग की तुलना में, इन मूर्तियों का आकार और भाव अलग होता है।

शिवलिंग का इतिहास धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों से जुड़ा हुआ है। विभिन्न धर्मों में भगवान शिव के अनेक रूपों की पूजा की जाती है और शिवलिंग उनमें से एक है।

शिवलिंग के आकार को गोल या तोरण आकार में बनाया जाता है। शिवलिंग की उपासना में त्रिशूल और नाग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। त्रिशूल शिव के तीन शक्तियों को दर्शाता है जो उसमें संगमित होती हैं जो सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक होते हैं। नाग शिव के सम्बंध में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वह शक्ति और निर्माण का प्रतीक होते हैं।

इस प्रकार, शिवलिंग का इतिहास विश्वासों, धर्म एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ है। यह हिंदू धर्म की संपूर्ण विश्वास परम्भित है। शिवलिंग की पूजा हिंदू धर्म में बहुत आम है और इसके साथ ही इसके रहस्यों और महत्व को समझना भी महत्वपूर्ण है।

शिवलिंग के महत्व और इतिहास के संबंध में कुछ लोग विभिन्न विचार रखते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि शिवलिंग की उत्पत्ति काफी पुरानी होने के साथ-साथ प्राचीन सभ्यताओं से जुड़ी होती है। यह भी माना जाता है कि शिवलिंग के आकार से जुड़ी पूर्वजों की पूजा से शुरू हुआ था।

शिवलिंग के अलावा, शिव पूजा में अन्य वस्तुएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शिव की पूजा में बेल पत्र, धातु की कलश, धूप, दीपक, फूल, वस्त्र आदि का प्रयोग किया जाता है। शिव की अराधना के लिए अन्य उपाय भी होते हैं जैसे महाशिवरात्रि पर जागरण, मंदिर में आरती, व्रत, ध्यान आदि।

अंततः, शिवलिंग का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसके संबंध में धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थ होते हैं। हिंदू धर्म में शिव की पूजा करने के अलावा, शिव के अनेक नाम होते हैं जैसे महादेव, नीलकंठ, शंकर, महाकाल आदि। इन नामों के पीछे उनकी विशेषताएं और गुण होते हैं।

शिवलिंग का अर्थ बहुत संगठित होता है। शिवलिंग शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। शिव जो कि उन्नततम परमात्मा का एक रूप माना जाता है और लिंग जो कि प्रकृति के संयोग से उत्पन्न होता है या पुरुष शक्ति का प्रतीक होता है। इसलिए, शिवलिंग का अर्थ होता है ‘शिव के लिए प्रतिनिधित्व करने वाला पुरुष शक्ति का प्रतीक’।

शिवलिंग को स्वयं शिव का अभिवादन करते हुए पूजा जाता है। शिवलिंग को प्रथम तो शुद्ध करते हैं और फिर धातु की कलश के साथ उसके ऊपर धूप, दीप, फूल आदि की अर्चना की जाती है। यह पूजा साधकों को शिव से संबंधित भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करती है।

अंततः, शिवलिंग का इतिहास विस्तृत और विविध होता है। इसके पीछे भारतीय संस्कृति और धर्म की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को समझना जरूरी होता है। शिवलिंग का प्रचलन संस्कृति और धर्म के विभिन्न अंशों से उत्पन्न हुआ है और इसकी व्यापक उपयोगिता धर्म के अलावा कला और वास्तुशास्त्र में भी होती है।

शिवलिंग का अधिकांश इतिहास संबंधित संस्कृति और धर्म की पारंपरिक कथाओं और पुराणों से लिया जाता है। यह माना जाता है कि शिवलिंग को पहली बार देवी सती के शरीर के तुकड़ों से बनाया गया था। सती ने खुद को अपने पति के समझाने की कोशिश करते हुए संजो दे दिया था, इससे पहले कि उनकी आत्मा उन्हें त्याग दे। इसलिए, शिवलिंग को सती का प्रतीक माना जाता है।

अन्य कथाएं शिवलिंग को ब्रह्मांड के मूलधार चक्र के समान होने के कारण पूजा के लिए महत्वपूर्ण बनाती हैं। इसके अलावा, शिवलिंग को भगवान शिव के सबसे अभिन्न रूपों में से एक माना जाता है और इसे पूजने से शिव के आशीर्वाद और कृपा मिलती है।

SHIVLING KI KAHANI IN HINDI(12 ज्योतिर्लिंग के पीछे की कहानी क्या है)
SHIVLING KI KAHANI IN HINDI(12 ज्योतिर्लिंग के पीछे की कहानी क्या है)

शिवलिंग का इतिहास क्या है?

शिवलिंग का इतिहास बहुत पुराना है और इससे जुड़े कुछ प्राचीन धर्मों और संस्कृतियों से हैं। शिवलिंग एक प्राचीन हिंदू पूजा आधार है जो प्राचीन समय से चली आ रही है।

वेदों में शिव की महिमा का वर्णन किया गया है और शिवलिंग का उल्लेख भी मिलता है। शिवलिंग का आकार प्राकृतिक विस्फोटों और पत्थरों से निर्मित होता था। इसे एक स्थिर पत्थर बनाया जाता था जो शिव को प्रतिनिधित्व करता था।

अनुमान लगाया जाता है कि शिवलिंग अधिकतर आर्यों द्वारा पूजे जाने वाले हैं और यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख पूजा वस्तु है। वैदिक संस्कृति में भी शिव का उल्लेख मिलता है जो शिवलिंग की पूजा के साथ जुड़ा हुआ है।

इसके अलावा, शिवलिंग का उल्लेख पुराणों, तांत्रिक संस्कृति और स्कुल्प्चर में भी मिलता है। इसलिए, शिवलिंग का इतिहास बहुत पुराना है और इसे विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों से जोड़ा जाता है।

शिवलिंग का महत्व हिंदू धर्म में बहुत ऊँचा है और इसे पूजा के अवसरों पर शिव मंदिरों में अर्चना के लिए उपयोग किया जाता है। शिवलिंग की अर्थव्यवस्था शिवतत्व को प्रतिनिधित्व करती है जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मौजूद है।

शिवलिंग के अलावा, शिव की पूजा के लिए अन्य पूजा वस्तुओं का भी उपयोग किया जाता है, जैसे शिव की मूर्तियां, त्रिशूल और डमरू। हिंदू धर्म में शिव की पूजा भक्ति का एक प्रमुख रूप है जो शिव की महिमा और उसकी शक्तियों को समझते हुए की जाती है।

शिवलिंग की रचना की जानकारी उपलब्ध होने के बावजूद, इसकी वास्तविक उत्पत्ति और उसके विस्तार का सटीक इतिहास अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि, शिवलिंग का उपयोग हिंदू धर्म में बहुत लंबे समय से किया जा रहा है और यह धर्म के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का भी अभिन्न अंग बना हुआ है।

शिवलिंग का इतिहास हमारे वेदों और पुराणों में भी उल्लेख किया गया है। शिवलिंग का प्रथम उल्लेख वेदों में हुआ है जो कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय में लिखे गए थे। चंद्रगुप्त मौर्य के समय में शिवलिंग अपनी पूजा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया था और शिवलिंग के महत्व को लोग समझते थे।

शिवलिंग के बारे में पुराणों में भी कहानियां और उल्लेख हैं। शिवलिंग को देवी सती के उत्तर देने से पैदा हुआ माना जाता है। देवी सती को अपने पिता ने महादेव से विवाह कराने की मजबूरी में डाला था। एक बार जब शिव के याचकों ने सती को बुलाया, तो सती ने शिव की अनगिनत गुणों के बारे में सुना और उनके भक्त बन गई। उनके पति ने उन्हें नहीं बुलाया जाने दिया था और इस पर सती ने अपने शरीर को जला दिया।

इस घटना के बाद महादेव ने सती के शरीर को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया। शिवलिंग उसी समय उत्पन्न हुआ जब शिव ने एक स्थान पर अपना प्रतिरूपखा था और उस पर सती के शरीर के टुकड़े रखे गए थे। इसी से शिवलिंग को सती के प्रति श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।

वैदिक संस्कृति में, शिव को शिवलिंग के माध्यम से पूजा किया जाता है। शिवलिंग को वैदिक संस्कृति में जल द्वारा स्नान कराने के बाद पूजा किया जाता है। शिवलिंग की पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य और बिल्वपत्र का उपयोग किया जाता है।

शिवलिंग का इतिहास हमारे देश की संस्कृति और धर्म के अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शिवलिंग की पूजा हमारे देश में हजारों सालों से की जाती रही है और आज भी शिवलिंग एक महत्वपूर्ण धार्मिक चिह्न है।

शिवलिंग पर पानी डालने से क्या होता है?

शिवलिंग पर पानी डालने का परंपरागत वैदिक महत्व है। शिवलिंग पर जल डालने से पहले शिव पूजा की जाती है, जिसमें शिवलिंग को सफ़ेद कपड़े से ढक दिया जाता है और धूप, दीप, नैवेद्य आदि का उपयोग करके पूजा की जाती है।

शिवलिंग पर पानी डालने से शिवलिंग की स्वच्छता बनी रहती है और इससे शिव की कृपा मिलती है। शिवलिंग पर पानी डालने से शिवलिंग की ऊर्जा बढ़ती है और इससे शिव की आशीष मिलती है। यह पानी पुण्य का भी काम करता है जो शिवलिंग के निकट खड़े लोग अपने सिर पर डाल लेते हैं। इस रूप में, शिवलिंग पर पानी डालना एक धार्मिक क्रिया है जो शिव पूजा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

शिवलिंग पर पानी डालने से शिवलिंग की ताजगी बनी रहती है और इससे शिवलिंग की स्थिरता भी बनी रहती है। इस प्रकार, शिवलिंग पर पानी डालना शिव पूजा के एक महत्वपूर्ण अंग होता है जो शिव भक्तों द्वारा अनुसरण किया जाता है।

वैदिक धर्म में शिवलिंग को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है और इसे विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। इस पूजा में जल के अलावा दूध, धनिया, तेल आदि भी उपयोग किया जाता है। इन सभी तरह के उपचार से शिवलिंग की स्थिरता, ऊर्जा, ताजगी और स्वच्छता बनी रहती है जो शिवभक्तों को आशीर्वाद देती है।

शिवलिंग पर पानी डालने से यह भी माना जाता है कि यह प्रक्रिया शिवलिंग की पूजा के दौरान नहीं केवल उसके ऊर्जा को बनाए रखती है, बल्कि शिवलिंग की प्रतिमा से बाहर निकलने वाले उस जल को भी स्वच्छ रखती है। इस प्रकार, यह प्रक्रिया शिवलिंग की स्थिरता, स्वच्छता और ऊर्जा को बनाए रखने में मदद करती है।

शिवलिंग पर पानी डालने का एक और महत्वपूर्ण कारण यह है कि शिवलिंग की चोटी को धक्का देने से शिव के रूप में उसकी ऊर्जा निकलती है। इसलिए, शिवलिंग पर पानी डालने से उसकी चोटी को धक्का नहीं मिलता है और उसकी ऊर्जा सुरक्षित रहती है।

समस्त इन प्रभावों के कारण, शिवलिंग पर पानी डालना शिव पूजा के एक अहम अंग है और यह शिवभक्तों द्वारा अनुसरण किया जाता है। इसके अलावा, शिवलिंग पर पानी डालने से उसकी स्वच्छता बनी रहती है और उसकी पूजा करने वाले लोगों को उससे बहुत संतुष्टि मिलती है। शिवलिंग पर पानी डालने का यह रितुअल शिवभक्तों द्वारा पूजा में विशेष महत्व दिया जाता है और इससे शिव की कृपा भी प्राप्त होती है।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने के विभिन्न तरीके होते हैं। एक तरीका यह है कि शिवलिंग पर ठंडे जल की बूँदें डाली जाती हैं। दूसरा तरीका है कि शिवलिंग पर धूप लगाई जाती है और उसके ऊपर पानी डाला जाता है। तीसरा तरीका होता है कि एक चम्मच धनिया पाउडर और शक्कर को पानी में मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है। चौथा तरीका होता है कि शिवलिंग के नीचे एक बाल्टी में जल रखा जाता है जिससे शिवलिंग की पूजा के दौरान जल उसके ऊपर से धाराप्रवाह करता रहता है।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने का एक और महत्वपूर्ण कारण है कि इससे शिवलिंग के सत्य रूप की पहचान होती है। शिवलिंग के ऊपर जल की धारा गिरती हुई उसके सत्य रूप को दर्शाती है और उसे आदर देने का संकेत देती है। इससे शिव भक्त शिवलिंग की पूजा करते समय शिव के सत्य रूप को दर्शाने का अनुभव करते हैं।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने के साथ-साथ शिवजी की पूजा में बेलपत्र, धातु का दीपक, अक्षत, फूल और धूप भी चढ़ाये जाते हैं। इन सभी चीजों को शिवलिंग के आसपास रखा जाता है जो शिवजी को आदर्श में रखता है और उन्हें अधिक से अधिक प्रसन्न करता है। यह सब कुछ शिवजी के पूजन में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और भक्तों को उनकी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने के अलावा इसके अन्य भी कुछ महत्वपूर्ण प्रयोग होते हैं। अधिकांश लोग शिवलिंग की पूजा करते समय शिवलिंग के आसपास पांच मुख्य चीजें रखते हैं। इन चीजों को पंचामृत कहा जाता है और इसमें दूध, दही, घी, मधु और शहद होता है। पंचामृत शिव की पूजा में बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे चढ़ाने से शिव को अधिक से अधिक प्रसन्नता मिलती है।

शिवलिंग की पूजा करते समय बेलपत्र भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। बेलपत्र शिव के प्रतिनिधि माने जाते हैं और इसे चढ़ाने से शिवलिंग को आदर मिलता है और शिवजी भी प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा, धूप और दीपक के साथ-साथ फूलों को भी शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है। यह सभी चीजें शिव के पूजन में उपयोग में आती हैं और शिवलिंग की पूजा को पूर्ण करने में मदद करती हैं।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने से शिवलिंग गर्म होता है और इससे प्रभावित होकर जल सोख जाता हैं। इससे शिवलिंग के ऊपर धुंएं का रूप बनता है जो शिव को आदर्श बनाता है। इसके अलावा, जल शिवलिंग के ऊपर स्थित योनि या अर्धचन्द्रकार आकार के भीतर गिरता है, जिससे शिवलिंग को आराधना के लिए अधिक शुद्ध बताया जाता है।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने का एक और महत्व है कि इससे शिव की शांति, सुख और संतुष्टि होती है। शिवलिंग की पूजा करते समय जल चढ़ाने से मन की शांति मिलती है और इससे अन्तःकरण शुद्ध होता है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है और जीवन के उतार-चढ़ाव से निपटने में मदद मिलती है।

इसके अलावा, शिवलिंग पर जल चढ़ाने से मन को शांति मिलती है, संकटों से मुक्ति मिलती है, स्वास्थ्य में सुधार होता है, विवाह और परिवार में सुख और समृद्धि मिलती है। इसलिए लोग शिवलिंग पर जल चढ़ाने के महत्व को समझते हुए शिव की पूजा करते हैं।

12 ज्योतिर्लिंग के पीछे की कहानी क्या है

भारत में शिव के 12 ज्योतिर्लिंग बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनमें से हर एक का अपना अलग-अलग इतिहास है।

  1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि चंद्रमा ने शिव को यहां प्रकट होने के लिए आमंत्रित किया था।
  2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग अंध्र प्रदेश में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि पांडवों ने इस जगह पर शिव की पूजा की थी।
  3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। इसका नाम महाकाल है, जो शिव का एक रूप है।
  4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर नगर में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर्वती ने शिव का ध्यान किया था।
  5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग: केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में स्थित है। इसके बारे में कहा जात है कि पांडवों ने इस जगह पर शिव की पूजा की थी।
  6. भीमशंकर ज्योतिर्लिंग: भीमशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि भीम ने इस जगह पर शिव की पूजा की थी।
  7. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग: विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर्वती ने शिव की पूजा की थी।
  8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग: त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर्वती ने शिव की पूजा की थी।
  9. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग: काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर्वती ने शिव की पूजा की थी।
  10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर्वती ने शिव की पूजा की थी।
  11. राम ज्योतिर्लिंग: रामेश्वर ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामेश्वरम में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि राम ने इस जगह पर शिव की पूजा की थी।
  12. गृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: गृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर्वती ने शिव की पूजा की थी।

इन 12 ज्योतिर्लिंगों को दर्शन करने से मान्यता है कि शिवभक्त अपने जीवन के दुःखों से राहत पा सकते हैं और भगवान शिव की कृपा से सद्गति प्राप्त कर सकते हैं।

ज्योतिर्लिंग क्यों कहते हैं?

ज्योतिर्लिंग शब्द का अर्थ होता है “ज्योति का लिंग”। शिव जी ज्योति स्वरूप हैं और ज्योतिर्लिंग उनकी भक्तों के लिए उनके प्रतिमाओं या मूर्तियों के रूप में मान्यता है। इन ज्योतिर्लिंगों का महत्व शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इन्हें दर्शन करने से उन्हें शिव जी की कृपा मिलती है और उनके जीवन से संबंधित सभी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

ज्योतिर्लिंग के दर्शन से शिव भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इनमें से हर एक ज्योतिर्लिंग के पीछे एक अलग-अलग कथा होती है जो शिव पुराण या शिव महापुराण से ली गई होती है। ज्योतिर्लिंगों के दर्शन अनेक संसारी समस्याओं का निवारण करते हैं, जैसे बीमारियों, दुर्भावनाओं, रोगों, आदि। इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को भी ऊंचा उठाया जा सकता है जो मानसिक शांति, सकारात्मक सोच और अधिक उत्साह देती है।

इसलिए, ज्योतिर्लिंगों को मान्यता के साथ सम्मान दिया जाता है और यात्रियों की भक्ति एवं आशीर्वाद प्राप्ति की कामना की जाती है |ज्योतिर्लिंग शब्द का अर्थ होता है “जो ज्योति से पूर्ण हैं” या “जो प्रकाशमय हैं”। इन लिंगों की पूजा करने से मान्यता है कि भगवान शिव का प्रकाश ज्योतिर्लिंग के रूप में होता है।

भारत में द्वादश ज्योतिर्लिंगों की मान्यता है और ये अलग-अलग शहरों में स्थित हैं। इन ज्योतिर्लिंगों को धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ये लिंग भगवान शिव के बहुत महत्वपूर्ण स्थान हैं और उनके दर्शन से विशेष शुभ फल प्राप्त होता है।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम व उनके स्थान निम्न हैं:

  1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग – गुजरात
  2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग – आंध्र प्रदेश
  3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – मध्य प्रदेश
  4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – मध्य प्रदेश
  5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग – उत्तराखंड
  6. भीमशंकर ज्योतिर्लिंग – महाराष्ट्र
  7. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग – जहानाबाद
  8. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – उत्तराखंड

शिवलिंग का नाम कैसे पड़ा?

शिवलिंग शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। “शिव” शब्द का अर्थ होता है “भगवान शिव” जो हिंदू धर्म में एक देवता हैं जबकि “लिंग” शब्द का अर्थ होता है “चिह्न” या “प्रतीक”। इसलिए, शिवलिंग का अर्थ होता है “भगवान शिव का चिह्न”। शिवलिंग को अक्सर शिव मंदिरों में पूजा जाता है और इसे एक धातु या पत्थर के रूप में बनाया जाता है जो शिव के प्रतीक के रूप में स्थापित किया जाता है।

शिवलिंग को उत्तर भारत में प्रायः ब्लैक स्टोन से बनाया जाता है, जिसे “बाणलिंग” भी कहते हैं। इसके अलावा, शिवलिंग को दूसरे प्रकार के पत्थरों से भी बनाया जाता है जैसे ग्रेनाइट, मार्बल आदि। शिवलिंग के ऊपर एक ब्रास का पात्र रखा जाता है, जिसे “जलहर” कहा जाता है। इस पात्र में जल डालकर शिवलिंग को स्नान कराया जाता है। इसके अलावा, शिवलिंग के ऊपर बिल्वपत्र रखे जाते हैं, जो भगवान शिव की खास पूजा के लिए प्रयोग किया जाता है।

शिवलिंग को पूजने के लिए, उपयुक्त मंत्रों का जाप किया जाता है जैसे “ॐ नमः शिवाय”। शिवलिंग पूजा को संपूर्ण मान्यता के साथ माना जाता है और भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद के लिए शिवलिंग की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।शिवलिंग के अलावा, शिव की भक्ति के लिए भगवान शिव की अन्य पूजाओं को भी मान्यता से पूजा जाता है। इनमें शिव पार्वती की मूर्ति को पूजना, शिव चालीसा का पाठ करना, शिव पुराण की कथाओं का सुनना आदि शामिल होता है।

शिवलिंग का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में शिव भक्ति और शिव पूजा की तस्वीर आ जाती है। शिवलिंग का महत्व और उसकी पूजा का महत्व हमारे संस्कृति में अत्यधिक होता है। शिवलिंग पूजा करने से मनुष्य को भगवान शिव की कृपा मिलती है और उसकी आशीर्वाद से हम जीवन में सफलता और सुखी जीवन प्राप्त कर सकते हैं।

शिवलिंग के अलावा, शिव की महिमा के कई रूप हैं। उनमें से एक है शिव के अर्धनारीश्वर रूप की मूर्ति। इस मूर्ति में शिव और पार्वती दोनों का एक ही शरीर होता है, जो लिंग और योनि के रूप में दिखाई देता है। यह मूर्ति शक्ति और पुरुष के एकत्व का प्रतीक होती है।

शिव के अन्य रूपों में नीलकंठ, महाकाल, रुद्र, नटराज, भोलेनाथ आदि शामिल होते हैं। इन रूपों में शिव की विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतीक होता है।शिव की महिमा के अलावा, उनके जीवन से जुड़ी कई कथाएं और लीलाएं भी हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण हैं। इनमें शिव-पार्वती की विवाह कथा, शिव के जीवन के अलग-अलग पहलू, उनके भक्तों की कथाएं आदि शामिल होती हैं।

SHIVLING KI KAHANI IN HINDI(12 ज्योतिर्लिंग के पीछे की कहानी क्या है)
SHIVLING KI KAHANI IN HINDI(12 ज्योतिर्लिंग के पीछे की कहानी क्या है)

संक्षिप्त में कहें तो, शिवलिंग भगवान शिव के प्रतीक होता है और उनकी पूजा का महत्व हमारी संस्कृति में अत्यधिक होता है। इसके अलावा, शिव की भक्ति और उनकी महिमा से जुड़ी कथाएं और लीलाएं भी हमारी संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण होती हैं। इसलिए, शिवलिंग को लेकर जो भी जानकारी होती है, उसे समझकर और सम्मान करके हम शिव की भक्ति करते हैं और उनके शुभाशीषों का लाभ उठाते हैं।

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