SHRI GOSWAMI TULSIDAS SUNDERKAND IN HINDI

By Shweta Soni

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जय श्री राम दोस्तों,

मेरा नाम श्वेता है और आज मै आप सभी के लिए सुंदरकांड लेके आई हु जिस से पद कर आप सभी के घर में सुख समृद्धि लेके आये। धन्यवादसुंदरकांड हिन्दी में हनुमान चालीसा का एक महत्वपूर्ण भाग है जो “रामचरितमानस” ग्रंथ में स्थान पाता है। यह एक महाकाव्य है जिसे महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है। सुंदरकांड रामायण का पंचम खण्ड है और इसमें हनुमान जी के अनुभव, उनकी शक्तियों, और उनके द्वारा लंका में हुए अनेक गहराईयों का वर्णन किया गया है।

सुंदरकांड का नाम स्वयं हनुमान जी के प्रतिभाशाली रूप “सुंदर” के आधार पर रखा गया है। यह खण्ड वानर सेना के मुख्य नेता हनुमान जी की प्रमुखता को दर्शाता है जब वे एक मार्ग शोधन के लिए रामजी के आदेश पर लंका को ढूंढ़ने के लिए जाते हैं।

सुंदरकांड में हनुमान जी की शक्ति, वीरता, बुद्धिमता, और उनके निष्ठा को दिखाया गया है। इसमें वर्णित है कि हनुमान जी लंका में घुसकर रावण के महल में विराजमान सीता माता का दर्शन करते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

सुंदरकांड का पाठ करने से बजरंगबली खुश होते हैं तथा हमे मन चाहा वरदान देते हैं। सुन्दरकाण्ड पाठ हमारे मन को शांति देता है तथा हमारे जीवन से सरे कष्टों और दुखो का मिटा देता है। आप सुन्दरकाण्ड पाठ हिंदी में PDF को डाउनलोड करे इससे पहले आपको इस हिंदी PDF की कुछ बेहद जरूर बातो को जानना बहुत जरूरी है |

जो आपका बहुत किमती समय और ऊर्जा बचा सकता है। सुंदरकांड का पाठ प्रत्येक मंगलवार या शनिवार को किया जाता है। इसका पाठ अकेले में या समूह के साथ संगीतमय रूप में किया जाता है। सुन्दरकाण्ड का नियमित पाठ जीवन की समस्त बाधाओं का नाश करता है। इससे धन, संपत्ति, सुख, वैभव, मान-सम्मान आदि प्राप्त होता है।

SHRI GOSWAMI TULSIDAS SUNDERKAND IN HINDI

सुन्दरकाण्ड पाठ हिंदी अर्थ सहित

1 – जगदीश्वर की वंदना

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहंकरुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् ॥1॥

भावार्थ: शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ.

2 – रघुनाथ जी से पूर्ण भक्ति की मांग.

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितंकुरु मानसं च ॥2॥.

भावार्थ: हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए.

3 – हनुमान जी का वर्णन

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तंवातजातं नमामि ॥3॥

भावार्थ: अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान् जी को मैं प्रणाम करता हूँ.

4 – जामवंत के वचन हनुमान् जी को भाए

चौपाई:

जामवंत के बचन सुहाए,
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई,
सहि दुख कंद मूल फल खाई ॥1॥

भावार्थ: जामवंत के सुंदर वचन सुनकर हनुमान् जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना.

5 – हनुमान जी का प्रस्थान

जब लगि आवौं सीतहि देखी,
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा,
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ॥2॥

भावार्थ: जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमान् जी हर्षित होकर चले. 

6 – हनुमान जी का पर्वत में चढ़ना

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर,
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी,
तरकेउ पवनतनय बल भारी ॥3॥

भावार्थ: समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमान् जी खेल से ही (अनायास ही) कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके अत्यंत बलवान् हनुमान् जी उस पर से बड़े वेग से उछले.

7 – पर्वत का पाताल में धसना

जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता,
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना,
एही भाँति चलेउ हनुमाना ॥4॥

भावार्थ: जिस पर्वत पर हनुमान् जी पैर रखकर चले (जिस पर से वे उछले), वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। जैसे श्री रघुनाथजी का अमोघ बाण चलता है, उसी तरह हनुमान् जी चले.

8 – समुन्द्र का हनुमान जी को दूत समझना

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी,
तैं मैनाक होहि श्रम हारी ॥5॥

भावार्थ: समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात् अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे).

सुन्दरकाण्ड पाठ के नियम

1- यदि आप अकेले सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहते हैं तो प्रात:कालीन समय, ब्रह्म मुहूर्त में 4 से 6 बजे के बीच किया जाना चाहिए।

2- यदि आप समूह के साथ सुन्दरकाण्ड का पाठ कर रहे हैं तो शाम को 7 बजे के बाद किया जा सकता है।. 

3- सुन्दरकाण्ड का पाठ मंगलवार, शनिवार, पूर्णिमा और अमावस्या को करना श्रेष्ठ रहता है।

4- सुन्दरकाण्ड का पाठ करते समय इसकी पुस्तक को अपने सामने किसी चौकी या पटिए पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए।

5- इसकी पुस्तक को कभी भी जमीन पर या पैरों के पास नहीं रखना चाहिए।

6- सुन्दरकाण्ड का पाठ अपने घर के स्वच्छ कमरे में या मंदिर में किया जा सकता है।

7- सुन्दरकाण्ड का पाठ अपने घर के स्वच्छ कमरे में या मंदिर में किया जा सकता है।

शनिवार के दिन सुंदरकांड करने से क्या होता है?

शनिवार को सुंदरकांड पाठ करने का मान्यता से माना जाता है कि यह कई शुभ फल दिलाता है और कष्टों को दूर करने में मदद करता है। इसे श्री हनुमान जी की कृपा और आशीर्वाद को आकर्षित करने का एक विशेष दिन माना जाता है। शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करने से निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:

  1. भक्ति और श्रद्धा का विकास: सुंदरकांड का पाठ करने से श्रद्धा और भक्ति में वृद्धि होती है। यह आपको दिव्यता का अनुभव करने और भगवान हनुमान के प्रति अधिक आकर्षित होने में मदद करता है।
  2. संकटों का निवारण: शनिवार को सुंदरकांड पाठ करने से संकटों, कष्टों, बुराइयों और दुःखों का निवारण हो सकता है। हनुमान जी की कृपा से आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है।
  3. आर्थिक लाभ: शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करने से आपको आर्थिक लाभ मिल सकता है। यह व्यापार में सफलता, नौकरी में उन्नति और वित्तीय स्थिरता को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
  4. स्वास्थ्य और रोग निवारण: सुंदरकांड का पाठ करने से आपके शरीर, मन और आत्मा का संतुलन बना रहता है। यह आपको रोगों से मुक्ति और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है।

यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आप यथासंभव श्रद्धालुता के साथ सुंदरकांड का पाठ करें और इसे अपने व्यक्तिगत आदर्शों, धार्मिक प्रथाओं और गुरु के मार्गदर्शन के अनुसार अपनाएं।

सुंदरकांड को सिद्ध कैसे करें?

सुंदरकांड को सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:

  1. पवित्रता और श्रद्धा: सुंदरकांड को सिद्ध करने के लिए आपको पवित्रता और श्रद्धा के साथ इसका पाठ करना चाहिए। विशेष रूप से, आपको हनुमान जी के प्रति विशेष भक्ति और आदर्शों के साथ इसे करना चाहिए।
  2. नियमितता: सुंदरकांड को सिद्ध करने के लिए नियमित रूप से इसे पाठ करें। आप रोजाना एक निश्चित समय और स्थान पर सुंदरकांड का पाठ कर सकते हैं।
  3. आवास और वस्त्र: सुंदरकांड को सिद्ध करने के लिए एक शुभ और पवित्र स्थान चुनें, जहां आप इसे पढ़ सकते हैं। इसके अलावा, आपको पवित्र और सात्विक वस्त्र पहनने चाहिए।
  4. मंत्र जाप: सुंदरकांड के पाठ के साथ साथ, आप हनुमान चालीसा, हनुमान मंत्र या राम नाम का जाप भी कर सकते हैं। इससे हनुमान जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सकते हैं।
  5. पूजा और आराधना: सुंदरकांड के पाठ के पश्चात, आप हनुमान जी की पूजा और आराधना कर सकते हैं। इसमें दीप, धूप, फूल, पुष्पांजलि और प्रार्थना शामिल हो सकती है।
  6. अंतिम में, ध्यान दें कि सुंदरकांड को सिद्ध करने का महत्वपूर्ण तत्व आपकी श्रद्धा, नियमितता और पूर्ण समर्पण है। अपने अंतरंग भावों के साथ इसे करें और श्री हनुमान जी से आशीर्वाद प्राप्त करें।
  7. संगठन और समुदाय: सुंदरकांड को सिद्ध करने के लिए आप एक संगठित समुदाय में शामिल हो सकते हैं। यह आपको साथी भक्तों के साथ साझा अनुभव और प्रेरणा प्रदान करेगा। समुदाय मंदिर या भक्ति संगठनों में सम्मिलित होने से आपकी आदर्शों को स्थापित करने में मदद मिलेगी।
  8. नियमित ध्यान और मेधावी विचार: सुंदरकांड को सिद्ध करने के लिए, आपको नियमित ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। ध्यान के माध्यम से आप हनुमान जी के दिव्य रूप के साथ एकीकृत हो सकते हैं और उनके गुणों को अपने जीवन में स्थापित कर सकते हैं। इसके अलावा, आप मेधावी विचार, पोषणशीलता और स्वयंसेवा को विकसित करने के लिए समय निकाल सकते हैं।
  9. आदर्श और नियमों का पालन: सुंदरकांड को सिद्ध करने के लिए, आपको आपके जीवन में आदर्शों को जीने और नियमों का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। शांति, सद्भाव, धैर्य और समर्पण को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और दूसरों के प्रति मधुर संवेदन शीलता व्यक्त करें।
  10. गुरु की संप्रदायिक प्रेरणा: अंतिम रूप में, आपको एक आदर्श गुरु के मार्गदर्शन में रहने का प्रयास करना चाहिए। गुरु की संप्रदायिक प्रेरणा, उपदेश और अनुशासन के माध्यम से आपको सुंदरकांड के सिद्ध करने में सहायता मिलेगी। उनके मार्गदर्शन में रहने से आप उच्चतम साध्यों और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए तैयार हो जाएंगे।

ध्यान दें कि सुंदरकांड को सिद्ध करने का लक्ष्य आध्यात्मिक विकास, सुख, शांति और उन्नति को प्राप्त करना होता है। सच्ची निष्ठा, श्रद्धा, सचेतता और सावधानी के साथ उपर्युक्त उपायों को अपनाएं और हर जीवन क्षेत्र में सुंदरकांड के विचारों और सन्देशों को अपनाएं।

सुंदरकांड में क्या लिखा है?

सुंदरकांड हिंदी भाषा में श्री रामचरितमानस ग्रंथ का एक अंश है जिसमें लिखा है कि जब श्री रामचंद्रजी और उनके समर्थन में हनुमानजी सीताजी को लंका से वापस लाने के लिए जा रहे थे, तो हनुमानजी ने अशोक वन में बैठे हुए माता सीता को राम के संदेश सुनाने का काम किया। यह पाठ उन घटनाओं का वर्णन करता है जिन्हें हनुमानजी ने लंका में जाकर और वहां घटाए गए घटनाओं के समय अपने बहुविध बल से पूरा किया।

सुंदरकांड के पाठ में श्री रामचरितमानस के लेखक गोस्वामी तुलसीदासजी ने कई महत्वपूर्ण विषयों को स्पष्ट किया है। कुछ मुख्य विषयों में से कुछ निम्नलिखित हैं:

  1. हनुमान जी के गुणों और महत्व का वर्णन
  2. भगवान श्री राम की महिमा और उनके धर्मिक आदर्शों का महत्व
  3. माता सीता की प्रेम, साहसिकता और विधवा धर्म के माध्यम से मान्यता का वर्णन
  4. रावण और लंका के अनर्य आचरण का वर्णन
  5. हनुमान जी के श्री राम के संदेश को सीता तक पहुंचाने की कठिनाइयों का वर्णन
SHRI GOSWAMI TULSIDAS SUNDERKAND IN HINDI
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हनुमान ने क्या लिखा है?

हनुमान को लेखन की प्रवृत्ति या लेखक के रूप में जाना नहीं जाता है। हनुमान हिन्दू पौराणिक कथाओं और महाभारत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाने जाते हैं। हनुमान भगवान राम के एक अच्छे भक्त माने जाते हैं और उनके लिए शक्तिशाली देवता हैं। हनुमान रामायण के युद्ध स्थल, लंका में जा कर अपनी शक्ति और वीरता का प्रदर्शन करते हैं।

वे लंका में बैठे हुए सीता माता के लिए लंका में अपने दिव्य लेखन कौशल का प्रदर्शन करते हैं, जिससे वे राम के साथीदारों के पास भेजा जाता है। हालांकि, कोई विशेष वचनांवली या लेख हनुमान द्वारा उत्पन्न नहीं हुआ है।

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