हेलो दोस्तों,
नाम श्वेता है और आज इस पोस्ट में आप सभी दोस्तों का स्वागत है। आज मै आप सभी सुहागनों के लिए वट सावित्री व्रत कथा लेके आई हु। हमारे हिन्दू धर्म में सुहागनों को वट सावित्री पूजा से पति की लम्बी उम्र के लिए पूजा की जाती है |वट सावित्री व्रत कथा एक प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक कथा है जो व्रती महिलाओं द्वारा पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से भारतीय महिलाओं द्वारा मान्यता प्राप्त है और सती सावित्री और उनके पति सत्यवान की कथा पर आधारित है।
इस व्रत का पालन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि (तीसरी तिथि) को किया जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान और नित्य पूजा करती हैं। फिर वे सावित्री माता की पूजा और आराधना करती हैं। इसके बाद, व्रत कथा की सुनाई जाती है जो सती सावित्री और राक्षसी नामकी एक अद्भुत कथा है।
कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान की जीवन की रक्षा के लिए ब्रह्मा देव की आराधना की और वर मांगा। जब वर प्राप्त होने के बाद भी उनके पति की मृत्यु का समय आया, तो सावित्री ने यमराज के सामने उत्साह और धैर्य के साथ खड़ी होकर उन्हें राजा सुख की प्राप्ति के लिए प्रलोभित किया। अपने संगठन और भक्ति से प्रभावित होकर, यमराज ने सावित्री की मांग मानी और उनके पति की जीवन वृद्धि कर दी।
वट सावित्री व्रत कथा के माध्यम से महिलाएं देवी सावित्री की महिमा और ब्रह्मचर्य के महत्व को समझती हैं। यह व्रत उनके पति की लंबी आयु और खुशहाली की कामना के साथ उनके सामर्थ्य और पतिव्रता का प्रतीक है। सावित्री पूजा के दौरान, महिलाएं ब्राह्मणों को दान देती हैं और पुष्प, निर्गुण्डी, वट लीफ, धात्री, बाया और उदुम्बर के पेड़ की पूजा करती हैं। इस व्रत को पूरे भक्ति और विधान के साथ पालन करने से मान्यता है कि महिलाएं अपने पति के जीवन की वृद्धि और कुटुंब के समृद्धि को प्राप्त करती हैं।

वट सावित्री व्रत की पूजा कैसे की जाती है?
पूजा की सामग्री:
- वट वृक्ष की पूजा के लिए: वट के पत्ते, फूल, फल, धागा, चावल, गुड़, नारियल, सिन्दूर, रोली, अक्षत, कलश, दीपक, धूप, पुष्प, नैवेद्य, ताम्बूल (पान सुपारी), ब्राह्मण भोजन सामग्री।
- सावित्री देवी की पूजा के लिए: माता की मूर्ति या तस्वीर, धूप, दीपक, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, ताम्बूल, वस्त्रार्पण सामग्री।
पूजा की विधि:
- पूजा का आरंभ सूर्योदय के समय किया जाता है।
- शुद्ध आसन पर बैठें और मन्त्रों के साथ अपने इष्टदेवता और सावित्री देवी की पूजा करें।
- वट वृक्ष की पूजा के लिए, उसके नीचे बैठें और उसे गुड़, नारियल, सिन्दूर आदि से सजाएं। उसे धागे से बांधें और पूजा अर्चना करें।
- सावित्री देवी की पूजा के लिए, माता की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठें और उन्हें धूप, दीपक, पुष्प, अक्षत, नैवेद्य, ताम्बूल आदि से आराधना करें।
- दृढ़ व्रत संकल्प लें और व्रत कथा सुनें।
- व्रत कथा के बाद, वट वृक्ष की पूजा को समाप्त करें और सावित्री देवी की पूजा को सम्पूर्ण करें।
- अंतिम में, ब्राह्मणों को भोजन दें और उन्हें दक्षिणा दें।
व्रत के नियम:
- व्रत के दौरान उपवास रखें।
- शुद्धता और सात्विक भावना बनाए रखें।
- पूजा के समय मन्त्र जाप करें और भक्ति भाव से अपने इष्टदेवता की आराधना करें।
- दिनभर माता सावित्री की कथा सुनें और उन्हें नमन करें।
- व्रत के दौरान किसी भी नगरीक अथवा वाणिज्यिक कार्य को नहीं करें।
- सावित्री माता के मंत्रों का जाप करें और पूजन के बाद उनके चरणों में प्रणाम करें।
यहां दी गई विधि और नियमों के अनुसार वट सावित्री व्रत की पूजा की जा सकती है। ध्यान दें कि पूजा और व्रत का पालन करने से पहले स्थानीय पंडित या धार्मिक आचार्य से परामर्श करें, क्योंकि कुछ स्थानों पर व्रत की विशेषताएं और परंपराएं हो सकती हैं।
सावित्री पूजा कथा क्या है?
सावित्री पूजा कथा निम्नलिखित है:
एक समय की बात है, एक ब्राह्मण वंश में एक सद्वृत्ति और गुणवती स्त्री नामकी एक नरभक्षी राक्षसी आपत्ति का सामना कर रही थी। वह राक्षसी रूप में ब्राह्मणों को खाती और नगरी में डरावना वातावरण पैदा कर रही थी।सभी लोग बहुत परेशान थे और उन्हें रक्षा के लिए सावित्री की आराधना करने का सुझाव दिया गया। सभी ने संयम और श्रद्धा से सावित्री माता की पूजा की और उनसे रक्षा के लिए आग्रह किया।
सावित्री माता ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें आश्वस्त किया कि वह राक्षसी के खिलाफ लड़ाई करेंगी। तथापि, सावित्री माता ने कहा कि राक्षसी को पूर्णतया मारना मेरी शक्ति में नहीं है, क्योंकि वह वरप्राप्ति का व्रत रख चुकी है। लेकिन वह उसे अस्तित्व से महरूम कर सकती है।
सावित्री माता ने ब्रह्मा देव से प्रार्थना की और उनकी कृपा से वह एक वर मांगी कि वह राक्षसी को वर्तमान जीवन से महरूम कर सके और उसे दिव्य रूप में बदल दें। ब्रह्मा देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और उसे वर दिया। सावित्री ने ब्रह्मा देव के द्वारा प्राप्त किए गए वर का उपयोग करते हुए राक्षसी को साधा और उसे दिव्य रूप में बदल दिया। राक्षसी गयी और नगरी में फिर से शांति स्थापित हो गई।
इस प्रकार, सावित्री माता ने ब्रह्मा देव की कृपा से राक्षसी को मिटा दिया और नगरी को सुरक्षित किया। इसलिए, सावित्री पूजा का उत्सव हर साल मनाया जाता है और महिलाएं उसे सावित्री माता की आराधना करके और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करके अपने पति की लंबी आयु और सुख-शांति की कामना करती हैं।
जब सावित्री ने राक्षसी को परास्त किया, उसे अपने पति सत्यवान के पास लौटने का आदेश मिला। लेकिन सत्यवान के पति का समय समाप्त हो चुका था और उन्हें मृत्यु की आशंका थी।
सावित्री ने भगवान यमराज से कृपा की और उन्हें बातचीत करने का अवसर दिया। उन्होंने यमराज को अपनी प्रेम और भक्ति द्वारा प्रभावित किया और उनसे अपने पति की जीवन वृद्धि की अनुमति मांगी।यमराज, सावित्री के प्रेम और भक्ति को देखकर प्रसन्न हुए और उन्हें एक वर दिया कि उनके पति की जीवन वृद्धि होगी। सावित्री ने धन्यवाद कहकर यमराज के पति को वापस जीवित कर दिया।
इस प्रकार, सावित्री की प्रेम, वीरता, और पराक्रम से यमराज ने उन्हें उनके पति के जीवन की वृद्धि का वरदान दिया। सावित्री का यह कार्य और उनकी निर्मल भावना ने उन्हें मानवीयता में मातृत्व और पतिव्रता की महानता का प्रतीक बना दिया।
इसलिए, हर वर्ष सावित्री अमावस्या के दिन महिलाएं सावित्री माता की पूजा करती हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। यह पूजा महिलाओं के पति की लंबी आयु और सुख-शांति की कामना करती है। साथ ही, यह पूजा मातृत्व, पतिव्रता, और प्रेम की महत्त्वपूर्ण प्रतीक है।
सावित्री व्रत कथा किस पर आधारित है?
सावित्री व्रत कथा सती सावित्री और उनके पति सत्यवान की कथा पर आधारित है। यह कथा महाभारत में ‘वन पर्व’ के अंतर्गत आती है और महर्षि व्यास द्वारा संग्रहित है। यह कथा मान्यता प्राप्त है और भारतीय साहित्य और परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
सावित्री व्रत कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान की जीवन रक्षा के लिए भगवान ब्रह्मा की आराधना की थी और उनसे वर मांगा था। हालांकि, जब उन्हें वर मिल गया, तो भी उनके पति की मृत्यु का समय आ गया। इस पर सावित्री ने यमराज के सामने खड़ी होकर अपने पति के लिए लड़ने की इच्छा जाहिर की। विवश यमराज ने उन्हें तीन बार वरदान देने की स्वीकृति दी, लेकिन सावित्री ने कहा कि वह कोई अन्य वरदान नहीं चाहती, बल्कि उन्हें अपने पति की जीवन वृद्धि की आशा है। अन्ततः, यमराज ने सावित्री को उसकी आशा पूर्ण करते हुए अपने पति की जीवन वृद्धि का वरदान दिया।
इस रूप में, सावित्री व्रत कथा सावित्री की प्रेम, पतिव्रता, और धैर्य की उत्कृष्टता को प्रशंसा करती है, और महिलाओं को इसके माध्यम से प्रेरित करती है कि वे अपने पति की रक्षा, सुख, और समृद्धि के लिए निरंतर प्रयास करें।
वट सावित्री व्रत कथा का महत्व क्या है?
वट सावित्री व्रत कथा का महत्व बहुत ही महान है। इस कथा के माध्यम से महिलाएं सावित्री माता की महिमा, पतिव्रता और प्रेम को समझती हैं। यह व्रत महिलाओं के पति की लंबी आयु और सुख-शांति की कामना करता है।
सावित्री ने अपने पति सत्यवान की जीवन रक्षा के लिए ब्रह्मा देव की आराधना की और उनसे वर मांगा। यद्यपि उन्हें वर मिल गया, लेकिन उनके पति की मृत्यु का समय आ गया। इस पर सावित्री ने यमराज के सामने उत्साह और धैर्य के साथ खड़ी होकर उन्हें प्रलोभित किया कि वे अपने पति को छोड़कर कुछ नहीं करेंगी।
उनकी आदर्श पतिव्रता और प्रेम को देखकर यमराज ने सावित्री की आशीर्वाद दी और उनके पति की जीवन वृद्धि की अनुमति दी। इस प्रकार, सावित्री का यह कार्य और उनकी निर्मल भावना ने उन्हें मानवीयता में मातृत्व और पतिव्रता की महानता का प्रतीक बना दिया।
वट सावित्री व्रत कथा का महत्व यह सिद्ध करता है कि पतिव्रता, प्रेम, धैर्य और उत्साह के साथ महिलाएं अपने पति के लिए व्रत रखने के माध्यम से अनुकरणीय उदाहरण स्थापित कर सकती हैं। यह व्रत महिलाओं को समर्पण और परिश्रम की महत्वपूर्ण शिक्षा देता है और उन्हें परिवार और पति के जीवन में सुख और समृद्धि का आनंद प्रदान करता है।

सावित्री व्रत को क्यों मनाया जाता है?
सावित्री व्रत महिलाओं द्वारा उत्साह, श्रद्धा, और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस व्रत का मनाने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को सावित्री माता की पूजा करके उनकी कथा के माध्यम से उनकी महिमा का गान करना है।
यह व्रत पतिव्रता और प्रेम की महत्त्वपूर्ण शिक्षा को प्रदान करता है। महिलाएं इस व्रत के द्वारा अपने पति की लंबी आयु, सुख, और समृद्धि की कामना करती हैं। इसके अलावा, यह व्रत उन्हें समर्पण, संयम, और सामर्थ्य की शिक्षा देता है।
सावित्री व्रत के दौरान, महिलाएं पूजा, व्रत कथा के सुनने, और ध्यान में लगने के माध्यम से अपने मन, शरीर, और आत्मा की पवित्रता को स्थापित करती हैं। यह व्रत महिलाओं को सावित्री माता की भक्ति में आत्मा को समर्पित करने का अवसर देता है और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
इसके अलावा, सावित्री व्रत महिलाओं को संयम, धैर्य, और सामर्थ्य की प्रेरणा देता है। इस व्रत को पूरे भक्ति और विधान के साथ मनाने से मान्यता है कि महिलाएं अपने पति के प्रति अनन्य वचनबद्धता और प्रेम को प्रदर्शित करके उनके साथ जीवन भर का साथ चाहती हैं।
इस प्रकार, सावित्री व्रत महिलाओं के जीवन में प्रेम, समर्पण, और पतिव्रता के महत्वपूर्ण मानसिक और आध्यात्मिक गुणों को स्थापित करता है।
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