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बेशर्म, जिसे "थेथर" भी कहा जाता है, अपनी अद्वितीय गति के लिए प्रसिद्ध है।

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जो प्राय: तालाबों, पोखरों, नदियों व अन्य जलस्रोतों के किनारे पाया जाता है।

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यह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी जिन्दा रहता एवं पुष्पित-पल्लवित होता रहता है।

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यह बिना किसी बाहरी प्रेरणा के हिलता है और इसकी अद्वितीयता विचित्रता में है।

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गाँव देहात में लोग बाड़ बनाने और जलाने के लिए इसका प्रयोग करते है

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वात रोग में बेशर्म की पत्तियों को उबालकर लपेटने से दर्द में आराम मिलता है

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नीम की पत्तियों के साथ मिलाकर जैविक खाद के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है.

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इसकी पत्तियों पर तेल लगाकर हल्का गर्म कर चोट या घाव पर लगाने से घाव जदली भर जाते है।

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