SATISH JAIN BIOGRAPHY IN HINDI | सीजी डायरेक्टर सतीश जैन इनकी कोई भी फिल्म फ्लॉप नहीं हुई है

By Shweta Soni

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हेलो दोस्तों,

मै श्वेता, आप सभी दोस्तों का स्वागत है मेरे वेबसाइट chudailkikahani.com में, आज के BIOG में छत्तीसगढ़ी फिल्म के डायरेक्टर SATISH JAIN जी के बारे में बताने वाले है। तो हमारे biog में अंत तक बने रहे।

दोस्तों हिंदी के कई फिल्मे दुलारा, परदेशी बाबू, हद कर दी अपने सहित कई फिल्मो का लिखन कर चुके सतीश जैन जी ने कई बड़े निर्देशक के Assistant director के रूप में काम करने के बाद, सतीश जैन छत्तीसगढ़ के कई छत्तीसगढ़ी फिल्मे hit दी है। तो चलिए दोस्तों इनके जीवन के बारे में जानते है।

जीवन परिचय

सतीश जैन का जन्म 3 अप्रैल भानुप्रतापुर बस्तर जिले में हुआ था |उनके पिता जी का नाम श्री डाल जैन है और माता का नाम शांति जैन है |सतीश जैन शादी सुधा है इनके दो बच्चे है राही और रुनझुन | इन्होने अपनी स्कूल की पढ़ाई भानुप्रतापुर बस्तर में ही पूरी की, आगे की पढ़ाई के लिए इन्होने दुर्ग के मैनिकल इंजीनियरिंग कॉलेज से DIPOLMA लिया | सतीश जैन जी को बचपन से ही फ़िल्मी दुनिया का शोक था|

उन्होंने प्रोजेक्ट भी बना लिया था मिनी प्रोजेक्ट क्यों की सतीश जी को बहुत पशंड था फ़िल्मी दुनिया |सतीश जैन जी अपने क्लास के टॉपर थे, पर फ़िल्मी दुनिया में लगन होने से उनके पास टाइम नहीं था |सतीश जी को कहानी पढ़ना बहुत ही पसंद था | सतीश जैन जी को फ़िल्मी दुनिया मुंशीप्रेमचन्द जी की कहानी का बहुत हाथ है | सतीश जैन जी ने जॉब करने के लिए मुंबई चले गए | वह उन्होंने हिंदी फिल्मो की कहानी का लेखन भी किये |

गोविंदा के बड़े भाई कीर्ति मार्क के साथ Assistant director के रूप में काम किया | सतीश जैन ने गोविंदा जी के साथ ‘हत्या’ मूवी में भी काम किया | ये मूवी सतीश जैन की पहली मूवी थी | उसके बाद ‘पनाह’ फिल्म बना जो उस टाइम बहुत हिट था | उसके बाद एक और फिल्म बनाया ‘हद कर दी अपने’ इस मूवी के टाइम गोविंदा के हाथ हाथा पाई हो गई थी | उसके बाद इनको लगा की मुझे अब डायरेक्टर बनना है |

सतीश जैन छत्तीसगढ़ आये और उन्होंने सीजी मूवी ‘मोर छइंहा भुइयां’ बनाये जो सिल्वर जोबली हिट हुआ |इन्होने ने इसी फिल्म से छत्तीसग़ढी फिल्मो में कदम रखा | सतीश जैन छत्तीसग़ढी फिल्म, भोजपुरी, बॉलीवुड मूवी के जाने आने लेखक है |

जन्म3 अप्रैल
जन्म स्थानभानुप्रतापुर बस्तर
पिता जी का नामश्री डाल जैन
माता का नामशांति जैन
बच्चो का नामराही और रुनझुन
शिक्षामैनिकल इंजीनियरिंग
SATISH JAIN BIOGRAPHY IN HINDI
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सतीश जैन द्वारा निर्देशित छत्तीसगढ़ी फिल्में जैसी सुपरहिट फिल्में रही हैं

1मोर छइंहा भुइयां,
2जहां भूलो माँ बाप ला,
3लैला टिप टॉप छैला अंगूठा छाप.
4तूरा रिक्शा वाला
5माया
6हंस जहां पगली फास जाबे
7चल हैट कोनो देख लिहि
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सतीश जैन द्वारा निर्देशित भोजपुरी फिल्में जैसी सुपरहिट फिल्में रही हैं

1बादल
2दिलवाला
3चैलेंज
4राम लखन
5निरहुआ हिंदुस्तानी
6लैला माल बा छैला धम्माल बा
7सौदागर
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जो 3 वर्षों के बाद निर्देशन में वापसी कर रहे हैं

छत्तीसगढ़ के मशहूर निर्देशक सतीश जैन तीन वर्ष के बाद अपनी अगली फिल्म लेकर आ रहे हैं। उनकी पिछली फ़िल्म ‘हँस झन पगली फंस जबे’ को दर्शकों का बेशुमार प्यार मिला था। उस फिल्म ने छत्तीसगढ़ सिनेमा में इतिहास रच दिया था।

दोस्तों सतीश जैन बॉलीवुड से अनुभव लेकर आए थे और ‘मोर छईहा भुइयां’ फिल्म से छौलीवुड के भीष्म पितामह बने। उन्होंने गोविंदा और डेविड धवन की फिल्मों में लेखन कार्य किया था। सतीश जैन भोजपुरी फिल्मों में काफी एक्टिव रहे। निरहुआ हिंदुस्तानी फ़िल्म के निर्देशक सतीश जैन ही थे। वो डेविड धवन की तरह भरपूर मनोरंजन में विश्वास रखते हैं और हमेशा कमर्शियल फिल्म बनाते हैं।

छत्तीसगढ़ी की पहली फिल्म राष्ट्रीय फिल्म पुरुष्कार जीतने वाली

दोस्तों आप को बता दे की हाल ही में छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूलन : द मेज़’ का ट्रेलर आया है। यह पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म है, जिसने राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार हासिल किया। यह फिल्म 27 मई को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी। न्याय व्यवस्था पर प्रश्न उठाती इस फिल्म के मुख्य कलाकार ‘पीपली लाइव’ फिल्म के नत्था यानी ओंकारदास मानिकपुरी हैं।

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जयप्रकाश चौकसे और ‘भूलन कांदा’

दोस्तोंफिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे अक्सर अपनी लेखनी में भूलन कांदा का ज़िक्र किया करते थे। यह फिल्म एक उपन्यास पर आधारित है, जिसे पढ़कर जयप्रकाश चौकसे इसे फिल्म के रूप में देखना चाहते थे। संजीव बक्शी के इस उपन्यास को स्क्रिप्ट में पिरोने के लिए निर्देशक मनोज वर्मा को ढाई साल लगे थे।

भूलन एक प्रकार का पौधा है, जिस पर किसी राहगीर का पैर पड़ जाए तो वो अपनी राह भूल जाता है और वहीं खड़ा रह जाता है। किसी अन्य व्यक्ति के स्पर्श होने से वो वापस अपनी राह को पहचानने लगता है। फिल्म के माध्यम से फिल्मकार कहना चाह रहे हैं कि कहीं हमारी न्याय व्यवस्था का पैर भी कहीं उस भूलन कांदे पर तो नही पड़ गया, जिससे वह सब कुछ भूल चुका है।

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