हेलो दोस्तों,
मै श्वेता, आप सभी दोस्तों का मेरे इस आर्टिकल में स्वागत है आज मै आप सभी को छत्तीसगढ़ के एक ऐतिहासिक जगह की कहानी लेके आई हु जो कांकेर की शान है ‘Gadiya Mountain’ : इतिहास काफी दिलचस्प है यह का इतिहास जान कर आप सभी हैरान हो जायेगे। यह राजा महराजा रहा करते थे।
‘गढ़िया’ पहाड़, कांकेर जिले में स्थित, भारतीय महाद्वीप के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अद्भुत स्थान है। इस पहाड़ की प्राकृतिक सुंदरता, प्राचीन मंदिरों के अवशेष और प्राचीन आभूषणों के खजाने के लिए प्रसिद्ध है। इसके वन्यजीव और पक्षी धरोहर का संरक्षण भी महत्वपूर्ण है। ‘गढ़िया’ पहाड़ एक ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल के रूप में महत्वपूर्ण है, जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर एक साथ विलीन होते हैं।
TABLE OF CONTENTS 1. कांकेर ‘गाढ़िया’ पहाड़ी: इतिहास 2. सोनई-रुपई : तालाब 3. किंग कॉन्ग जैसा दिखने वाला पहाड़ 4. महाशिवरात्री पर लगता है मेला 5. फांसी भाठा 6. छुरी पत्थर देखने आते हैं लोग : टूरी हटरी (बाजार) 7. पहाड़ी के ऊपर है : जोगी गुफा 8. छुरी पगार 9. गढ़िया पहाड़ का मुकुट झण्डा शिखर 10. राजा का खजाना पत्थर |
कांकेर ‘गाढ़िया’ पहाड़ी: इतिहास
कांकेर ‘गाढ़िया’ पहाड़ी छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह पहाड़ी समृद्ध ऐतिहासिक महत्व रखती है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है।
कांकेर ‘गाढ़िया’ पहाड़ी का नाम उस समय से आया है जब मुख्य राजधानी कांकेर नगर में स्थित गाढ़िया मंदिर के कारण रखा गया। इस पहाड़ी पर मंदिर स्थित है जिसे स्थानीय लोग ‘गाढ़िया मंदिर’ के रूप में जानते हैं। इस मंदिर का निर्माण पुराने शिलालेखों के आधार पर 12वीं शताब्दी में हुआ था। गाढ़िया मंदिर को मान्यता है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
कांकेर ‘गाढ़िया’ पहाड़ी का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है। इस पहाड़ी के चारों ओर कई प्राचीन जीर्णोद्धार कार्य किए गए हैं जिनसे प्राचीनताओं का पता चलता है। यहां के पुरातात्विक संग्रहालय में इन प्राचीन खण्डों को संग्रहीत किया गया है और इससे यह साबित होता है कि कांकेर ‘गाढ़िया’ पहाड़ी अपार सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखती है।
इस पहाड़ी पर प्राकृतिक सौंदर्य भी बहुत आकर्षक है। वनस्पति और जीव-जंतुओं की अद्भुत विविधता के लिए यहां कई प्रशंसनीय जैव विविधता सुरक्षित की गई है। प्राकृतिक आवास, वन्य जीवों की संरक्षा और पक्षियों के लिए यह स्थान एक प्रमुख संरक्षित क्षेत्र है।
कांकेर ‘गाढ़िया’ पहाड़ी एक पर्यटन स्थल के रूप में लोगों को आकर्षित करती है, जहां वे प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं और ऐतिहासिक महत्वपूर्ण स्थलों की खोज कर सकते हैं। इस पहाड़ी पर घुमने का एक आदर्श समय सुबह की सूर्योदय से पहले होता है, जब आप प्राकृतिक ताजगी का आनंद ले सकते हैं और पहाड़ी की शांति का आनंद ले सकते हैं।
यदि आपको इस पहाड़ी को देखने का मौका मिलता है, तो आप उसकी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व का आनंद ले सकते हैं, जो आपको यहां अद्भुत अनुभव प्रदान करेगा।

सोनई-रुपई : तालाब
यहां एक ऐसा तलाब भी है जिसका पानी कभी नहीं सूखता है. इस तालाब की एक खासियत यह भी है कि सुबह और शाम के वक्त इसका आधा पानी सोने और आधा चांदी की तरह चमकता है |
जानिए क्या है इस तालाब की कहानी, गढ़िया पहाड़ पर करीब 700 साल पहले धर्मदेव कंड्रा नाम के एक राजा का किला हुआ करता था। राजा ने ही यहां पर तालाब का निर्माण करवाया था। धर्मदेव की सोनई और रुपई नाम की दो बेटियां थीं। वो दोनों इसी तालाब के आसपास खेला करती थीं, एक दिन दोनों तालाब में डूब गईं।
तब से यह माना जाता है सोनई-रुपई की आत्माएं इस तालाब की रक्षा करती हैं इसलिए इसका पानी कभी नहीं सूखता। पानी का सोने-चांदी की तरह चमकना सोनई-रुपई के यहां मौजूद होने की निशानी के रूप में देखा जाता है।

किंग कॉन्ग जैसा दिखने वाला पहाड़
गढ़िया पहाड़ का इतिहास हजारों साल पुराना है. जमीन से इस पहाड़ की ऊंचाई करीब 660 फीट है. दरअसल, पहाड़ पर चढ़ते हुए ये दो चट्टाने पड़ती हैं, जिन्हे बैलेंसिंग रॉक कहा जाता है. इसकी तस्वीर ऐसे ऐंगल से ली गई है कि देखने में यह किंग कॉन्ग फिल्म के गोरिल्ला जैसी लग रही हैं.

महाशिवरात्री पर लगता है मेला
पहाड़ पर एक शिव मंदिर है जो किला बनने से पहले से यहां मौजूद है। कहा जाता है कि यह एक हजार साल पुराना है, इस मंदिर में शिवलिंग के अलावा सूर्य और अन्य देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं हैं। 1955 से हर साल इस पहाड़ पर महाशिवरात्री का मेला लगता है।

फांसी भाठा
राजा महाराजाओं के जमाने में फांसी भाठा में अपराधियों को मृत्यु दंड दिया जाता था. अपराधियों को यहां लाकर उन्हें ऊंचाई से नीचे फेंका जाता था. एक बार कैदी ने अपने साथ सिपाही को भी खींच लिया। इसके बाद से अपराधियों के हाथ बांधकर उन्हें दूर से बांस से धकेला जाने लगा। झण्डा शिखर के पास ही फांसी भाठा स्थित हैं। इस स्थान से अपराधियों को राजा के द्वारा सजा ए मौत का फरमान जारी करने के बाद उन्हे पहाड़ी के नीचे धक्का दे दिया जाता था।

छुरी पत्थर देखने आते हैं लोग : टूरी हटरी (बाजार)
गढ़िया किले की बस्ती का हृदय स्थल टूरी हटरी है। यह दैनिक बाजार के साथ जन सम्मेलन, मेला, सभा आदि के उपयोग आता था। उस जमाने के मिट्टी के बर्तन व ईंट-खपरों के टुकड़े आज भी यहां मिलते हैं। पहाड़ी के ऊपर एक बड़ा सा मैदान स्थित है।
उस मैदान में किले में निवास करने वाले राजा और उनके सैनिकों की आवश्यकता की वस्तुएं बिक्री के लिए आती थीं। इस बाजार में विक्रय करने के लिए लड़कियां सामग्री लाया करती थीं। इसी कारण इसका नाम टूरी हटरी (बाजार) पड़ा।
यहां की गुफा की छत पर अनेक छुरीनुमा पत्थर लटकते दिखाई पड़ते हैं। इन्हें देखने भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। गुफा से निकलने के अनेक रास्ते हैं। गुफा में एक जगह ऐसी भी है, जहां आराम से 500 लोग बैठ सकते हैं।

पहाड़ी के ऊपर है : जोगी गुफा
मेलाभाटा की ओर से पहाड़ी के ऊपर जाने के लिए कच्चा मार्ग बना हुआ है, इस मार्ग में एक काफी विशाल गुफा स्थित हैं। कहा जाता हैं कि उस गुफा में एक सिद्ध जोगी तपस्या किया करते थे जिनका शरीर काफी विशाल था वहां उस जोगी के द्वारा पहने जाने वाला काफी विशाल खडऊ आज भी मौजूद हैं।
इस कारण इस गुफा को जोगी गुफा कहा जाता हैं। इस गुफा में प्राचीन काल से अब तक अनेक तपस्वी आकर ठहरते थे और बारिश का मौसम गुजरने के बाद आगे बढ़ जाते थे। गुफा को देखते आज भी श्रद्घालु व पर्यटक पहुंचते हैं।

छुरी पगार
सोनई रूपई तालाब के पास ही एक गुफा हैं। जिसमें जाने का मार्ग एकदम सकरा हैं किन्तु उस गुफा में प्रवेश करने के बाद विशाल स्थान हैं, जहां सैकड़ों लोग बैठ सकते हैं। गुफा के मार्ग में छुरी के समान तेज धारदार पत्थर हैं। इसी कारण इसे छुरी गुफा कहा जाता हैं। कहते हैं कि किले में दुश्मनों के द्वारा हमला होने पर राजा अपने सैनिकों के साथ इसी गुफा में छुप जाते थे।
गढ़िया पहाड़ का मुकुट झण्डा शिखर
गढ़िया पहाड़ को दूर से देखने में जो सबसे ज्यादा आकर्षित करता है वह है गढ़िया पहाड़ का मुकुट झण्डा शिखर। इस स्थान पर राजा का राजध्वज फहराया जाता था। जिस लकड़ी के खंम्बे में झण्डा फहराया जाता था उसके अवशेष वहां आज भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि जब राजा किले में रहते थे तो झण्डा शिखर पर ध्वज लहराता रहता था एवं राजा के दौर में रहने पर ध्वज को उतार लिया जाता था। ध्वज के कारण प्रजा को मालूम हो जाता था कि राजा किले में हैं या नही।

राजा का खजाना पत्थर
राजा का महल जिस स्थान पर था वहां एक विशाल ऊॅचा पत्थर मौजूद हैं। उस पत्थर को देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि उसमें पत्थर का ही दरवाजा बना हुआ हैं जिसे खोल कर भीतर जाया जा सकता हैं। किवदन्ती है कि इस पत्थर के नीचे राजा ने अपना खजाना छुपाया हुआ हैं। इसी कारण इसे खजाना पत्थर कहते हैं।
क्षेत्र में यह कहानी आज भी जिंदा है कि कांकेर के मध्यकालीन राजाओं का खजाना इसी जगह सुरक्षित रहता था। कहानी पर यकीन कर कई लोगों ने इस जगह को खोदकर देखा। हालांकि किसी को भी मिट्टी के घड़ों के टुकड़ों के अलावा कुछ हाथ नहीं आया है।

दोस्तों आप सभी को इस जगह पर जरूर जाना चाहिए। इस जगह पर राजाओ का इतिहास भरा हुआ है। इस क्षेत्र में यह कहानी आज भी जिंदा है कि कांकेर के मध्यकालीन राजाओं का खजाना यह के गुफाओ में रखा करते थे। कांकेर की शान है ‘GADIYA MOUNTAIN’ : इतिहास काफी दिलचस्प है।
कांकेर की गढ़िया’ पहाड़ का इतिहास आप सभी को पसंद आई होगी। आप सभी इस आर्टिकल को अपने परिवार दोस्तों में शेयर जरूर करे ताकि सबको इस जगह के बारे में पता चले। धन्यवाद………
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