हेलो दोस्तों,
मेरा नाम श्वेता है और में हमारे वेबसाइट के मदत से आप के लिए एक नयी शिव विवाह की कहानी लेके आई हु और ऐसी अच्छी अच्छी कहानिया लेके आते रहती हु। वैसे आज मै शिव विवाह की कहानी और शिव की कितनी पत्नियां थीं? की कहानी लेके आई हु कहानी को पढ़े आप सब को बहुत आनंद आएगा |
शिव भारतीय धर्म और पौराणिक कथाओं में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं। वे एक एकांतवासी तपस्वी के रूप में चित्रित किए जाते हैं, जो दुनियावी मामलों से बहुत कम संबंध रखते हैं। हालांकि, हिंदू पौराणिक कथाओं में, शिव को कई पत्नियों के साथ जोड़ा जाता है, जो सभी अपनी-अपनी विशेषताओं और गुणों के साथ होती हैं। शिव की विवाह कहानी एक रोमांचक कथा है, जो हिंदू धर्म की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
शिव विवाह की कहानी
हिंदू धर्म के प्रसिद्ध कथाओं में से एक है। इस कहानी के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। इस कथा के अनुसार, शिव का जीवन बहुत ही अलग था। वह हिमालय के जंगल में रहते थे और वह एक वैरागी थे। उन्होंने अपनी ध्यान विधि से संसार के सभी भेद-भावों से परे हो जाने का प्रयास किया।
इस दौरान, शिव और पार्वती के बीच एक प्यार भरा संबंध बन गया। पार्वती शिव की शिष्या थी और उन्हें शिव से प्रेम हो गया था। उन्होंने शिव से अपनी इच्छा व्यक्त की कि वह उनसे विवाह करें। शिव ने पार्वती की इच्छा को स्वीकार कर लिया, लेकिन उन्होंने उन्हें कई परीक्षाओं से गुजरना होगा।
पार्वती की परीक्षाएं उसकी संकल्प शक्ति, उसकी त्याग शक्ति, उसकी तपस्या शक्ति, उसकी धैर्य शक्ति, और उसकी शक्ति को प्रतिष्ठापित करने के लिए थीं। उन्होंने इन सभी परीक्षाओं को सफलतापूर्वक पारित किया और शिव और पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ।
शिव और पार्वती के विवाह का वर्णन महाकाव्यों में भी किया गया है। शिव और पार्वती का विवाह बहुत ही धूमधाम से हुआ था। इसके लिए उन्हें सात फेरे लेने पड़ते थे। सबसे पहले फेरे में, शिव और पार्वती ने एक-दूसरे को प्रण किया और एक दूजे के वचनों का पालन करने की प्रतिज्ञा की। दूसरे फेरे में, शिव और पार्वती ने संसार की समस्त समस्याओं के लिए एक-दूसरे का साथ देने की प्रतिज्ञा की।
तीसरे फेरे में, शिव और पार्वती ने स्वयं को अन्य की सुख-दुःख के साथ जोड़ने की प्रतिज्ञा की। चौथे फेरे में, शिव और पार्वती ने अपने संतानों की संरक्षण की प्रतिज्ञा की। पांचवें फेरे में, शिव और पार्वती ने समस्त प्राणियों के प्रति करुणा की प्रतिज्ञा की।
छठे फेरे में, शिव और पार्वती ने समस्त भारतवर्ष के विकास के लिए प्रतिज्ञा की। सातवें फेरे में, शिव और पार्वती ने एक-दूसरे को दीप्ति और समृद्धि की प्रतिज्ञा की।
इस तरह, शिव और पार्वती का विवाह सम्पूर्ण हुआ। लेकिन शिव-पार्वती के विवाह की कहानी में एक और महत्वपूर्ण घटना होती है।
शिव के वहन नंदी के साथ उनके विवाह में शामिल होने के लिए नंदी भी आया था। लेकिन उन्हें विवाह समारोह में भाग नहीं लेने दिया गया। इससे नाराज नंदी ने शिव के विरुद्ध आवाज उठाई और अपनी महिमा को दिखाने के लिए कहा कि वह भी एक दिन महादेव के साथ विवाह करेगा।
नंदी के इस बयान से शिव नाराज हो गए और उन्होंने नंदी को धक्का मारकर दूर कर दिया। नंदी का दुख देखकर पार्वती ने शिव से निवेदन किया कि वह अपने वाहन को वापस बुलाएं और उन्हें माफ कर दें।
इस पर शिव ने अपनी नाराजगी भुलाई और नंदी को माफ कर दिया। यह घटना शिव-पार्वती के विवाह की कहानी में एक महत्वपूर्ण संदर्भ है।

शिव-पार्वती का विवाह हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। शिव और पार्वती के विवाह का वर्णन पुराणों में भी किया गया है। इसके अलावा शिव-पार्वती के विवाह की कहानी कई संस्कृतियों में महत्वपूर्ण है।
शिव-पार्वती के विवाह को दिवंगत संगीतकार पण्डित रविशंकर ने भी गीत बनाया था। इस गीत में शिव-पार्वती के विवाह की अनुभूति को बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया गया है।
शिव-पार्वती के विवाह की कहानी एक सामान्य प्रेम कहानी से कहीं अधिक है। इसमें प्रेम, विश्वास, भरोसा, सम्मान, त्याग और वफादारी जैसे मूल्यों का संगम है। शिव-पार्वती के विवाह की कहानी लोगों को उन्हीं मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है।
इसीलिए शिव-पार्वती के विवाह का जश्न पूरे भारत में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती के विवाह का उत्सव भी मनाया जाता है। इस दिन लोग शिव मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और शिव की विवाह की कथा सुनते हैं।
इस प्रकार शिव-पार्वती के विवाह की कहानी भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बनी हुई है। इसे जानने से लोग उन मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं जो समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
शिव-पार्वती के विवाह की कहानी इस प्रकार हैं। एक बार पार्वती ने अपने मित्रों से सुना कि उनका पति कौन होगा। उनके मित्रों ने उन्हें शिव के बारे में बताया और कहा कि शिव वहीं हैं जिन्होंने कभी किसी से विवाह नहीं किया। पार्वती ने शिव के बारे में सुनकर उनसे मिलने का फैसला किया।
उन्होंने अपनी तपस्या से शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव के लिए रत्न भेजा। शिव ने इस तपस्या को स्वीकार करते हुए पार्वती से मिलने के लिए संसार के दूसरे कोने तक जाने का फैसला किया।
पार्वती ने भी अपनी तपस्या को जारी रखते हुए शिव के लिए संसार के दूसरे कोने तक जाने का फैसला किया। शिव और पार्वती दोनों ही तपस्या के दौरान बहुत महत्वपूर्ण जगहों पर गए थे। अंत में दोनों का मिलना तिरपुण्डी में हुआ।
वहां पर शिव और पार्वती ने एक दूसरे से मिलने के बाद शिव ने पार्वती से उसका विवाह करने का वचन दिया। शिव और पार्वती का विवाह तिरपुण्डी में ही हुआ। इस विवाह के बाद, शिव और पार्वती के बीच बहुत सी परीक्षाएं थीं। शिव ने पार्वती को अपनी भक्ति का दर्शन कराया।
एक दिन शिव और पार्वती गंगा के तट पर घूम रहे थे। वहाँ एक विशाल विराट झील थी। पार्वती ने शिव से कहा कि वह उस झील के तट पर खेलना चाहती हैं। शिव ने उसे अनुमति दे दी।
पार्वती ने झील में खेलते हुए अपने हाथ से लोटा गिरा दिया। उस लोटे से समुद्र उत्पन्न हुआ। उस समय, उन्होंने समझा कि यह उनकी असाध्य स्त्री होगी।
इसलिए, शिव ने उनसे विवाह करने से पहले एक सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि वह उनकी शरण में आएगी और कभी उन्हें छोड़कर नहीं जाएगी। उन्होंने उसकी बात को स्वीकार कर लिया।
उस दिन से शिव और पार्वती के बीच संबंध मजबूत हो गए थे। उनका विवाह धर्म और आदर्शों के अनुसार हुआ था। इस विवाह की कहानी हमें शिव और पार्वती के बीच प्रेम की एक दृष्टि देती है। इसके अलावा, यह कहानी हमें बताती है कि धर्म और आदर्शों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है।
शिव विवाह की कहानी का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा उनके वाहन, नंदी बैल का भी है। यह मान्यता है कि नंदी शिव के विश्वासपूर्ण वाहन हैं और उन्हें कभी नहीं छोड़ते।
इस कहानी का महत्वपूर्ण सन्देश है कि धर्म और आदर्शों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। शिव और पार्वती का विवाह धर्म और आदर्शों के अनुसार हुआ था। वे एक दूसरे के प्रति समर्पित थे और एक दूसरे के साथ हमेशा संबंध बनाए रखने के लिए वचन दिए थे।
इस कहानी के माध्यम से हम यह सीखते हैं कि धर्म, आदर्श और प्रेम से जुड़े संबंध हमेशा स्थिर रहते हैं। इसलिए हमें हमेशा धर्म और आदर्शों का पालन करना चाहिए और हमेशा प्रेम से दूसरों के साथ व्यवहार करना चाहिए।
शिव विवाह की कहानी हमें शिव और पार्वती के संबंधों की महत्वपूर्णता को समझाती है। इस कहानी के माध्यम से हम यह भी सीखते हैं कि प्रेम और समर्पण की शक्ति कितनी बड़ी होती है। शिव और पार्वती एक दूसरे के प्रति समर्पित थे और उन्होंने एक दूसरे के साथ शादी करके एक दूसरे को अपने जीवन का हिस्सा बनाया। यह हमें यह भी बताता है कि हमें एक दूसरे के प्रति समर्पण और प्रेम रखना चाहिए।
शिव विवाह की कहानी एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रेरक कहानी है। इस कहानी से हमें धर्म, आदर्श, प्रेम, समर्पण और समझदारी के महत्व का एक अच्छा संदेश मिलता है। यह हमें बताता है कि हमें धर्म और आदर्शों का पालन करना चाहिए, और हमेशा प्रेम से दूसरों के साथ व्यवहार करना चाहिए।
इस कहानी में शिव और पार्वती की प्रेम की कहानी बताई गई है, जो एक नए आयाम को हमें दिखाती है। शिव और पार्वती के बीच के प्रेम की यह कहानी हमें उनके रिश्ते के महत्व को समझाती है,
जो उनकी शादी के माध्यम से उत्तम ढंग से बना रहा है। इसके अलावा, यह भी बताता है कि आपको कैसे धर्म और आदर्शों के अनुसार अपने जीवन को जीना चाहिए।
इस कहानी में शिव और पार्वती का प्रेम बहुत अनूठा होता है। यह एक ऐसी कहानी है जो आपके मन को छू जाएगी। शिव विवाह की कहानी भारतीय संस्कृति के एक अहम भाग को दर्शाती है और इसके माध्यम से हमें यह भी सिखाती है कि धर्म और आदर्शों का पालन करना ज़रूरी है।
इस कहानी में, हम देखते हैं कि शिव और पार्वती के प्रेम को बढ़ाने के लिए, शिव उन्हें उनके अधिकार पर बुलाते हैं। पार्वती उसकी असामान्य शक्तियों और अनोखे व्यक्तित्व से प्रभावित होती है और वह उसे अपना बनाने का फैसला करती है।
शिव और पार्वती की शादी के बाद, देवताओं ने बड़ी खुशी मनाई और भगवान विष्णु ने अपनी जगह से उठकर शिव-पार्वती की शादी में भाग लिया। यह हमें यह सिखाता है कि विश्वास और समर्पण की शक्ति कितनी बड़ी होती है और यह हमें यह भी याद दिलाता है कि सच्चा प्रेम दुनिया के किसी भी कोने में पाया जा सकता है।
शिव विवाह की कहानी भारतीय संस्कृति में एक अहम जगह रखती है और यह हमें बताती है कि प्रेम और विश्वास की शक्ति कितनी अनूठी होती है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि अपनी संस्कृति और आदर्शों का पालन करना ज़रूरी होता है।
शिव और पार्वती का प्रेम दुनिया के सभी जीवों के लिए एक आदर्श है। इसके अलावा, यह भी दिखाता है कि अगर आप दृढ़ता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं तो आप अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं।
समाप्त रूप से, शिव विवाह की कहानी भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण अंश को दर्शाती है। यह हमें यह सिखाती है कि प्रेम, समर्पण और विश्वास की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण होती है और हमें अपनी संस्कृति और धर्म का पालन करना चाहिए। यह भी दिखाता है कि जब आप दृढ़ता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं तो आप अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं। शिव विवाह की कहानी भी हमें यह दिखाती है कि प्रेम का महत्व केवल जीवनसाथी के साथ ही नहीं होता है, बल्कि प्रत्येक रिश्ते में प्रेम बहुत महत्वपूर्ण होता है।
इस कहानी से हमें यह भी सिखाया जाता है कि जब हम अपने धर्म, आदर्श और संस्कृति का पालन करते हैं, तो हमें वास्तव में शांति, समृद्धि और समाधान मिलता है। इसी तरह से जब हम अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते हैं, तो हम न केवल अपने जीवन में सफलता हासिल करते हैं, बल्कि अपने परिवार, समाज और देश के लिए भी कुछ न कुछ सहयोग प्रदान करते हैं।
इसलिए, शिव विवाह की कहानी एक अद्भुत संदेश देती है। यह हमें संस्कृति और धर्म की महत्ता को समझाती है, साथ ही साथ यह भी बताती है कि हम जब विश्वास, समर्पण और प्रेम के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं तो हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं। शिव और पार्वती का प्रेम भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्से को दर्शाता है |
शिव विवाह की कहानी एक रोमांचक और उत्तेजक कहानी है जो हमें यह बताती है कि प्रेम और आदर्श को सफलता के लिए अपनाना जरूरी होता है।
इस कहानी के अनुसार, शिव भगवान थे जो बहुत ही तपस्या करने वाले थे। एक दिन उन्हें एक सुंदर और समझदार कन्या पार्वती से मिला। पार्वती ने शिव को देखते ही उनसे प्रेम कर लिया था। उन्होंने शिव से शादी करने का निर्णय लिया था।
इसके बाद, पार्वती ने तपस्या करना शुरू कर दिया और वह शिव की पत्नी बनने के लिए इससे पहले उनकी अनुमति ले ली। उन्होंने अपने सभी समय शिव को ध्यान में रखना शुरू कर दिया और शिव ने भी उन्हें अपने साथ रखा।
जब शिव और पार्वती की शादी का समय आया, तो सभी देवता उनके बीच आए। शिव की दो बेटियां भी उसी समय उनके पास आईं। इस समय, शिव को अपनी बेटियों की देखभाल करनी थी, इसलिए उन्होंने पार्वती से कहा कि वह उन्हें एक छोटे से समय के लिए छोड़कर अपने घर वापस जा सकती है |
पार्वती ने उनसे वचन दिया कि वह निश्चित रूप से समय पर वापस आएगी।
शिव के घर जाने के बाद, पार्वती ने अपनी सौंदर्य को छिपाने के लिए एक छोटी सी औरत के रूप में अपने आप को परिवर्तित कर लिया। वह अपनी नई रूप में शिव को देखने लगी और उन्हें देखते ही उनकी नजर उसकी ओर चली गई।
शिव ने उसे पहचान लिया था, लेकिन उन्होंने उससे कुछ नहीं कहा। फिर शिव ने उसे बुलाया और उससे कहा कि वह उस औरत को उसके असली रूप में लौटा दे। पार्वती उसे असली रूप में लौटा देने के लिए तैयार थी, लेकिन शिव ने उसे बार-बार कहा कि वह नहीं चाहते कि उसे असली रूप में लौटा दिया जाए।
इस पर पार्वती ने शिव से पूछा कि वह उस औरत को इस तरह क्यों देख रहे हैं। शिव ने उसे बताया कि उस औरत में उसकी पत्नी का स्वरूप होता है।
इसके बाद, शिव ने पार्वती को उस औरत के रूप में बचाने के लिए उसे अपने साथ ले जाया। उन्होंने उसे अपनी पत्नी बनाने के लिए अपने समस्त शक्तियों का उपयोग किया और उसे जीवित कर दिया।
इस घटना के बाद, पार्वती ने शिव से पूछा कि क्या उनका विवाह हुआ है। शिव ने उत्तर दिया कि उनका विवाह हो गया है और उन्होंने उस औरत को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है। पार्वती ने अपनी पति को धन्यवाद दिया और उन्हें अपनी शक्तियों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया।
शिव और पार्वती का विवाह बहुत ही धूमधाम से मनाया गया। देवताओं, ऋषियों और सिद्धों ने इसकी समर्थन में अपने आशीर्वाद दिए। इस विवाह के अवसर पर, शिव के सभी भक्तों ने बड़ी उल्लास के साथ इसे मनाया। इस विवाह की कहानी भारतीय संस्कृति में बहुत ही महत्वपूर्ण है और यह शिव-शक्ति के संयोग का प्रतीक है।
इस रूपांतरण के बाद, पार्वती और शिव ने अपने सम्बन्धों को और अधिक मजबूत करने के लिए एक साथ कई कार्यों किए। वे साथ में अनेक पुत्रों को जन्म दे चुके हैं, जिनमें गणेश, कार्तिकेय और कुमार के नाम सम्मिलित हैं। वे भगवान शिव के देवताओं में से कुछ हैं जो भारतीय संस्कृति में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
शिव विवाह की कहानी भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखती है। इसे अपनी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है और लोग इसे बड़ी उल्लास के साथ मनाते हैं। यह कहानी शिव-शक्ति के बीच एक अद्भुत संयोग को दर्शाती है, जो भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांतों में से एक है।
इसके अलावा, शिव विवाह की कहानी में व्यक्त की गई सभी धार्मिक मूल्यों और सिद्धांतों को सम्मिलित किया गया है। यह शिव-शक्ति के संयोग को दर्शाता है, जो उनके संबंधों को और भी मजबूत बनाता है। इसे भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत हिस्सा माना जाता है जो भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
शिव विवाह की कहानी एक महान उत्सव के रूप में माना जाता है, जिसे बड़ी उल्लास के साथ मनाया जाता है।
शिव की कितनी पत्नियां थीं?
शिव की पत्नियों की संख्या को लेकर बहुत से विवाद हैं। भारतीय मिथकों और पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव की तीन पत्नियाँ थीं। ये थीं पार्वती, सती और उमा।
पार्वती शिव की मुख्य पत्नी थीं। उन्होंने शिव से विवाह किया था और उनके साथ वनवास में रहती थीं। उन्हें अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे उमा, गौरी, दुर्गा और काली। पार्वती देवी हिमालय की बेटी थीं।
दूसरी पत्नी सती थीं, जो शिव की पहली पत्नी थीं। उन्हें दाक्षायणी भी कहा जाता है। सती की कथा पुराणों में बहुत लोकप्रिय है। उन्होंने अपने पिता के घर में आत्महत्या कर ली जब उन्हें उनके पति शिव का अपमान करने वाले दाक्ष ऋषि के घर बुलाया गया था।
तीसरी और अंतिम पत्नी उमा थीं। वे पार्वती के रूप में भी जानी जाती हैं। उन्हें अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे गौरी और पवित्रकुंभ।
वैदिक संस्कृति और पुराणों के अनुसार, शिव की अन्य भी पत्नियां थीं। इन पत्नियों में से एक का नाम काली था, जो मां काली और दुर्गा के रूप में भी जानी जाती है। इसके अलावा, उनकी दूसरी पत्नी के नाम कार्त्तिकेयनी था, जो कार्त्तिकेय की मां थी।
हालांकि, यह जानना मुश्किल है कि कितनी पत्नियां शिव की थीं, क्योंकि विभिन्न पुराणों और लोककथाओं में अलग-अलग संख्या बताई गई है। कुछ पुराणों में शिव की अधिकतम 16 पत्नियां थीं, जबकि कुछ में इनकी संख्या 8 से भी कम बताई गई है। ऐसे में, शिव की सच्ची संख्या अज्ञात है।
उत्तर भारत में, शिव को गंगा के पति के रूप में जाना जाता है जो अपनी एकमात्र पत्नी पार्वती के साथ रहते हैं। इसके विपरीत, दक्षिण भारत में शिव को द्रविड़ तलवार के धारी के रूप में जाना जाता है जो तीनों पत्नियों के साथ रहते हैं।
सामान्य रूप से, शिव की पत्नियों को त्रिदेवी के रूप में जाना जाता है जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पत्नियां होती हैं।
इस तरह से, शिव की पत्नियों की संख्या और नाम अलग-अलग पुराणों और लोककथाओं में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कुछ पुराणों और लोककथाओं में इन्हें बहुत सम्मानजनक व्यक्तित्वों के द्वारा बताया गया है जो शिव की अन्य पत्नियों के नामों के साथ संबद्ध होते हैं।
शिव की प्रसिद्ध पत्नी पार्वती है, जो शक्ति और संयम की देवी के रूप में जानी जाती है। पार्वती के अलावा, शिव की अन्य पत्नियों के नाम हैं – सती, सुंदरी, दुहिता, दक्षायणी, विश्वरूपा, भवानी, बृंदा, लोपामुद्रा, गौरी, वरुणानी, कालीका, ज्येष्ठा, मृगावती, मातङ्गी आदि।
शिव की पत्नियों को तीन श्रृंगार रूपों में देखा जाता है – सत्विक, राजसिक और तामसिक। सत्विक श्रृंगार में उन्हें देवी के रूप में देखा जाता है जबकि राजसिक श्रृंगार में उन्हें स्त्री के रूप में देखा जाता है। तामसिक श्रृंगार में उन्हें भयंकर देवी के रूप में देखा जाता है।
शिव की पत्नियों की इस संख्या और नामों को लेकर कुछ लोगों के मन में संदेह है क्योंकि उनकी जानकारी केवल पुराणों और लोककथाओं पर निर्भर होती है। हालांकि, कुछ विश्वसनीय स्रोतों ने शिव की पत्नियों की संख्या के बारे में विविध बयान दिए हैं।
उदाहरण के लिए, स्कन्द पुराण में कहा गया है कि शिव की बारह पत्नियां हैं जिनमें से सात देवी योगमाया के रूप में जानी जाती हैं जबकि शेष चार देवी अधिलक्ष्मी, संभूति, विश्वा और संग्या के रूप में जानी जाती हैं। इसके अलावा, ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि शिव की आठ पत्नियां हैं।
अन्य स्रोतों में शिव की एकाधिक पत्नियों की संख्या बताई गई है, जैसे मत्स्य पुराण जिसमें कहा गया है कि शिव की नौ पत्नियां हैं और शिव पुराण जिसमें बताया गया है कि उनकी चौदह पत्नियां हैं।
अतिरिक्त स्रोतों में शिव की पत्नियों की संख्या के बारे में उल्लेख किया गया है जो इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हो सकते हैं। जैसे कि विश्वनाथ मंदिर, काशी में शिव के सात जोत शिव के सात जोत के नामों के साथ सात पत्नियों की मूर्तियों की भी विरासत है। इसके अलावा, कुछ स्थलों पर शिव की नौ पत्नियों की मूर्तियां भी होती हैं। इन मूर्तियों के नाम और संख्या में अलग-अलग संस्कृत पाठों में भिन्नताएं हो सकती हैं।
इसलिए, शिव की पत्नियों की सटीक संख्या का निर्धारण बेहद मुश्किल है। हालांकि, एक बात स्पष्ट है कि शिव की बहुत सी पत्नियां थीं जिन्होंने उनसे अनेक पुत्रों को जन्म दिया और इनमें से कुछ बाद में देवता बन गए।
यद्यपि इस विषय में संशय है, लेकिन इतिहास के कुछ प्रसिद्ध नामों में से कुछ शिव की पत्नियों के होते हैं। उदाहरण के लिए, सती, पार्वती, उमा, काली, दुर्गा, सरस्वती और गंगा शिव की कुछ पत्नियों के नाम हैं जो उनके साथ जुड़े महत्वपूर्ण कथाओं और लोक कथाओं में उल्लेखित हैं।
शिव की पत्नियों के नाम के अलावा, उनके साथ जुड़े अन्य कहानियों में उनके संग विभिन्न देवी-देवताओं के भी उल्लेखने को मिलता है। उदाहरण के लिए, कुछ कथाओं में बताया गया है कि शिव की पत्नी सती देवी अग्नि में समाहित हो गई थीं। उसके बाद, शिव ने दुष्ट राक्षस ताड़का का वध किया और उससे उन्हें बहुत आशीर्वाद मिला।
दूसरी ओर, कुछ कथाएं बताती हैं कि पार्वती नाम की एक राजकुमारी शिव के प्रेमिका बन गई थीं। बाद में, उन्होंने व्रत रखा और भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया। इस तरह, पार्वती देवी शिव की पत्नी बन गई थीं।
कुछ कथाओं में, दुर्गा देवी भी शिव की पत्नी के रूप में उल्लेखित होती हैं। वे महादेव और पार्वती देवी के शरीर से उत्पन्न हुई थीं। इसके अलावा, सरस्वती देवी और गंगा देवी भी शिव की पत्नियों के रूप में उल्लेखित होती हैं।
कुछ कथाओं में, शिव के बाहरवीं स्त्री का नाम भी उल्लेखित होता है। यह संभवतः एक लोक कथा हो सकती है जो इसे एक और पत्नी के रूप में पेश करती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि शिव की कुल कितनी पत्नियां थीं।
शिव की पत्नियों की संख्या को लेकर विभिन्न मत होते हैं। कुछ लोग इसे धार्मिक रूप से लेते हैं जबकि कुछ इसे केवल लोक कथाओं की एक कल्पना मानते हैं। इसलिए, शिव की पत्नियों की संख्या को लेकर कोई निश्चित जवाब नहीं है।
इसके अलावा, शिव के सम्बन्ध में बहुत सारी कहानियां हैं जो उनके विवाह, पत्नियों और सम्बन्धों से जुड़ी होती हैं। ये कहानियां बहुत ही रोमांचक होती हैं और उनमें शिव की विभिन्न पत्नियों और सम्बन्धों का जिक्र किया जाता है।
इन कहानियों में, शिव की पत्नियों की संख्या भी बदलती है। इसलिए, उनकी संख्या को लेकर कोई निश्चित जवाब नहीं है।
समाप्ति रूप से, शिव की पत्नियों की संख्या के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। शिव के संबंध में बहुत सारी कहानियां हैं जो उनके विवाह, पत्नियों और सम्बन्धों से जुड़ी होती हैं। ये कहानियां बहुत ही रोमांचक होती हैं और उनमें शिव की पत्नियों के बारे में जानने के लिए विभिन्न पुराणों और लोक कथाओं का संदर्भ लिया जा सकता है। हिंदू धर्म में शिव तीनों लोकों के स्वामी माने जाते हैं और उनकी पत्नियों की संख्या तीन या उससे अधिक बताई जाती है।
शिव की प्रमुख पत्नी सती थीं, जो दक्ष कुल की राजकुमारी थीं। सती और शिव का विवाह बहुत ही रोमांचक था। दक्ष ने अपनी पुत्री को शिव से विवाह करने से मना कर दिया था, लेकिन सती ने अपने पति के प्रति अपना वचन निभाने का फैसला किया।

दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने शिव को नहीं आमंत्रित किया था। सती अपने पिता के व्यवहार से नाराज हो गईं और यज्ञ स्थल में आग लगाकर अपनी जान दे दी। इससे शिव ने बहुत ही दुखी होते हुए सती का दहन किया और वे उनके चिते के ऊपर त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए शस्त्रों का उपयोग करते हुए उसे मार डाले।
शिव की दूसरी पत्नी पार्वती थीं, जो हिमालय की राजकुमारी थीं। उन्होंने शिव को अपने तपस्या से प्रसन्न किया और वे विवाह कर गए। पार्वती शिव की सबसे प्रमुख पत्नी मानी जाती हैं और उन्होंने उनकी शक्ति की प्रतीकता के रूप में भी काम किया।
शिव की तीसरी पत्नी काली थीं, जो एक तांत्रिक मां थीं और उन्हें तांत्रिक और तंत्र के विषय में ज्ञान था। काली शक्ति के प्रतीक मानी जाती हैं और उन्होंने शिव के साथ उसकी तांत्रिक साधना में भी काम किया।
शिव के अलावा उनकी और भी पत्नियां थीं जो उनकी तांत्रिक या भक्ति योग की शिष्या थीं और उनके साथ साधना करती थीं। कुछ पुराणों में इनकी संख्या तीन से अधिक बताई जाती है, जैसे कि विष्णु पुराण में लिखा है कि शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा उनकी 28 पत्नियां भी थीं।
READ MORE :- SATYANARAYAN BHAGWAN KI KAHANI IN HINDI (सत्यनारायण कौन से भगवान हैं?)