EKADASHI KI KATHA IN HINDI (एकादशी में चावल क्यों नहीं खाना चाहिए?)

By Shweta Soni

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हेलो दोस्तों,

मेरा नाम श्वेता है और आज मई आप सभी के लिए एकादशी की कथा लेके आई हु। हमारे हिन्दुओ में एकादशी का महत्व है, एकादशी की कथा आप सभी को जननी चाहिए की क्यों इस व्रत को रखा जाता है एकादशी से हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। आप सभी को एकादशी की कथा जरूर पढ़नी चाहिए। तो आप सभा दोस्तों इस कथा को जरूर पढ़े अगर कथा आप सभी को अच्छी लगे तो अपने परिवार और दोस्तों में शेयर जरूर करे धन्यवाद

एकादशी व्रत हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण धार्मिक व्रत है जो हर मास के दो अपर्णाशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत सर्वोच्च पुरुष भगवान विष्णु को समर्पित होता है और श्रद्धा और विश्वास के साथ नियमित रूप से पालन किया जाता है। एकादशी की कथा के माध्यम से इस व्रत की महिमा और महत्व का वर्णन किया जाता है।

एकादशी की कथा विष्णु पुराण में वर्णित है। कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति की पुत्री सती व्रतारूपी भक्तिपूर्ण और उत्साहपूर्ण रही। उन्होंने विष्णु भगवान की पूजा और आराधना करते हुए एकादशी का व्रत रखा। वह पूरे मन से व्रत का पालन करती थी और विष्णु भगवान की कृपा को प्राप्त करने की कामना करती थी।

एक बार सती की प्रतिभा ने उन्हें एकादशी के दिन आराम करने के लिए कहा, लेकिन सती ने यह स्वीकार नहीं किया और व्रत के नियमों का पालन करते हुए विष्णु भगवान की पूजा जारी रखी। धीरे-धीरे दिन बितते गए और सती ने देखा कि उस दिन के बाद उनके पति भगवान शिव ने उनसे एक सवाल पूछा। उन्होंने पूछा कि एकादशी व्रत का महत्व क्या है और उसके द्वारा कौन सा फल प्राप्त होता है।

सती ने बहुत आत्मविश्वासपूर्ण तरीके से उत्तर दिया और बताया कि एकादशी व्रत के द्वारा सभी पाप दूर हो जाते हैं और मनुष्य अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को शुद्ध कर सकता है। उन्होंने कहा कि इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति की आत्मिक और शारीरिक उन्नति होती है और उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

इस पर भगवान शिव ने सती की भक्ति और ज्ञान की प्रशंसा की और उन्होंने कहा कि एकादशी व्रत अत्यंत पुण्यकारी है और उसे करने से मनुष्य का अन्तिम प्रयास भी पूरा हो जाता है। उन्होंने सती को धन्यवाद दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह हमेशा एकादशी व्रत का पालन करती रहें और भगवान विष्णु की कृपा को प्राप्त करें।

EKADASHI KI KATHA IN HINDI (एकादशी में चावल क्यों नहीं खाना चाहिए?)
EKADASHI KI KATHA IN HINDI (एकादशी में चावल क्यों नहीं खाना चाहिए?)

यहां एकादशी की कथा है:

कबीर जी एकादशी की कथा:

एक बार की बात है, एक गांव में एक अत्यंत धार्मिक आदमी नामक कबीर रहता था। कबीर बहुत ही ईमानदार और निष्ठावान थे। वह भगवान की भक्ति में रत थे और नित्य ध्यान और पूजा करते थे। एक दिन, कबीर ने एक संत से पूछा कि कौन सी पूजा या व्रत सबसे महत्वपूर्ण है। संत ने कहा, “हे कबीर, सभी पूजाएं और व्रत भगवान को आनंदित करते हैं, लेकिन एकादशी व्रत सबसे विशेष है। यह व्रत भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है।”

कबीर ने जानने के लिए पूछा, “संतजी, एकादशी व्रत का विशेष महत्व क्या है? इसे कैसे किया जाता है?” संत ने कहा, “एकादशी व्रत को सम्पूर्ण मन, वचन और कर्म से आदर्श ढंग से किया जाना चाहिए। इस व्रत के दौरान आपको निश्वास की तरह भगवान की स्मरण करना चाहिए। आपको अन्न, पानी और अन्य सभी प्रकार के आनंदों से बचना चाहिए। इसके साथ ही, आपको नीतिमान और पवित्र व्यवहार करना चाहिए। व्रत के दौरान आपको भगवान के नाम का जाप करना चाहिए और उनके गुणों की महिमा का गान करना चाहिए। व्रत के दिन आपको भगवान की पूजा करनी चाहिए और उनके चरणों में विश्राम करना चाहिए।”

कबीर ने यह सुनकर बहुत आदर से कहा, “धन्यवाद, संतजी! मैं इसे समझ गया हूँ। मैं एकादशी व्रत जरूर करूंगा और इसे सम्पूर्ण ईमानदारी और आदर के साथ पालूंगा।”

कबीर ने एकादशी के दिन व्रत रखा और उसे पूरी नियमितता से पाला। उन्होंने पूरे दिन भगवान की पूजा की, उनके नाम का जाप किया, भक्ति गान किया, और विश्राम करने के बाद भगवान के चरणों में अर्पित हुए। व्रत के दौरान उन्होंने न केवल अन्न और पानी से विरत रहा, बल्कि मन, वचन, और कर्म से भी पवित्र और नीतिमान व्यवहार किया।

भगवान विष्णु ने कबीर की ईमानदारी और निष्ठा को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने स्वयं उसके सामने प्रकट होकर कहा, “हे कबीर, तुम्ह कबीर, तुमने अत्युत्तम भक्ति और समर्पण के साथ एकादशी व्रत किया है। मेरी कृपा तुम पर बहुत बरसी है। तुम्हारे सभी पाप धूल हो गए हैं और तुम्हें मेरा आशीर्वाद मिला है।”

कबीर ने भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त कर अत्यंत खुश हुए। उन्होंने एकादशी व्रत की महिमा को देखकर अन्य लोगों को भी इसे करने का प्रेरणा दी। उन्होंने लोगों को इस व्रत के महत्व का बोध कराया और उन्हें भगवान की भक्ति में आने का प्रेरणा दी।

इस तरह से, कबीर ने एकादशी व्रत के माध्यम से अपने मन को शुद्ध किया, अपने अच्छे कर्मों को बढ़ावा दिया, और अपनी आत्मा को पवित्रता के मार्ग पर ले जाया। वह अपनी ईश्वर भक्ति के माध्यम से धन, सुख, और समृद्धि को प्राप्त करने के साथ ही मोक्ष की प्राप्ति को भी समर्पित हुए।

इसलिए, सभी लोग एकादशी व्रत को ध्यान और आदर से करें और इसके द्वारा भगवान के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को प्रगट करें। एकादशी व्रत आत्मिक शुद्धता द्वारा हमें अपने जीवन में सुख, शांति और आनंद की प्राप्ति होती है। यह हमें अशुभ कार्यों से दूर रखता है और सद्गुणों को विकसित करने में सहायता करता है।

एकादशी व्रत की कथा के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आध्यात्मिकता और अच्छाई के मार्ग पर चलने के लिए नियमित व्रत और पूजा का महत्व होता है। इस व्रत के द्वारा हम अपने मन को वश में करते हैं, अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करते हैं और अपने आपको ईश्वरीय आत्मा के संग में जोड़ते हैं।

एकादशी व्रत के द्वारा हम अपनी अंतरंग शुद्धि और विकास को प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में भगवान के अनुभव को साक्षात्कार करते हैं। यह व्रत हमें सामरिक, आध्यात्मिक और नैतिक गुणों की प्रगटि करने का अवसर देता है और हमें सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्रदान करता है।

इस प्रकार, एकादशी व्रत हमें आध्यात्मिक उन्नति, संतोष, धैर्य और ईश्वरीय सम्पन्नता की प्राप्ति के लिए मार्गदर्श करता है। यह हमें निरंतर भगवान की सेवा, ध्यान, और पूजा में रहने का प्रेरणा देता है। इसे नियमित रूप से आचरण करने से हमारा मन और आत्मा पवित्र और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं।

एकादशी व्रत हमें मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति के साथ हमारे जीवन को संतुष्ट, खुशहाल, और धार्मिक बनाने में सहायता करता है। यह हमें ब्रह्मचर्य, सत्य, दया, क्षमा, और अहिंसा की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करता है।

एकादशी व्रत का आचरण करने से हमें शुभता, स्वास्थ्य, आध्यात्मिक ज्ञान, और मनोभावना में सुधार होता है। यह हमारी मनोदशा को शांत, स्थिर और समत्वपूर्ण बनाता है। हमारी संवेदनशीलता और सामर्थ्य में वृद्धि होती है और हम आध्यात्मिक साधना में प्रगति करते हैं।

इसलिए, एकादशी व्रत का आचरण हमारे जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि का स्रोत बनता है। यह हमें भगवान के प्रति प्रेम, भक्ति, और श्रद्धा का विकास करता है और हमें अपने स्वभाविक धार्मिक और नैतिक दायित्वों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। यह हमारे अंतरंग मन को शुद्ध करने, दुष्प्रवृत्तियों से मुक्त होने, और ईश्वर के समीप आने का मार्ग प्रदान करता है।

एकादशी व्रत का महत्व यह है कि यह हमें आत्मसात करता है, हमारी बुद्धि को शुद्ध करता है, और हमें आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। यह हमें संयम, सहिष्णुता, और समरसता का अनुभव कराता है और हमें अहंकार, कामना, और अविवेक से मुक्त करता है।

एकादशी व्रत के द्वारा हम अपनी मनोदशा को नियंत्रित करते हैं, अपनी इंद्रियों को वश में करते हैं, और भगवान की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं। यह हमें आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान करता है, जिससे हम अपनी आत्मा को पहचान सकते हैं और असली सुख की प्राप्ति कर सकते हैं।

इसलिए, हमें एकादशी व्रत का महत्व समझना चाहिए और इसे अपने जीवन में नियमित रूप से आचरतें करना चाहिए। इस व्रत के द्वारा हम अपनी आत्मा को ऊंचाईयों तक ले जा सकते हैं और भगवान के साथ एक साधारण और आदर्श जीवन जी सकते हैं।

एकादशी व्रत की कथा हमें यह शिक्षा देती है कि हमें भगवान की सेवा, भक्ति और आदर्श जीवन के मार्ग पर अपने आप को समर्पित करना चाहिए। यह हमारे मन को शुद्ध करने, सद्गुणों को विकसित करने, और अशुभता से मुक्त होने में सहायता करता है।

एकादशी व्रत विशेष रूप से हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे विशेष पूजा, व्रताचरण और प्रवचनों के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान के मंदिर जाते हैं, पूजा और आरती करते हैं, वेद मन्त्रों का पाठ करते हैं और भगवान की कथा सुनते हैं। इसके अलावा, लोग व्रतानुसार अन्न नहीं खाते और एकादशी तिथि के दौरान सदाचार और धार्मिक कार्यों में जुटते हैं।

इस प्रकार, एकादशी व्रत हमें आत्मिक और मानसिक शुद्धि, सांत्वना, आध्यात्मिक ज्ञान, और आनंद की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है। यह हमें भगवान की कृपा को आकर्षित करता है और हमारे जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने में मदद करता है।

एकादशी व्रत का आचरण करने से हमें नियमितता, संयम, त्याग, और साधना की अभ्यास करने का अवसर मिलता है। हमारा मन और इंद्रियों का नियंत्रण होता है और हम अपने आप को आध्यात्मिक साधना में समर्पित करते हैं। इससे हमारी चित्तशुद्धि होती है और हम अपनी आत्मा को पहचान सकते हैं।

एकादशी व्रत के द्वारा हमें अपने कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा मिलती है और हम अहंकार, कामना, और अविवेक को दूर करते हैं। यह हमारे मन में समरसता, सत्य, और प्रेम का विकास करता है और हमें समाज में सहयोग, सेवा, और दया के महत्व को समझाता है।

इस प्रकार, एकादशी व्रत हमारे जीवन में आत्मिक और आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग प्रदान करता है और हमें संतोष, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए उत्साहित करता है। एकादशी व्रत के आचरण से हमारे अन्तरंग मन की शुद्धि होती है और हम आत्मिक आनंद का अनुभव करते हैं। हम अपने मन को शांत करके मन की स्थिरता प्राप्त करते हैं और दिव्य आत्मा के साथ अपनी संबंध स्थापित करते हैं।

एकादशी व्रत के द्वारा हम अपने अध्यात्मिक सफर में आगे बढ़ते हैं और ईश्वरीय उच्चता की ओर प्रगति करते हैं। हम अपने मन, वचन और कर्मों की शुद्धि के माध्यम से ईश्वर के पास पहुंचते हैं और अपने जीवन को आध्यात्मिक मूल्यों और धार्मिकता से परिपूर्ण बनाते हैं। एकादशी व्रत हमें अहंकार, लोभ, क्रोध और दुर्भावनाओं से मुक्त करता है और हमें सद्गुणों जैसे क्षमा, दया, सत्यनिष्ठा, और प्रेम का आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यह हमारे चरित्र में सदाचार, ईमानदारी, और उच्च मानसिकता को स्थापित करता है।

एकादशी व्रत का आचरण करने से हमें स्वस्थ रहने, मन की स्थिरता, और आत्मिक शक्ति मिलती है। हम शारीरिक और मानस्य रूप से सुरक्षित और स्वस्थ रहते हैं और आत्मा के उद्धार के लिए तत्पर रहते हैं। एकादशी व्रत के द्वारा हम अपने दुःखों, विपत्तियों और अशान्ति को दूर करते हैं और स्वार्थ से परे, सात्विक और पवित्र जीवन का आनंद उठाते हैं।

एकादशी व्रत की कथाओं और महत्व को सुनकर हमें यह याद रखना चाहिए कि यह व्रत हमारे मन, शरीर और आत्मा के लिए शुद्धता, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास का माध्यम है। हमें एकादशी व्रत के द्वारा अपने अंतरंग धर्मिक दायित्वों का पालन करना चाहिए और ईश्वर के प्रति श्रद्धा और भक्ति का विकास करना चाहिए।

यदि हम नियमित रूप से एकादशी व्रत आचरण करें तो हमारा जीवन सत्विकता, ध्यान, और आनंद से परिपूर्ण होगा। हम ईश्वर के समीप आने के लिए समर्पित रहेंगे और सद्गुणों का विकास करेंगे। एकादशी व्रत हमें आत्मिक संवाद की सुविधा प्रदान करता है और हमें आध्यात्मिक मार्ग पर सफलता की प्राप्ति करने में सहायता करता हता है। एकादशी व्रत के द्वारा हम आत्मा को प्रकाशित करते हैं और आनंद की ऊंचाई तक पहुंचते हैं। हम आपसी सद्भाव, सम्मान, और सहयोग के साथ जीवन जीने का संकल्प लेते हैं और ईश्वर के आदेशों का पालन करते हुए धार्मिकता के आदर्शों को प्राप्त करते हैं।

एकादशी व्रत आचरण करने से हमें आध्यात्मिक ज्ञान, आनंद, और आत्म-सम्मोहन प्राप्त होता है। हम अपने जीवन में समता, प्रेम, और सेवा के गुणों को विकसित करते हैं और दुख और संकट के प्रति सहनशीलता विकसित करते हैं। इससे हमारा मन शांत, स्थिर और उदार होता है और हम अपने आसपास के सभी जीवों के प्रति सम्मानपूर्वक व्यवहार करते हैं। एकादशी व्रत की कथा और आचरण हमें यह बताते हैं कि एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण उद्देश्य हमें मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता प्रदान करना है। यह हमें मध्यम और इंद्रियों के वशीभूत होने से बचाता है और हमें सात्विक गुणों को विकसित करता है।

एकादशी व्रत के द्वारा हम अपनी अहंकार, अभिमान और आवश्यकता को नियंत्रित करते हैं और संयम, वैराग्य और ध्यान के गुणों को प्राप्त करते हैं। इससे हमारा मन शांत होता है और हम आध्यात्मिकता के पथ पर अग्रसर होते हैं। एकादशी व्रत का आचरण करने से हमें स्वास्थ्य, दीर्घायु, और मानसिक स्थिरता की प्राप्ति होती है। हम अपने शरीर, मन और आत्मा की ऊर्जा को बचाते हैं और ईश्वर के प्रति आदर्श भावना विकसित करते हैं।

एकादशी व्रत के द्वारा हम अपनी प्राकृतिक और आध्यात्मिक संपदा को विकसित करते हैं और सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए ईश्वर की कृपा को प्राप्त करते हैं। यह हमारे जीवन को सत्विकता, धर्म और आनंद से परिपूर्ण बनाता है | एकादशी व्रत की कथा के आधार पर एक बार एक गांव में एक साधू महात्मा आए। उन्होंने गांव के लोगों को अद्वैत तत्त्व के बारे में उपदेश दिया और उन्हें ध्यान और भक्ति की महत्वपूर्णता बताई। सभी लोगों ने उनके उपदेश को सुना और उसे अपने जीवन में अंमल करने का संकल्प लिया।

एक गांव के एक किसान ने साधू महात्मा से पूछा, “प्रभु, हम आपके उपदेश के अनुसार कैसे अध्यात्मिक विकास कर सकते हैं?” साधू महात्मा ने कहा, “एकादशी व्रत का आचरण करो। यह व्रत तुम्हें मानसिक शुद्धता प्रदान करेगा और तुम्हारे अंतरंग धर्मिक गुणों को विकसित करेगा।”

किसान ने साधू महात्मा की सलाह मानी और उन्होंने एकादशी व्रत का आचरण किया। उसने नियमित रूप से दो गुरुवार को व्रत रखा और इसके द्वारा अपने मन को नियंत्रित किया। वह अपनी इंद्रियों को वश में रखकर सात्विकता और ध्यान की स्थिति में रहने में समर्थ हुआ।

कुछ समय बाद, उसके गांव में एक खातरनाक आक्रामक आया। यह आक्रामक अकार्यों के लिए जाना जाता था और लोगों को डराने और हराने का काम करता था। जब वह अक्रामक गांव के पास पहुंचा, तो उसे किसान का घर दिखाई दिया। वह अपने हमले के लिए तैयार हो गया और खेत में चला गया।

जब वह खेत में पहुंचा, तो उसने देखा कि किसान ध्यान में लगे हुए थे और अपने मन्त्र का जाप कर रहे थे। अक्रामक उसके पास गया और उसे पूछा, “तू यहां क्या कर रहा है? मैं तुझे डरा रहा हूँ और तू शांति में बैठा हुआ है।”किसान ने सादे भाषा में कहा, “मेरे भगवान, मैं एकादशी व्रत रख रहा हूँ और तपस्या कर रहा हूँ। यह व्रत मेरे मन को शांत कर रहा है और मुझे आप पर निर्भर करने की शक्ति दे रहा है। तुम्हारा हमला मेरे लिए कुछ नहीं है।”

एकादशी में चावल क्यों नहीं खाना चाहिए?

एकादशी में चावल क्यों नहीं खाना चाहिए? एकादशी व्रत के दौरान चावल का सेवन नहीं किया जाता है, और इसमें विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक आदान-प्रदान के कई पारंपरिक और तात्कालिक कारण होते हैं। यहां कुछ मुख्य कारणों की व्याख्या की गई है:

  1. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: एकादशी व्रत का मूल उद्देश्य आत्मा को उच्चतम चेतना की ओर प्रवृत्त करना है। इस व्रत में आहार को संयमित रखा जाता है और तामसिक आहार से परहेज किया जाता है। चावल तामसिक भोज्यों में गिना जाता है, और इसलिए इसे एकादशी व्रत के दौरान नहीं खाना चाहिए। इससे आत्मिक शुद्धता के लिए सात्विक आहार प्राथमिकता प्राप्त होती है।
  2. शरीरिक और मानसिक अभ्यास: एकादशी व्रत के दौरान आहार को संयमित करने से शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने में सहायता मिलती है। चावल में ज्यादा कार्बोहाइड्रेट होता है, जो पाचन क्रिया को बढ़ा सकता है और ऊब बना सकता है। इसलिए, एकादशी व्रत के दौरान चावल का सेवन नहीं किया जाता है क्योंकि यह आपके शरीर के व्रत के मूल उद्देश्य को पूरा करने में मददगार नहीं होता है। यहां कुछ अन्य कारण दिए जाते हैं:
  3. व्रत की शुद्धता: एकादशी व्रत के दौरान, सात्विक आहार का पालन किया जाता है जो शरीर को पवित्र बनाने में मदद करता है। चावल में अन्य अनुचित पदार्थों जैसे कि लोबिया, मूंगफली आदि सहित अनाजों का सम्बन्ध हो सकता है, जिसे व्रत के दौरान नहीं खाया जाना चाहिए।
  4. आयुर्वेदिक परंपरा: आयुर्वेद में चावल को काफी गर्म औषधि माना जाता है। एकादशी व्रत के दौरान यहां शरीर में तापमान को न्यूनतम रखने का प्रयास किया जाता है। चावल का सेवन गर्म तापमान को बढ़ा सकता है और व्रत के उद्देश्य को प्रभावित कर सकता है।

यदि आप एकादशी व्रत का आचरण कर रहे हैं, तो आपको चावल के स्थान पर सात्विक आहार जैसे कि फल, सब्जियां, दाल, या अन्य अनाजों का सेवन कर सकते हैं। हालांकि, विभिन्न धार्मिक संप्रदायों और पारंपरिक विचारधाराओं में एकादशी व्रत के दौरान चावल के सेवन पर विशेष निषेध नहीं है। यह व्रत धर्म और आध्यात्मिकता के आधार पर अपनाया जाता है, और आहार पर नियम धार्मिक संप्रदाय या आचार्यों के आदेशों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। इसलिए, अपने धर्मिक गुरु, पंडित, या संप्रदाय के आचार्य की सलाह लेना सर्वोत्तम होगा।

यदि आपके संप्रदाय या आचार्य ने एकादशी व्रत के दौरान चावल के सेवन की अनुमति दी है, तो आप उसे खा सकते हैं। आपके आचार्य या गुरु आपको विशेष निर्देश देंगे कि आपको किस तरह का आहार लेना चाहिए और किन आहार पदार्थों से परहेज करना चाहिए।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि एकादशी व्रत आपके मन, शरीर और आत्मा को पवित्र बनाने का अवसर है। इसके दौरान आपको सत्त्वपूर्ण आहार लेना, अनुचित पदार्थों से परहेज करना और आध्यात्मिक अभ्यासों को ध्यान में रखना चाहिए।

EKADASHI KI KATHA IN HINDI (एकादशी में चावल क्यों नहीं खाना चाहिए?)
EKADASHI KI KATHA IN HINDI (एकादशी में चावल क्यों नहीं खाना चाहिए?)

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